धृष्टद्युम्न का जन्म : याज्ञिक याज के मंत्रोच्चारण के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ आरम्भ हुआ। ज्यों-ज्यों मंत्रोच्चारण के साथ हवनकुंड में आहुतियां डाली जाने लगीं, यजमान और पुरोहित दोनों के मुख का तेज बढ़ता गया। । यज्ञ सम्पन्न होने पर याज ने एक विशेष हवि तैयार की और द्रुपद की रानी को हवि देते हुए कहा,
इस हवि को खाने से तुम्हारे गर्भ से एक अत्यंत वीर और तेजस्वी पुत्र उत्पन्न होगा। वह राजा द्रुपद की अभिलाषा पूर्ण करेगा।” । रानी ने कहा, “देव! मैंने अभी स्नान नहीं किया। स्नान करके मैं हवि ग्रहण करूंगी।”
रानी के लौटने में विलंब होता जानकर याज ने हवि को यज्ञ-कुंड में डाल दिया। यज्ञ-कुंड से तब एक दिव्य युवक और युवती प्रकट हुए।याज ने युवक का नाम धृष्टद्युम्न और युवती का नाम कृष्णा रखा, जो बाद में द्रौपदी नाम से प्रसिद्ध हुई।
द्रुपद की अभिलाषा द्रोणाचार्य की मृत्यु थी। द्रुपद ने विचार किया कि युवक रूप में जन्मा धृष्टद्युम्न निश्चय ही द्रोणाचार्य का मृत्युदाता बनेगा।