द्रोण की भाव विह्वलता : कृपी से बालक अश्वत्थामा की बात का कोई उत्तर देते न बना । विवशता के कारण उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। बालक अश्वत्थामा माता के आंसुओं की ओर ध्यान न देकर उसे झंझोड़ते हुए चीखा, “माताश्री ! मुझे उत्तर चाहिए….अपने प्रश्न का उत्तर चाहिए। बताओ, जब हमारे पास गाय नहीं है तो हमारे घर में दूध कहां से आया?”
विवशता और पीड़ा ने आक्रोश का रूप ले लिया और इसी आक्रोश में कृपी ने ‘तड़ाक्’ से एक जोरदार चांटा बालक के गाल पर जड़ दिया। वह स्तंभित हो गया। माता की मार ने मन पर गहरा आघात किया था। वह रोते-बिलखते टूटी-सी शय्या पर लेटा और सो गया।
जब द्रोण घर लौटे तो कृपी को उदास और अश्वत्थामा को अस्त-व्यस्त शय्या पर पड़े देखा। इसका जब उन्होंने कारण जानना चाहा तो कृपी का आक्रोश जैसे फट पड़ा। उसने उस दिन की बीती सारी घटना द्रोण को कह सुनाई। सब जानकर द्रोण भाव-विह्वल हो उठे। उन्होंने सोते हुए पुत्र के सिर पर हाथ फेरा और पत्नी को सांत्वना देकर सोच में डूब गए।