बंदी द्रुपद का द्रोणाचार्य से सामना : द्रुपद को बंदी अवस्था में ले जाकर आचार्य द्रोण के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया।
“पांचालराज महाराज द्रुपद!” द्रुपद को अपने सामने हथकड़ी-बेड़ियों में बंधे देख द्रोणाचार्य कटु स्वर में बोले, ”कहो, तुम कैसे हो? तुम्हारा राज्य कैसा है?’
“सब समय और परिस्थितियों का खेल है द्रोण!” द्रुपद निस्तेज स्वर में बोले, “समय कब किसका साथ दे और कब किसे धूल में मिला दे, यह कहना कठिन है।” | “हां द्रुपद ! तुम्हारी यह बात तो सर्वथा सत्य है, किंतु…,” द्रोणाचार्य गंभीरता से बोले, ‘‘दिया हुआ वचन और किया हुआ संकल्प कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता, भले ही ऐसा बाल्यकाल में क्यों न किया गया हो।’
‘द्रोण ! समय के बहाव में सब कुछ बह जाता है, फिर भी तुम जो कहना चाहते हो, करना चाहते हो…वह कहो और करो, मैं तुम्हारी हर प्रवंचना, प्रताड़ना सुनने-सहने को प्रस्तुत हूं।”
आचार्य द्रोण से बात करते समय द्रुपद आंखें नहीं मिला पा रहे थे।