नवरत्नों में एक विशिष्ट रत्न : फिर विद्योत्तमा के पास कालिदास रहे या नहीं इसका पूर्ण विवरण तो ग्रंथों में नहीं मिलता। लेकिन विद्वानों द्वारा यह स्वीकार किया जाता है कि विद्योत्तमा ने अपने वाक्य में जिन अस्ति, कश्चित, वाक्-शब्दों का प्रयोग किया था, उन्हीं से कालिदास ने अपने तीन महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की-अस्ति से ‘अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा, हिमालयो नाम मगाधिराजः’, कुमार संभव, कश्चित से ‘काश्चित कांता विरह गुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः’, मेघदूत और वाक् से वागर्थाविव संपृक्तक्तौ वागर्थः प्रतिपत्तये,’ रघुवंश महाकाव्य। इनके अलावा कालिदास की प्रसिद्ध रचनाएं हैं-मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् और ऋतुसंहार। इसके बाद चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में सम्मिलित हो गए। उन्हें सर्वोत्कृष्ट सम्मान दिया जाने लगा।