अहंकार – देवताओ का | Ahnkaar – Devtao ka
अहंकार – देवताओ का | Ahnkaar – Devtao ka : एक बार असुरो के साथ युद्ध के बाद अग्निदेव, वायुदेव तथा इन्द्र देव अमरावती को लौट रहे थे। अमरावती स्वर्ग का एक बहुत सुन्दर बगीचा था, जहाँ देवताओं के लिए सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होती थीं। अग्निदेव बोले, “क्या युद्ध था। अन्त में हमनें अपनी शक्ति से एक बार, असुरों के साथ युद्ध के ‘असुरों को पराजित कर दिया।” “हाँ, हमारे समान कोई बलशाली नहीं।” वायुदेव बोले इन्द्र बोले, “हमारे समान कोई शक्तिशाली नहीं हो सकता। चलो विश्राम करें और अपनी विजय का उत्सव प्रसन्नतापूर्वक मनाएँ।” तभी थोड़ी दूरी पर उन्हें यक्ष दिखाई दिया। अग्निदेव उससे बात करने के लिए आगे आये।
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अहंकार – देवताओ का | Ahnkaar – Devtao ka : यक्ष ने पूछा, “तुम कौन हो और क्या कर सकते हो?” “मैं अग्नि हूँ, आग का देवता। मैं किसी को भी जलाकर राख कर सकता हूँ।” अग्निदेव ने कहा। यक्ष ने कहा, “यदि ऐसा है, तो घास के इस तिनके को जलाओ, ताकि मैं तुम्हारी शक्ति देख सकूं।” यक्ष ने घास का एक तिनका भूमि पर रखा। अग्नि ने घास के तिनके को जलाना चाहा, परन्तु वह उस घास के तिनके को जला न सका। अग्निदेव ने अनेक प्रयास किए परन्तु हर बार असफल रहे।
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अत: वह वायुदेव के पास गए और बोले, “वायु, यक्ष ने एक घास के तिनके को जलाने के लिए मुझे – ललकारा है, परन्तु मेरी सारी शक्ति भी उसे जला नहीं पाई। जाओ और पता लगाओ कि यह यक्ष कौन है।” अब वायुदेव, यक्ष के पास गए। यक्ष ने वायुदेव से पूछा, पास कौन-सी शक्ति है?” “मैं वायु हूँ, हवा का देवता। । यदि मैं चाहूँ तो बड़े-से-बड़े हैं ” पर्वत को भी हवा में उड़ा सकता हूँ।” “यदि ऐसा है, तो क्या तुम घास के इस तिनके को उड़ा । सकते हो?” यक्ष ने वायुदेव को ललकारा। वायुदेव तिनके के पास गए और अपनी सारी शक्ति लगाकर खूब जोर से फूंक
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अहंकार – देवताओ का | Ahnkaar – Devtao ka : मारी जिससे हवा बहुत तेज़ी से चलने लगी. सभी पेड़ तथा झाड़ियाँ जड़ से उखड़ गए, परन्तु घास का तिनका वहीं रहा, वह टस से मस नहीं हुआ। यह देखकर वायुदेव बहुत असमंजस में पड़ गए। वह इन्द्रदेव के पास गए और बोले, “इन्द्र, मेरी सारी शक्ति भी उस तिनके को उसके स्थान से नहीं हिला सकी। मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं। कृपया जाओ और जाकर देखो कि वह कौन है?” यह जानने के लिए जब इन्द्रदेव यक्ष के समीप पहुँचे, तो वह अदृश्य हो गया और उसके स्थान पर एक सुन्दर अदृश्य देवी प्रकट हो गई,
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वह उमा हेमावती थीं। इन्द्र ने झुककर उन्हें प्रणाम किया और बोले, “हे माता, शक्तिशाली अग्नि व वायु यह क्यों नहीं पता लगा पाए कि वास्तव में यक्ष कौन था? मेरे आते ही वह अदृश्य क्यों हो गया। कृपया इस रहस्य से मुझे अवगत् कराएँ।” “हे इन्द्र, वह स्वयं भगवान् ब्रह्मा थे, जिन्होंने असुरों के विरुद्ध वह युद्ध जीता था जो तुम्हारे द्वारा लड़ा गया था। जिसे जीतकर तुम सभी अपनी जीत के गर्व से फूले नहीं समा रहे थे। तुमने सोचा कि तुम विजयी हुए, परन्तु वास्तव में वे भगवान् थे जिन्होंने तुम्हें वह युद्ध जितवाया। उन्होंने तुम्हें
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अहंकार – देवताओ का | Ahnkaar – Devtao ka : नम्रता की शिक्षा देने के लिए यक्ष का रूप धारण किया। “धन्यवाद माँ, आपने मुझे इतना महत्वपूर्ण ज्ञान दिया कि ब्रह्मा, जो हमारी सृष्टि के रचयिता है, सर्वशक्तिमान हैं?” इन्द्र ने कहा। इन्द्र, वायु और अग्नि के पास गए और बोले, “वह ब्रह्मा जी थे, जिन्होंने असुरों के विरुद्ध युद्ध जीतने में हमारी सहायता की थी। हमें झूठा घमण्ड नहीं करना चाहिए।” क्योंकि घमंड करने से कभी किसी की जीत नहीं हुई है। इस ज्ञान के प्रकाश ने सभी देवताओं की आत्माओं को प्रकाशवान बना दिया, जिसकी चमक हम आकाश में अनेक प्रकार के तारो तथा वायु व बादलो की गडगडाहट के रूप में देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं.
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