सुहासिनी बनी पहली सदस्या : जब मदर लोरेटे सेंट मैरी कॉन्वेन्ट हाई स्कूल, कलकत्ता में शिक्षिका और प्राचार्या थी, उस समय वहां सुहासिनी नाम की एक छात्रा अध्ययन करती थी। उसकी सामाजिक कार्यों में विशेष रुचि थी। वह प्रत्येक शनिवार को छात्राओं के साथ मलिन बस्तियों में सेवा करने जाती थी। मदर को इस बात की जानकारी थी।
उस समय मदर’ मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की एकमात्र सदस्या थीं। एक दिन सुबह सुहासिनी दास ने मदर के सामने अपने मन की बात कह दी। वह ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की सदस्या बनना चाहती थी। | मदर ने सुहासिनी को मिशनरीज और सामाजिक कार्यों को करते समय आने वाले संघर्षों एवं बाधाओं तथा अपेक्षाओं की जानकारी दी, लेकिन सुहासिनी को अहसास हो गया था कि उसके जीवन का लक्ष्य गरीबों और रोगियों की सेवा करना है। इस तरह सुहासिनी’ मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की पहली सदस्या बनीं-मदर इसकी संस्थापक थीं।