एक चरवाहा – श्री कृष्णा | Ek Charwaha – Shri Krishna

एक चरवाहा – श्री कृष्णा | Ek Charwaha – Shri Krishna

एक चरवाहा – श्री कृष्णा | Ek Charwaha – Shri Krishna : अपने बचपन के समय कृष्ण नन्द बाबा की चरवाहे बालक के रूप में सहायता करते थे।
वह अपने भाई बलराम व अन्य मित्रों के साथ दिन में पशुओं को खेतों तथा जंगलों में चराने के लिए ले जाते थे। वे जानवरों को चरने के लिए छोड़ देते थे और तब सभी बालक आँख मिचौली तथा भागम-भाग खेलने में व्यस्त हो जाते थे। कभी-कभी कृष्ण की मधुर बाँसुरी की तान पर सभी नृत्य भी करते थे।

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एक दिन कृष्ण और उनके मित्र यमुना नदी के किनारे गये। वहाँ उन्होंने रोज की तरह अपने पशुओं को हरी घास चरने के लिए मैदान में छोड़ दिया। इसके बाद सभी बच्चे खेलने में व्यस्त हो गये। अचानक कृष्ण ने अपने पशुओं के बीच कुछ देखकर अपने बड़े भाई बलराम से कहा, ‘ भैया वह देखो, हमारे जानवरों के बीच काले धब्बों वाला बछड़ा। ये हमारे गाँव के पशुओं से मेल नहीं खाता। हम इसे अलग से तो साथ नहीं लाये।” “हाँ कृष्ण, ये बाकी सब जानवरों से अलग दिख रहा है।” बलराम ने कहा।

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एक चरवाहा - श्री कृष्णा | Ek Charwaha - Shri Krishna

एक चरवाहा – श्री कृष्णा | Ek Charwaha – Shri Krishna : बलराम और कृष्ण ने झाड़ियों में छिपकर चोरी से उनकी तरफ पीठ किए हुवे बछड़े को पकड़ने का प्रयास किया तब कृष्ण ने बछड़े को उसकी पूंछ से पकड़कर हवा में दो बार घुमाकर पूरी शक्ति से एक ओर को फेक दिया। बछड़ा जोर से पास ही के पेड़ो के झुण्ड पर गिरकर टकराया व मर गया। मरते ही वह बछड़ा अपने वास्तविक रूप में आ गया। वास्तव में वह एक राक्षस था, जो एक बछडे के रूप में कृष्ण को हानि पहुँचाने आया था। उस राक्षस का यह अंत देख सभी बालकों ने प्रसन्न होकर तालियाँ बजाई व कृष्ण की जय-जयकार की।

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एक चरवाहा - श्री कृष्णा | Ek Charwaha - Shri Krishna

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