अंग्रेजो भारत छोड़ो : जुलाई 1942 में कांग्रेस कार्यकारिणी की एक बैठक वर्धा में हुई। उसमें विचार हुआ कि द्वितीय । विश्वयुद्ध में स्वराज्य पाने की शर्त पर सरकार का साथ दिया जाए। पर गांधी जी इसके विरुद्ध थे। अगले माह अगस्त 1942 में कांग्रेस का अधिवेशन बंबई में हुआ। उसमें निर्णय हुआ कि अंग्रेजो से भारत छोड़ने के लिए कहा जाए।
गांधी जी ने भारत की जनता का आह्वान करते हुए मंच से कहा, “अंग्रेजो भारत छोड़ो। भारतवासियो, आज से तुम आजाद हो । स्वाधीनता के लिए करो या मरो।”
गांधी जी के इस नारे ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम में एक नई जान फेंक दी। गांधी जी के नेतृत्व में आजादी के दिवाने सड़कों पर उतर आए।
अंग्रेजी सरकार को अब लगने लगा था कि उनका दमन-चक्र भी अब इन्हें दबा नहीं पाएगा। फिर भी उन्होंने देश के बड़े-बड़े नेताओं को जेल में ठूस दिया और पूरे देश में अपना दमन-चक्र चला दिया। हिंसा और अहिंसा का वैसा संघर्ष पहले कभी देखने को नहीं मिला।