धन्ना भक्त की कथा : उपासना की नींव है ‘ श्रद्धा’ । जहां श्रद्धा होती है, वहीं सिद्धि होती है। निरंतर साधना से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। | इसी कलियुग में ‘धन्ना’ नाम का एक भक्त हुआ था। वह जाति से जाट था और बुद्धि से बिलकुल उजड्डु और मूर्ख। पढ़ाई-लिखाई के नाम पर वह कोरा अंगूठा टेक था। वह जब भी गांव के ब्राह्मणों को भगवान की पूजा-अर्चना करते देखता तो उसके मन में यह इच्छा होती कि वह भी उन्हीं की तरह भगवान की पूजा-अर्चना करे। परंतु वह नहीं जानता था कि पूजा कैसे की जाती है। | एक बार बहुत सोच-विचार के बाद गांव के एक ब्राह्मण से उसने पूछा, “पंडितजी ! भगवान की पूजा कैसे की जाती है?”
पंडित ने कहा, “अरे धन्ना ! पूजा-पाठ करना तेरे वश की बात नहीं है। और फिर क्या करेगा तू यह सीख कर। मुझे बता, तू कौन सी और किसकी पूजा करना चाहता है। मैं करवा दूंगा।”