यकीनशाह का स्मारक Akbar Birbal Stories in Hindi : बादशाह अकबर का जन्म दिनं बडी धूम-धाम से मनाया जाता था। हर वर्ष, अनेक राजा और मंत्री, अकबर के दरबार में उन्हें शुभकामनाएँ देने आते थे। इसके अतिरिक्त पंडित, फकीर तथा महात्मा भी बादशाह को शुभकामनाएँ देने आते थे। बादशाह उन सभी को अपने वजन का सौ गुना भोजन तथा नारियल दान में दिया करते थे। आज बादशाह अकबर का जन्म दिन था। महल की सजावट करने वालों में अपनी-अपनी कला की श्रेष्ठता दिखाने की मानी होड़-सी लगी थी। गीत-संगीत से पूरा राजमहल गूँज रहा था। पंडित, फ़कीर, साधू-महात्मा अपनी-अपनी विधि से बादशाह की सलामती का योग-क्षेम करने में व्यस्त थे। बीरबल यह सब देख रहे थे और मुस्कुराते हुए सोच रहे थे। “हमारे महाराज कितने साफ दिल के व्यक्ति हैं। वह यह नहीं देखते कि दान लेने आए अधिकतर लोग झूठे और पाखंडी हैं। बादशाह उन पर सरलता से विश्वास कर लेते हैं और उनसे प्रभावित हो जाते हैं।” बादशाह ने बीरबल को मुस्कुराते हुए देखा। समारोह सम्पन्न हो जाने के बाद उन्होंने बीरबल से पूछा “बीरबल, जो चमत्कार ये महात्मा, फकीर एवं पंडित-पुजारी, करते हैं क्या वे सचमुच संभव हैं ?
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यकीनशाह का स्मारक Akbar Birbal Stories in Hindi : तुम क्या समझते हो? क्या यह इन विद्वान् व्यक्तियों की शक्ति है अथवा उनके अनुयायियों का विश्वास ?” “मैं समझता हूँकि यह पूर्णरूप से अंधविश्वास है, महाराजा” बीरबल ने उत्तर दिया। “परंतु क्या ये महान् लोग वे दूत नहीं होते, जो हमारे शब्द भगवान तक पहुँचाते हैं ?” “नहीं महाराज, यह तो केवल हमारा विश्वास है, जो उनको सम्मान प्रदान करता है।” “मुझे लगता है तुम ऐसा कहकर उनका अपमान कर रहे हो।” अकबर ने क्रोधित होकर कहा। “नहीं महाराज, मैं एक हिन्दू हूँ। सभी हिन्दू मूर्ति-पूजा करते हैं। मूर्ति स्वयं में कुछ नहीं है। यह केवल हमारा उन पर विश्वास है, जिसके कारण हमारी प्रार्थना पूर्ण होती है।” बीरबल ने अकबर को समझाते हुए कहा। “ऐसा कहकर तुम मूर्तियों का अपमान कर रहे हो, बीरबल। मूर्तियों के विषय में जो शब्द तुमने कहे हैं अर्थात् उनके संम्बंध में तुम्हारी जो धारणा है, उसे सही सिद्ध करने के लिए तुम्हें एक माह का समय दिया जाता है। मूर्तियों के प्रति अपनी धारणा को यदि तुम सही सिद्ध नहीं कर पाए, तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।” बादशाह अकबर की यह चुनौती बीरबल ने स्वीकार कर ली। वह आगरा से बाहर चला गया। शहर के बाहर उसने एक उजाड तथा बंजर जमीन देखी। उसने कुछ कारीगरों व मिस्त्रियों को बुलाकर एक स्मारक बनवाया।
