बालक अश्वत्थामा का रोष : बालक अश्वत्थामा का रोष ‘माताश्री !” अश्वत्थामा रोष-भरे स्वर में बोला, “यदि उनका कथन अनुचित है और मेरे भाग्य में दूध है तो मुझे दूध दो।”
कृपी ने सिर हिलाकर निराश भाव से कहा, “ठीक है पुत्र! मैं तुम्हें अभी दूध देती हूं।”
कृपी बोझिल कदमों से रसोई में गई और एक कटोरे में पानी लेकर उसमें थोड़ा-सा आटा मिलाकर ले आई, ‘‘लो पुत्र! दूध पियो।”
बालक अश्वत्थामा को दूध का स्वाद तक पता न था। अतः उसने कटोरा मुख से लगाया और गटागट पीकर गर्वित भाव से बाहर चला गया। लेकिन कृपी दुख और विषाद के कारण रो पड़ी।
कुछ देर बाद ही अश्वत्थामा घर आया और रोते हुए बोला, “माताश्री ! मेरे साथी कहते हैं कि तुम्हारी माता ने जल में आटा घोलकर पिला दिया है। तुम्हारे पास गाय तो है नहीं, फिर घर में दूध कहां से आया?