तूफान में फंसा गांधी परिवार : दक्षिण अफ्रीका में तीन वर्ष के प्रवास में बैरिस्टर गांधी की वकालत चल निकली थी। रंगभेदी सरकार के विरुद्ध छेड़ा आंदोलन जोर पकड़ रहा था। इस बीच वे छ: माह की छुट्टी लेकर हिंदुस्तान आए। तभी, दो माह बाद ही उनसे तत्काल नेटाल लौटने का अनुरोध किया गया।
दिसंबर, 1896 में गांधी जी अपनी पत्नी कस्तूरबा और दो बेटों के साथ दादा अब्दुल्ला के स्टीमर ‘कुरलैण्ड’ पर सवार होकर नेटाल के लिए चल पड़े। उस स्टीमर के साथ ‘नादरी’ नाम का एक दूसरा स्टीमर भी था। दोनों स्टीमरों में 800 यात्री सवार थे।
मार्ग में समुद्र के मध्य अचानक एक जोरदार तूफान आ गया। दोनों स्टीमर उस तूफान में घिर गए। यात्री घबरा उठे। सभी यात्री जाति, धर्म और संप्रदाय का भेद-भाव भूलकर एक साथ प्रार्थना करने लगे। गांधी जी उस तूफान से जरा नहीं घबराए और सभी को तसल्ली देते रहे। आखिरकार तूफान ठहर गया। लोगों की जान में जान आई।