श्रीविष्णु : प्रारंभ में आदि रूप ‘ब्रह्म’ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। आदि रूप प्रधान ब्रह्म से ही विष्णु ने पुरुष रूप उत्पन्न किए और उसी पुरुष का प्रधान तथा प्रथम पुरुष विष्णु ही था। इस | प्रकार मूल रूप से स्वयं विष्णु ही त्रिगुण तत्व-सत्व, रज और तम रूप में जगत की उत्पत्ति,
सृष्टि एवं प्रलय के कारण हैं। दूसरे शब्दों में, यह सारा संसार विष्णु के द्वारा ही रचा गया है। वे ही इसे उत्पन्न करते हैं, धारण करते हैं और अपनी इच्छा से प्रलय द्वारा नष्ट कर देते हैं। वस्तुतः यह जगत स्वयं विष्णु का ही रूप है। । पुराणों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जो कल्पना की जाती है और जिसके द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय मानी जाती है, वह स्वयं विष्णु ही हैं। विष्णु इस समस्त भौतिक जगत के पालनहार हैं। देवताओं, मनुष्यों, असुरों और पशु-पक्षियों पर आने वाले सभी प्रकार के संकटों को वे दूर करने वाले हैं। वे प्राणी मात्र के रक्षक हैं, भक्तवत्सल हैं। जब-जब उन पर संकट आते हैं, वे अपनी शक्ति महामाया लक्ष्मी सहित अवतार लेते हैं। जैसे द्वापर में कृष्ण के रूप में तथा त्रेता में राम के रूप में उन्होंने मानव शरीर ग्रहण किया था। वैसे उनके चौबीस अवतार माने जाते हैं, परंतु उनके दशावतार प्रसिद्ध हैं। जिनमें ‘कल्कि अवतार’ अभी होना है।