ऐरावत और कालकूट विष : समुद्र-मंथन फिर शुरू हो गया। इस बार तीव्र गति से मंथन किया जा रहा था। कुछ समय बाद समुद्र से सफेद दांतों वाला ऐरावत हाथी प्रकट हुआ। उसे इंद्र ने इंद्रलोक भेज दिया। उसके जाते ही भयानक कालकूट विष, विषम ज्वालाओं को फेंकता तथा गहरा काला धुआं उड़ाता हुआ प्रकट हुआ तो सभी देव-दानव घबराकर भाग खड़े हुए। विष की भयानक ज्वालाओं ने मंदराचल के वृक्षों में आग लगा दी। चारों ओर धुआं ही धुआं फैलने लगा। कोई भी उसे ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं हुआ।
भगवान विष्णु ने पुकारकर उन्हें रोकना चाहा, पर वे वहां रुकने को तैयार नहीं थे। भगवान ने उनसे कहा, ‘इस प्रकार भागने से तुम लोग अमृत प्राप्त करने से वंचित रह जाओगे। इस विष की उष्णता को सहन करो। तभी तुम अमृत का स्वाद चख पाओगे।”
देवता बोले, “भगवन! अमृत तो तब चखेंगे, जब हम इस कालकूट विष से बच पाएंगे।”
जबकि राक्षसों का कहना था, “प्रभु ! इस कालकूट विष से हमारी रक्षा करो। इसकी तपिश से हमारा शरीर जला जा रहा है।”