साबरमती आश्रम की स्थापना : बर्मा उन दिनों भारत का ही एक हिस्सा था। उसकी राजधानी रंगून थी। गुरुदेव से मिलकर गांधी । जी रंगून गए। फिर वहां से वे अहमदाबाद लौट आए। 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के निकट साबरमती नदी के किनारे कोचख नामक स्थान पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम में । किसी का भी प्रवेश वर्जित नहीं था। किसी भी जाति, धर्म या संप्रदाय का व्यक्ति इसमें प्रवेश पा सकता था। गांधी जी अपने परिवार और समर्थकों के साथ इस आश्रम में रहने लगे। इस आश्रम में रहने वाले स्वयं-सेवक सारे काम अपने हाथों से करते थे। स्वयं गांधी जी ने ही यह नियम बनाया था। यहां सच्चे दिल से मानवता का प्रचार होता था। अछूतों के साथ यहां कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। गांधी जी । अपने सिद्धांतों पर अटल रहते थे। गोखले जी की मृत्यु के बाद गांधी जी एक वर्ष तक राजनीति से दूर रहे। परंतु एक वर्ष पूरा होते ही वे भारतीय राजनीति में कूद पड़े। । धीरे-धीरे साबरमती आश्रम भारतीय राजनीति का केंद्र बन गया।