अवतार वामन का | Avtaar Vaman ka
अवतार वामन का | Avtaar Vaman ka : समुद्रमंथन के बाद देवता एक बार फिर अमर व शक्तिशाली हो गए इंद्र की सेना ने दैत्यराज बलि और दैत्यों की सेना को हरा दिया. दैत्यराज शुक्राचार्य से मिलने गए और मिलने पर बोले, “आचार्य मुझे मेरी शक्ति और राज्य पुन: प्राप्त करने का मार्ग दिखाइये”. “अपनी शक्ति व साम्राज्य पुन: प्राप्त करने के लिए तुम्हें महाभिषेक विश्वजीत यज्ञ करना पड़ेगा।” शुक्राचार्य ने जवाब दिया। दैत्यराज बालि शुक्राचार्य की देख-रेख में यज्ञ करने के लिए तैयार हो गये।
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अवतार वामन का | Avtaar Vaman ka : उस यज्ञ द्वारा बालि को वायु की गति से चलने वाला, चार अश्वों से सुसज्जित स्वर्ण रथ, कभी न समाप्त होने वाले तीरों का तरकश व साथ में एक ध्वज, जिस पर सिंह का सिर बना था तथा इन सबके साथ अनेक अस्त्र और शस्त्र प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त, शुक्राचार्य ने सदैव महकने वाले पुष्प तथा एक शंख दिया, जिसकी आवाज बहुत तीव्र थी। यह सब शक्तियाँ पाने के बाद बालि एक बार फिर इन्द्र के विरुद्ध युद्ध करने चल पड़ा।
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जैसी कि आशा थी, दैत्यराज बालि युद्ध जीत गये और इन्द्र युद्ध भूमि छोड़कर भाग गये। इसके पश्चात् अपनी विजयी स्थिति को बनाए रखने के लिए बालि ने शुक्राचार्य से परामर्श किया। शुक्राचार्य बोले, “तुम एक निर्भय और शक्तिशाली जीवन व्यतीत कर सकते हो। इसके लिए तुम यज्ञ करना और ब्राह्मणों व निर्धनों को दान देना प्रारम्भ करो।”
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अवतार वामन का | Avtaar Vaman ka : बालि इसके लिये तैयार हो गए। इस बीच इन्द्र ने देवताओं की शक्ति पुन: प्राप्त करने के लिए आचार्य बृहस्पति से सहायता माँगी। आचार्य बृहस्पति ने इन्द्र को भगवान् विष्णु से सहायता माँगने के लिए कहा। भगवान् विष्णु की सहायता प्राप्त करने के लिए इन्द्र ने तपस्या करना आरम्भ कर दिया। महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति इन्द्र की माँ थीं। अपने पुत्र को संकट में देख वह भगवान् विष्णु के पास गई। भगवान् विष्णु बोले, “मैं तुम्हारी सहायता करूंगा देवमाता। भविष्य में, मैं मानव के रूप में तुम्हारा पुत्र बनकर जन्म लूगा और बालि का सर्वनाश करूंगा।”
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कुछ समय बाद अदिति ने
एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम वामन रखा गया। एक दिन वामन ब्राह्मण रूप धारण कर उस स्थान पर गया जहाँ दैत्यराज बलि और शुक्राचार्य यज्ञ कर रहे थे। बालि ने ब्राह्मण पुत्र अर्थात् वामन का स्वागत् किया और बोले, “मैं तुम्हारी किस प्रकार सहायता कर सकता हूँ?” ब्राह्मण बोला, “मैंने सुना है कि तुम ब्राह्मणों को बहुत दान देते हो। मुझे कोई धन-सम्पत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल धरती चाहिए जो मेरे तीन कदमों के बराबर हो।”
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अवतार वामन का | Avtaar Vaman ka : वहाँ उपस्थित लोग उसकी प्रार्थना सुनकर अचम्भित हो गये। वहाँ खड़े असुर यह सुनकर हँसने लगे। दैत्यराज बालि उसकी प्रार्थना को मान गये। अचानक यह देख सभी हैरान हो गये कि ब्राह्मण पुत्र आकार में बढ़ते जा रहे हैं। शीघ्र ही वह पृथ्वी से भी अधिक विशाल हो गये। उन्होंने अपना पहला कदम उठाया और अपने पहले पग में धरती को नाप लिया, दूसरा पग उन्होंने अमरावती पर रखा, जो दैत्यराज बालि के नियन्त्रण में था। इस प्रकार अमरावती अब ब्राह्मण पुत्र के अधिकार में आ चुका था। अब ब्राह्मण पुत्र बोले, ‘बालि, मैं अपना तीसरा पग कहाँ रखें?
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अब पृथ्वी और स्वर्ग दोनों पर ही मेरा अधिकार है।” यह देख शुक्राचार्य ने बालि को चेतावनी दी, “सावधान रहो, मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह ब्राह्मण पुत्र वामन स्वयं भगवान् विष्णु हैं। इन्हें तीसरा पग मत रखने देना अन्यथा तुम अपना सब कुछ हार जाओगे।” बालि बोला, “परन्तु, आचार्य मैं अपने वचन से नहीं मुकर सकता? मुझे किसी का भय नहीं। ” असुरों और दैत्यों ने जब यह सब सुना तो वे सब वामन पर आक्रमण करने के लिये आगे बढ़े, परन्तु वह उन्हें किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सके। तब बालि वामन से बोले, “आप ऐसा करे कि अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रख दें।” बालि की ईमानदारी और भक्ति को देख भगवान् विष्णु अपने वास्तविक रूप में आ गये और बोले, “मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की तुम पातळलोक पर सदा के लिए राज करो”.
इस प्रकार दैत्यराज बलि वापस पाताललोक चले गए और इंद्र व अन्य बाकी देवता भगवान् विष्णु के वामन अवतार के कारण अमरावती पर रहने लगे.
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