अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka

अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka

अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka : हिरन्यकश्यप ने जब अपने भाई हिरान्याक्ष की मृत्यु की सूचना सुनी, तो वह क्रोध से भर उठा। वह भगवान विष्णु से प्रतिशोध लेना चाहता था। अत: उसने सभी दुष्ट राजाओं, असुरों एवं दैत्यों को मंत्रणा के लिये बुलाया। मंत्रणा करने के बाद, उसने अपना त्रिशूल उठाया और भगवान् विष्णु को जान से मारने की प्रतिज्ञा ली। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी सेना को पृथ्वी पर भेजकर साधुओं, ऋषियों और भगवान् के प्यारे भक्तों को मारने का आदेश दिया। शीघ्र ही असुरों और दैत्यों ने साधुओ व ऋषियों के आश्रमों को तोड़कर व जलाकर चारों ओर अशाति फैला दी। हिरण्यकश्यप स्वयं मन्द्रांचल पर्वत पर चला गया और अपने सीधे पैर के पंजे पर खड़ा होकर भगवान् ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या में लीन हो गया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् ब्रह्मा उसके सामने प्रकट हुए, और उन्होंने हिरण्यकश्यप से वरदान माँगने के लिये कहा तो वह बला, “हे भगवान् यदि आप मुझसे सचमुच प्रसन्न हैं,

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अवतार - नरसिंह का | Avtaar - Narsingh ka

अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka : मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं न तो किसी मनुष्य, देवता, दैत्य व असुर के द्वारा मारा जा सकूं। और न ही कोई अस्त्र – शस्त्र मुझे मार सके। न ही मैं रात को और न ही दिन को मर सकूं। देवता और असुर सभी मुझसे हार मान जाएँ? न मैं धरती पर मरूं और न ही आकाश में मरूं।” भगवान् ब्रह्मा ने उसे उपरोक्त वरदान दे दिया। अब हिरण्यकश्यप को अपनी अमरता पर पहले से भी अधिक विश्वास हो गया। घमण्ड में आकर उसने आदेश दिया कि उसके राज्य में यदि कोई भी भगवान विष्णु की प्रार्थना या पूजा करते हुए पाया गया, तो उसे मृत्यु दण्ड दिया जाएगा। हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे। सबसे छोटे पुत्र का नाम प्रहलाद था। उसे ऋषि शुक्राचार्य के पुत्रों शंड और अमरक ने शिक्षा दी। शंड और अमरक हिरण्यकश्यप के पास शिकायत लेकर गये, “महाराज, आपका पुत्र वह सब नहीं सीखता, जो कि हम उसे सिखाते हैं। वह तो भगवान विष्णु का ऐसा भक्त बन चुका है कि सारा समय भगवान् विष्णु का ही जाप करता रहता है।” हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बुलाया और पूछा कि वह ऐसा क्यूँ करता हैं? प्रहलाद ने उत्तर दिया “पिताजी, भगवान् विष्णु ही पूरी पृथ्वी के संरक्षक हैं, यही कारण है कि मैं उनकी पूजा करता हूँ।

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अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka : मैं जानता हूँ कि आपके राज्य में आपके आदेश के अनुसार लोग केवल आपकी ही पूजा करते हैं। मेरे गुरुओं ने भी अन्य लोगों की तरह मुझे आपकी पूजा करने को कहा, परन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता।’ तब हिरन्यकश्यप ने अपने राजपुरोहित से अपने पुत्र की शिक्षा की देख-रेख करने की कहा, ताकि वह भगवान् विष्णु की पूजा करनी छोड़ दे। परन्तु ऐसा नहीं हो पाया। दूसरी ओर राजपुरोहित के आश्रम में आने वाले लोग भी प्रहलाद से प्रभावित होकर उसी की तरह भगवान् विष्णु की पूजा करने लगे। एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से पूछा, “पुत्र, तुम्हें सबसे अच्छा क्या लगता है?” प्रहलाद ने कहा “भगवान विष्णु के नाम का जाप करना।”

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अवतार - नरसिंह का | Avtaar - Narsingh ka

अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka : “तुम्हारे अनुसार सबसे शकिशाली कौन हैं” हिरन्यकश्यप ने पूछा? “और कोई नहीं केवल पृथ्वी के संरक्षक भगवान् विष्णु।” यह सुन हिरन्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ. उसने अपने पहरेदारो ने प्रहलाद को विष देने को कहा. प्रहलाद ने विष से भरा हुआ प्याला तुरन्त ही पी लिया, परन्तु वह फिर भी जीवित रहा। सभी इस चमत्कार को देख कर हैरान थे। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि प्रहलाद को एक चट्टान से बाँधकर समुद्र में डूबने के लिए फेंक दिया जाये। परन्तु चमत्कार, जिस रस्सी से प्रहलाद को बाँधा गया था, वह खुल गयी और वह भगवान् विष्णु का जाप करते हुए समुद्र की लहरों पर चलता हुआ एक बार फिर मौत के मुँह से बाहर आ गया। इसके पश्चात् प्रहलाद को जलती हुई चिता पर बैठाया गया, परन्तु चिता की एक भी लपट उसके शरीर को नहीं छू पाई। अर्थात् इससे भी उसको कोई हानि नहीं हुई।

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अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka : अब हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को एक खम्भे से बंधवा दिया और उसकी गर्दन काटने के लिये तलवार उठायी। अचानक, पृथ्वी डगमगा गयी। खम्भा टुकड़े-टुकड़े हो गया और सभी के सामने उसमें से एक अजीब किस्म का जानवर निकलता हुआ दिखाई दिया। वह भगवान् विष्णु का नरसिंह अवतार था। उसका सिर शेर का था और

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अवतार – नरसिंह का | Avtaar – Narsingh ka : बाकी धड़ मानव का था। उसने हिरण्यकश्यप को पकड़ा और अपनी गोद में लिटा लिया और अपना मुँह द्वार की ओर कर लिया, परन्तु हिरण्यकश्यप चिल्लाया, “तुम कौन हो? तुम मुझे नहीं मार सकते।” नरसिंह दहाड़ कर बोले, “भगवान ब्रह्मा से तुमने वरदान माँगा था कि तुम्हें कोई देवता, मनुष्य, दैत्य या असुर न मार सके। न ही दिन न ही रात में न ही पृथ्वी पर और न ही आकाश पर तुम्हें कोई मार सके। सो अब ये न दिन है और न ही रात ये शाम का समय हैं और तुम मेरी गोद में हो, जो कि न तो पृथ्वी है और न ही आकाश। ठीक उसी तरह न ही मैं मनुष्य हूँ, न ही देवता, असुर और न ही दैत्य। मेरे पास न कोई अस्त्र है और न ही कोई शस्त्र, परन्तु मेरे तीखे नाखून तुझे मार डालेंगे। अत: भगवान् ब्रह्मा के वरदान का अपमान किये बिना मैं तुम्हें मार रहा हूँ।”
“इस प्रकार हिरण्यकश्यप, भगवान् विष्णु के नरसिंह अवतार द्वारा मारा गया। सभी लोगों तथा प्रहलाद ने नरसिंह अवतार की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

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