दीवार पे सुराख – Short Stories for Kids

Short Stories for Kids
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Short Stories for Kids : एक छोटा सा गाँव था जिसमे एक छोटा सा बच्चा, जिसका नाम रवि था, ओर उसके माता पिता रहते थे.वह लड़का उनकी एकलौती संतान थी.उस लड़के के माता पिता अपने लड़के के गुस्से करने की आदत से बहुत ज़्यादा परेशन थे.रवि छोटी छोटी सी बातों पे बहुत जल्दी गुस्सा हो जाया करता था और दूसरे लोगो को अपनी बातो से ताने मारता था.उसने अपने से छोटे बच्चों को,अपने पड़ोसियों को यहाँ तक की अपने दोस्तो को भी कई बार डाँटता था गुस्से में.इससे उसके माता पिता को भी परेशानी उठानी पड़ती थी.रवि गुस्से मे यह भूल जाता था की वह क्या बोल रहा है लेकिन उसकी इस गंदी आदत से उसके दोस्त ओर पड़ोसी लोग उससे दूर रहने लगे.

 

उसके माँ बाप से कई बार उसको अपना गुस्सा कम करने ओर शांत रहने की सलाह दी लेकिन उसके हर बार प्रयास असफल हो जाते थे.आख़िरकार उसके पिता को एक उपाय सूझा.

 

एक दिन उसके पिताजी ने रवि को बुलाया ओर उसे कीलों से भरा एक bag दिया.उन्होने रवि से कहा की जब तुम्हे बहुत गुस्सा आए और तुम अपना आपा खो दो तो हर बार एक कील दीवार पर ठोक देना.रवि को ये सब मज़ाक जैसा लगा पर उसने अपने पिता द्वारा दी गयी बात को स्वीकार करने का निश्चय किया.

 

पहले दिन उसने पूरे 30 कील दीवार पे ठोके.जब कभी भी उसे गुस्सा आता वह भाग के दीवार के पास जाता ओर एक कील ठोक देता.ऐसा कई दिनों तक चलता रहा.कुछ दिनो बाद दीवार पे कील ठोकने की संख्या लगभग आधी रह गयी.रवि भले ही बहुत गुस्से वाला था पर था तो छोटा बच्चा ही, उसे कील ठोकने मे अब परेशानी ओर तकलीफ़ महसूस होने लगी, इसलिए उसने अपने गुस्से को नियंत्रित करने का निश्चय किया.

 

इस तरह रोज कील ठोकने की संख्या मे कमी आने लगी क्यूंकी वह अपने गुस्से को नियंत्रित करने लगा था.आख़िरकार वो दिन भी आ गया जब उसने कोई कील दीवार मे नही ठोकी.उसने अपने पिता को ये बात बताई की कई दिन से उसने कोई कील दीवार पे नही ठोकी है.

 

अब उसके पिता ने उसे हर बार कील को निकालने को कहा जब वो अपने गुस्से को शांत करे.कई दिन बीतने के पश्चात रवि कई कीलों को बाहर निकालने मे कामयाब हो गया पर अब भी कई सारी कील बाकी थी.ये बात उसने अपने पिताजी को बताई.तब उसके पिता ने दीवार पे हुए छेद की तरफ इशारा किया ओर कहा की तुम्हे वहाँ क्या दिख रहा है.रवि ने जवाब दिया “दीवार पे सुराख”.

 

तब उसके पिता ने कहा, “ये कील तुम्हारे बुरे व्यवहार की तरह था जो की तुम दूसरे पे ईस्तमाल करते थे.तुम कीलों को दीवार से ज़रूर निकल सकते हो लेकिन फिर भी वहाँ उन सुराखों को देख पाओगे.दीवार पहले जैसी नही रहती.जब तुम एक इंसान को चाकू से मारते हो तो उसके घावों के निशान हमेशा बने रहते है.तुम्हारा गुस्सा ओर तुम्हारा व्यवहार भी ठीक इसी प्रकार है.शब्दों से की गयी बुराई किसी भी शारीरिक प्रताड़ना से ज़्यादा दर्द देती है.अपने शब्दों को अच्छे के लिए ईस्तमाल करो.इसे अपने संबंधों को अच्छा बनाने के लिए ईस्तमाल करो.इस तरह वो तुम्हारे अच्छे दिल को देख पाएँगे.

 

Moral of the Story – शब्दों से किए गये वार किसी को शारीरिक रूप से चोट पहुँचने से ज़्यादा दर्द देते है.शरीर के घाव तो भर जाते है लेकिन तीखे शब्द लोगो को हमेशा याद रहते है.

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