अवतार – वराह का | Avtaar – Vraah ka
अवतार – वराह का | Avtaar – Vraah ka : एक दिन भगवन विष्णु अपने महल में विश्राम कर रहे थे। उसी समय भगवान् ब्रह्मा के चार पुत्र उनसे मिलने आये। महल के द्वार पर दो पहरेदारों जय और विजय ने ब्रह्मा के पुत्रों को महल में प्रवेश करने से रोक दिया, क्योंकि उनके प्रभु विश्राम कर रहे थे। फलस्वरूप क्रोध में आकर ब्रह्मा के पुत्रों ने जय और विजय को देवता स्वरूप त्यागकर पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। थोड़ी ही देर में भगवान् विष्णु वहाँ पहुँचे और ब्रह्मा के पुत्रों से जय-विजय के व्यवहार के लिए क्षमा माँगने लगे, क्योंकि
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अवतार – वराह का | Avtaar – Vraah ka : वे तो केवल अपना कर्तव्य निभा रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र बोले कि जय-विजय हमारे दिये गये श्राप से तभी मुक्त होंगे, जब ये दोनों पृथ्वी पर मानव रूप में भगवान् विष्णु के हाथो मृत्यु को प्राप्त होंगे। पृथ्वी पर आकर जय और विजय ने मानव रूप में दिती के पुत्रों के रूप में जन्म लिया। उनका नाम हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष रखा गया। पृथ्वी पर उनके जन्म लेने पर पृथ्वी और स्वर्ग दोनों ही जोरों से डगमगा गये। इन्द्रदेव, विष्णु भगवान् के पास गये और पूछा, “जिनके पृथ्वी पर जन्म लेने पर ही इतनी अशांति हों, जब वे बड़े होंगे तो क्या होगा?”
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अवतार – वराह का | Avtaar – Vraah ka : “घबराओ नहीं इन्द्र, सही समय आने पर मैं उन्हें मृत्युलोक भेज दूँगा और किसी को हानि भी नहीं होगी।” भगवान विष्णु बोले। दिन महीने वर्ष बीतते गये, हिरण्याक्ष एक नवयुवक बन गया। वह भगवान् ब्रह्मा का भक्त था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने दर्शन देकर उसे वरदान दिया। वरदान के अनुसार कोई भी भगवान, मानव, असुर या दैत्य उसे मार नहीं सकता था। अपनी अमरता से आश्वासित होकर हिरण्याक्ष सारी दुनियाँ के सामने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगा। वह अपनी सीमाएं बढ़ाता गया जिससे और समुद्र मंथन आरम्भ हो गया। समुद्र मंथन के फलस्वरूप समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उत्पन्न होने लगीं, यह देख वरुण देव घबरा गये। वह छुपने का स्थान ढूँढ़ने लगे, परन्तु हिरण्याक्ष ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। इससे वरुण देव ने सोचा कि वह हिरण्याक्ष को नहीं हरा सकते, वह सर्वशक्तिमान है। घमण्ड से भरा हिरण्याक्ष लगातर समुद्र मंथन करता रहा।
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अवतार – वराह का | Avtaar – Vraah ka : फिर वह नारद मुनि से मिला। हिरण्याक्ष ने उनसे पूछा “क्या कोई मेरे समान बलशाली हैं.” नारद मुनि ने जवाब में कहा की केवल भगवान् विष्णु तुम्हारे समान बलशाली है। हिरण्याक्ष ने भगवान् विष्णु को हर जगह ढूँढ़ना प्रारम्भ कर दिया, लेकिन वह उसे कहीं नहीं मिलें। तब थक हार कर उसने पूरी धरती को एक गेंद के आकार में एकत्र कर दिया और भगवान् विष्णु की खोज के लिए पाताललोक चला गया। यह देखकर सभी देवता, विष्णु भगवान् के पास सहायता के लिए पहुँचे और बोले, “प्रभु! हमें बचा लीजिए, हिरण्याक्ष धरती को लेकर अदृश्य हो गया है।” “घबराओ नहीं, मैं जानता हूँ वह धरती को पाताललोक ले गया है। मैं शीघ्र ही धरती को उसकी पूर्व स्थिति में ले आऊँगा और तुम्हारी पूरी तरह से सहायता करूगाँ।” विष्णु ने कहा तब भगवान् विष्णु ने दो दाँतों वाले जंगली सूअर अर्थात वराह का रूप धारण किया और पाताललोक चले गये।
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अवतार – वराह का | Avtaar – Vraah ka : वहाँ पहुँचकर वराह ने हिरण्याक्ष को ललकारा और दोनों के बीच भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया। हिरण्याक्ष ने वराह पर अनेक शस्त्रों से प्रहार किया, परन्तु उनका भगवान विष्णु पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। अन्त में हिरण्याक्ष ने अपनी शक्तिशाली बाहों से जंगली सूअर अर्थात् वराह की गर्दन को घोंटना चाहा। ठीक उसी समय भगवान् विष्णु वराह का रूप छोड़कर अपने वास्तविक रूप में आ गये। विष्णु ने हिरण्याक्ष पर चक्र से वार किया। चक्र ने हिरण्याक्ष के सिर को धड से अलग कर दिया। शीघ्र ही हिण्यक्ष ने अपनी अंतिम सांस लेनी शुरू कर दी। तब भगवान् विष्णु ने पुन: वराह रूप धारण कर लिया। उन्होंने गेंद रूपी पृथ्वी को उठाया और अपने दोनों दाँतों पर रखकर समुद्री मार्ग से पाताललोक छोड़ दिया। फिर उन्होंने पृथ्वी को उसके वास्तविक स्थान पर रखा और अपने वास्तविक रूप में आ गये। उधर सभी देवता दुष्ट हिरण्याक्ष की मृत्यु की सूचना पाकर प्रसन्न हुए। सभी ने भगवान् विष्णु की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उनके चरणों पर पुष्प अर्पित किये।
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