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यकीनशाह का स्मारक Akbar Birbal Stories in Hindi : जब स्मारक बन गया, तो उसका नाम ‘यकीनशाह का स्मारक’ रखा गया, क्योंकि यकीन का अर्थ होता है ‘विश्वास”। बीरबल ने अपने सेवक को इस विषय में चारों ओर खबर फैलाने को कहा। शीघ्र ही सेवक ने यकीनशाह के चमत्कार से सम्बंधित कहानियाँ लोगों को सुनानी शुरू कर दीं। कुछ ही दिनों में अपनी-अपनी इच्छाओं की पूर्ति के उद्देश्य से वहाँ लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी। यकीनशाह की कहानी बादशाह अकबर के कानों तक पहुँची। वह भी स्मारक को देखने के लिए वहाँ पहुँचे। उसके साथ बीरबल व अन्य अनेक दरबारी भी थे। स्मारक के समीप पहले से ही प्रार्थना करने के लिए बहुत भीड़ जमा थी। बादशाह अकबर स्मारक के पास पहुँचे और झुककर प्रणाम किया। बीरबल के अतिरिक्त सभी ने उनका अनुकरण किया। “तुमने प्रणाम क्यों नहीं किया, बीरबल?” अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा। बीरबल ने उत्तर दिया ‘महाराज, मैं ऐसा केवल तभी करूंगा, जब आप सभी इस बात से सहमत हो जाएँ कि ‘विश्वास ‘फकीरों व महात्माओं से ऊँचा होता है।” बादशाह अकबर ने बीरबल की बातों पर ध्यान न देते हुए झुककर यह प्रार्थना की कि मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप, जो राजकुमार सलीम से युद्ध कर रहे हैं, की हार हो जाए। कुछ समय पश्चात् एक सैनिक महाराणा प्रताप की हार की सूचना ले आया।
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यकीनशाह का स्मारक Akbar Birbal Stories in Hindi : बादशाह अकबर खुशी से भर गए और बीरबल से बोले “देखा तुमने, यकीनशाह ने किस प्रकार मेरी इच्छा पूरी कर दी? तुम्हें और भी कोई प्रमाण चाहिए क्या?” “नहीं महाराज!” बीरबल सहमत न होते हुए बोला “यह केवल यकीनशाह पर आपका विश्वास था, जिसके कारण आपकी इच्छा पूरी हुई।” इस पर बादशाह अकबर चिढ़कर बोले ‘बीरबल तुम्हें अपनी बातों को सच साबित करने के लिए दिया गया एक माह का समय समाप्त हो गया है। अब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ।” इस पर बीरबल बिना समझे बोला “हे यकीनशाह! यदि आपने मेरे जीवन की रक्षा की तो मैं आपके लिए संगमरमर का एक स्मारक बनवा दूँगा।” “अरे बीरबल, पहले अच्छी तरह से सोच लो कि तुम क्या बोल रहे हो।” बादशाह ने हँसते हुए कहा। परंतु बीरबल ने स्मारक के पास फूलों के गलीचे को हटाते हुए स्मारक की दरार में हाथ डाला और वहां पर रखे एक बडल को निकाल लिया।
यकीनशाह का स्मारक Akbar Birbal Stories in Hindi : यह महाराज की पशमीना शाल थी। बंडल को खोलते हुए बीरबल बोला “महाराज, यह आपका यकीनशाह है।” बीरबल ने शाल में लिपटे जूते को दिखाया। बीरबल ने आगे कहा “महाराज, फकीर, साधू-सन्यासी व महात्मा आदि बड़े होते हैं अथवा उन पर हमारा विश्वास, जो हमारी इच्छाओं की पूर्ति करता है?” बादशाह अकबर सब कुछ समझ गए और आदेश दिया कि इस स्थान को यकीनशाह की सराय में बदल दिया जाए, जहाँ हारे-थके यात्री आकर विश्राम कर सकें। अकबर बादशाह के आदेश से यकीनशाह का स्मारक देखते-ही-देखते एक विशाल सराय में बदल दिया गया। इसमें यात्रियों की सुख-सुविधाओं का पूरा प्रबन्ध किया गया। इस प्रकार अकबर व बीरबल की हास्यास्पद नोंक-झोंक से निर्जन स्थान पर एक जन-कल्याणकारी शरण स्थल की स्थापना हो गई।
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