दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi

दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi : एक दिन भगवान् इंद्र अपने दरबार में बैठे हुवे नार्तियाओ का नृत्य देख रहे थे, परन्तु उस वक़्त उनका ध्यान वहाँ नहीं बल्कि कहीं और था। वह सोच रहे थे, “मुझे ऋषि दध्यन के पास जाना चाहिए, एक वही है जो मुझे ज्ञान देकर मेरी आत्मा की अशान्ति को दूर करेंगे।” अत: इन्द्र, ऋषि दध्यन के आश्रम में गए। उन्हें झुककर प्रणाम किया और बोले, “महर्षि, मुझे स्वर्ग के सुखों में कोई रुचि नहीं है। अभी-अभी मैंने असुरों को पराजित किया है, इसलिए मैं प्रसन्न हूँ। परन्तु मैं यह जानता हूँ कि वह किसी भी समय दोबारा मुझ पर आक्रमण कर सकते हैं। कृपया आप मुझे मधु विद्या का ज्ञान दें। केवल वही ऐसी विद्या है जो मेरे भय को दूर कर सकती है।” “अवश्य इन्द्र, केवल मधु विद्या का ध्यान ही सभी भयों को दूर कर देता है। मैं अवश्य ही तुम्हें यह विद्या सिखाऊँगा।”

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दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi

दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi : ऋषि दध्यन ने कहा। अत: इन्द्र एक आज्ञाकारी शिष्य के रूप में दध्यन ऋषि से मधु विद्या सीखने लगे। मधु विद्या की पूर्ण ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्द्र बोले, “धन्यवाद महर्षि, आपने मुझे मधु विद्या सिखाई। परन्तु आपको यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि आप मेरे बाद यह विद्या किसी और को नहीं सिखाएंगे। यदि आपने ऐसा किया तो मैं आपका सिर हजार टुकडों में काट दूँगा।”

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ऋषि दध्यन ने वचन दिया, “निशिचत होकर जाओ। मैं यह विद्या किसी मधु विद्या के ज्ञान के कारण इन्द्रदेव का मुख एक अलग ही लालिमा से चमक गया। जब वह स्वर्ग पहुँचे, तो दो अश्विनियों ने उन्हें देखा और बोले, “इन्द्र को देखो, वह कितने शान्त दिख रहे हैं। उनके मुख पर एक अलग ही चमक है। हमें भी ऋषि दध्यन के पास मधु विद्या सीखने के लिए जाना चाहिए, ताकि हमें भी जीवन में कोई भय न रहे।”

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दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi
दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi : अत: दोनों अश्विनी, ऋषि दध्यन के आश्रम में पहुँचे। प्रणाम करने के पश्चात् उन्होंने ऋषि से मधु विद्या सिखाने का आग्रह किया। इस पर ऋषि ने इन्द्र को दिए गए अपने वचन के बारे में उन्हें बताया। इस समस्या के हल के लिए अश्विनी बोले, “महर्षि, हम इस समस्या को बड़ी सरलता से हल कर सकते हैं। आपके शिक्षा प्रारम्भ करने से पहले ही हम आपके सिर को काटकर एक घोडे के सिर से बदल देंगे। आप हमें उस घोड़े के मुख से शिक्षा दे देना।” और उसके बाद उन्होंने ऋषि को अपनी योजना बताई।

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अत: अशिविनियों ने एक घोड़े को मारा तथा ऋषि दध्यन की गर्दन काटकर वहाँ पर घोड़े का सिर लगा दिया और दध्यन ऋषि ने उन्हें विद्या सिखानी प्रारम्भ कर दी। जिस समय दध्यन ऋषि उन्हें विद्या सिखा रहे थे तभी इन्द्र को इस बात का पता चल गया और वे क्रोध से भरे हुए ऋषि के आश्रम में आए। उन्होंने देखा ऋषि उनसे थोड़ी दूर एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं, इसलिए उन्होंने अपना हथियार फेंककर उनकी गर्दन काट दी और स्वर्ग वापस आ गए। इन्द्र के वापिस स्वर्ग चले जाने के पश्चात् अश्विनियों ने ऋषि दध्यन की गर्दन वापस लगा कर उनके शरीर को एक बार फिर पूर्ण कर दिया। अत: इस तरह ऋषि दध्यन अपने वास्तविक सिर के साथ ही जीवित रहे.

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दध्यन ऋषि | Ddhyan Rishi

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