द्रुपद की याज से विनती : उपयाज की बात सुनकर द्रुपद को जहां गहरी निराशा हुई, वहीं यह जानकर प्रसन्नता भी हुई कि उनके ज्येष्ठ भ्राता याज पुत्रेष्टि यज्ञ सफलतापूर्वक कराने में समर्थ हैं।
अब द्रुपद ने याज के आश्रम की राह पकड़ी। कुछ समय तक याज की सेवा आदि करके द्रुपद ने उन्हें प्रसन्न किया। एक दिन याज का अनुकूल व्यवहार देखकर द्रुपद ने उनसे विनती की, “हे, ब्राह्मण देव! मैं पुत्रेष्टि यज्ञ करवाना चाहता हूं। कृपा करके आप मेरा यह यज्ञ सफलतापूर्वक सम्पन्न करा दीजिए। मैं आपको दस करोड़ गौएं दूंगा।’
“ठीक है राजन् !” याज ने द्रुपद की विनती पर सहमति देते हुए कहा, “मैं आपके लिए यह यज्ञ कराऊंगा।”
“तब गणना करके यज्ञ हेतु शुभ मुहूर्त और आवश्यक सामग्री बताने की कृपा करें।’ याज ने द्रुपद को पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए सभी आवश्यक बातें बताईं तो द्रुपद यज्ञ की आवश्यक सामग्री का प्रबंध करने लगे। इस शुभ और श्रेष्ठ कार्य में वे किसी सेवक की सहायता नहीं लेना चाहते थे।