लक्ष्मी जी का क्रोध
लक्ष्मी जी का क्रोध : भृगु ऋषि ने निश्चय किया कि जिस व्यक्ति में इतनी विनम्रता है, उससे श्रेष्ठ और कौन हो सकता है। निश्चय ही विष्णु तीनों देवताओं में सबसे बड़े हैं। जिस समय वे ऐसा विचार कर रहे थे, उसी समय उनके कानों में विष्णुप्रिया लक्ष्मी के क्रोध भरे वचन पड़े। वे श्री विष्णु को संबोधित करती हुई कह रही थीं, “स्वामी! आप इतने शक्तिशाली एवं सामर्थ्यवान होते हुए भी भृगु ऋषि को कुछ नहीं कह रहे हैं। एक तो इन्होंने इतना बड़ा पाप किया कि इन्होंने
आपकी छाती पर लात मारी और आप हैं कि उल्टे इनके चरण पकड़े बैठे हैं। इनसे क्षमा मांग रहे हैं। मुझे नहीं पता था कि आप इतने कायर हैं। मेरी समझ में तो यह भी नहीं आ रहा है। कि आप अधर्मियों का विनाश कैसे करते होंगे। मैं अब यहां नहीं रुकेंगी। मैं जा रही हूं।”
इतना कहकर लक्ष्मी जी अंतर्धान हो गईं। विष्णु फिर भी मुस्कराते रहे। वे जानते थे कि लक्ष्मी कभी भी उनका परित्याग नहीं कर सकतीं।
भृगु ऋषि श्री विष्णु से विदा लेकर अपने साथी ऋषियों के पास आए और पूरी घटना सुनाकर विष्णु को ही सर्वश्रेष्ठ घोषित किया, क्योंकि विनम्र ही सर्वश्रेष्ठ होता है।