बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah

बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah

बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah :  एक बहुत पुराना व बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उस पर रहने के लिए एक कौओं का जोड़ा आया। पेड़ की मोटी-मोटी शाखाएं थीं, हरे पत्तों का शामियाना – सा बना हुआ था, जिसमें सूरज की धूप भी नहीं आती थी। यह घोंसला बनाने के लिए सुरक्षित जगह थी। कौए इस जगह को पाकर बहुत खुश हुए। उन्होंने जल्दी ही उस पर घोंसला बना लिया। अब मादा कौआ को उसमें अंडे देने थे। घोंसला पत्तों से छिपा हुआ था, इसलिए बाहर से नजर भी नहीं आता था। एक दिन एक काला सांप उस बरगद के पेड़ के नीचे से गुजरा। उसने उस पेड़ के नीचे बड़ा-सा छेद देखा।

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बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah :  उसे वह बहुत पसंद आया, उसने उसे अपना घर बनाने का निश्चय किया। कौए उस सांप को देखकर डर गए। उन्हें पता था कि सांप उनके लिए खतरा है। कौआ अपने सभी पड़ोसियों से जैसे कि गिलहरी, कबूतर और छिपकली आदि जो सभी उस पेड़ पर रहते थे, इस विषय पर बातचीत करने लगा। ‘सांप से बचकर रहो, क्योंकि यह बहुत ही दुष्ट सांप है, मौका पाकर तुम्हारे सब बच्चों को खा सकता है।’ जब कौवी ने यह सुना तो वह रोने लगी। मैं इस घोंसले में अंडे कैसे दे सकती हूं, जबकि मुझे पता चल गया है कि यह सांप मेरे बच्चों को कभी भी खा सकता है। उसने कौए से कहा – ‘मैं यहां से जाना चाहती हूं।

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बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah :  हमें कोई अन्य सुरक्षित जगह ढूंढ़नी चाहिए, जो इस खतरनाक सांप से दूर हो। हम नया घोंसला बनाएंगे।’ ‘नहीं हम अपना घर बरगद के पेड़ पर ही बनाएंगे। ये जगह रहने के लिए सबसे अच्छी है। मैं इस सांप को भगाने की तरकीब सोचूगा। कौआ ने कौवी को समझाया। कौवी ने सात अंडे अपने घोंसले में दिए। वह उनकी बड़ी अच्छी देखभाल करती रही। जब वे अंडे पक गए, तो उनमें से सात सुंदर छोटे बच्चे निकले, छोटे बच्चों का चहकना सारे पेड़ पर सुनाई देता था। सांप ने भी उनकी आवाज सुनी और एक दिन जब कौए घोंसले से बाहर गए हुए थे, वह धीरे-धीरे पेड़ की टहनियों से ऊपर चढ़कर सारे बच्चों को खा गया।

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बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah

बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah :  जब कौए घर वापस आए, तो अपने प्यारे बच्चों को न पाकर बहुत दुखी हुए। मां कौवी रोने लगी। पिता कौए ने उसे ढाढस बंधाया – “तुम ज्यादा मत रोओ, मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तुम अगली बार अंडे दोगी, तो हम अंडों की रक्षा इस भांति करेंगे कि सांप को उनको खाने का अवसर ही नहीं मिलेगा।”
कुछ महीनों बाद कौवी ने फिर अंडे दिए। इस बार कौए बहुत होशियारी से अंडों की चौकीदारी करने लगे। मां कौवी फिर भी भयभीत थी। उसने पिता कौए से कहा – ‘तुम सांप को भगाने का कोई प्रयत्न जल्दी करो, नहीं तो वह हमारा घोंसला ढूंढ़ लेगा और मेरे प्यारे बच्चे मारे जाएंगे।”

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पिता कौआ एक बूढ़ी और बुद्धिमान लोमड़ी के पास गया। वह भी कभी – कभी उस पेड़ पर आती थी। उसने कौए की सारी दुख – भरी कथा सुनी, फिर उसे एक उपाय सूझा। उसने कौए को अगली सुबह नदी किनारे जाने को कहा। वहां पर राजा की रानियां नहाने आती थीं। वे सभी अपने कपड़े और जेवर नदी किनारे रख देती थीं। वहां उनके नौकर देखभाल करते रहते थे। लोमड़ी ने कौए को माणिक का हार उठाकर जोर से शोर मचाकर उड़कर वापस आने को कहा। शोर सुनकर नौकर उनका पीछा करेंगे और जब वे पेड़ के पास पहुंचे, तो माणिक के हार को सांप के बिल में डाल देना।

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बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah
बुद्धिमानी की सलाह | Buddhimani Ki Salah :  अगले दिन कौए ने वही किया जो लोमड़ी ने समझाया था। मां कौवी ने एक माणिक का हार अपनी चोंच में दबा लिया और पिता कौआ जोर-जोर से शोर मचाने लगा ताकि नौकर उसके पीछे-पीछे दौड़ें। उन्होंने कौवी को माणिक का हार सांप के बिल में डालते हुए देखा। नौकरों ने लाठी से माणिक के हार को बाहर निकालना चाहा। सांप गुस्सा होकर फुफकारता हुआ बाहर आया। नौकर सांप को मारना चाह रहे थे, परंतु सांप अपनी जान को खतरे में देख जोर से भाग गया। वह फिर कभी बरगद के पेड़ के पास वापस नहीं आया। समझदारी और चतुराई से कौए ने शक्तिशाली शत्रु को परास्त कर दिया। मां कौवी और पिता कौआ फिर उस पेड़ पर बहुत दिन तक रहे और उन्होंने बहुत से बच्चे पैदा किए तथा उन्हें निश्चिंत होकर पाला-पोसा।

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