स्वदेश वापसी : 11 जून, 1891 को बार-एट-लॉ की डिग्री लेकर गांधी जी स्वदेश लौट आए। इन तीन वर्षों के प्रवास में गांधी जी ने मांस, मदिरा और नारी का स्पर्श तक नहीं किया था।
बंबई बंदरगाह पर उनके बड़े भाई ने उनका स्वागत किया और उन्हें माता के स्वर्गवास का समाचार दिया। बड़े भाई ने उन्हें मां की मृत्यु का समाचार इंग्लैंड इसलिए नहीं भेजा था कि इस समाचार से उन्हें गहरा आघात पहुंचता और उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती। मां की मृत्यु के समाचार को सुनकर गांधी जी को बड़ा दुख हुआ, वे ही तो उनकी आदर्श थीं।
अपने भाई के कंधे से लगकर रोते हुए वे बोले, “ भाई! मैं ऐसा अभागा निकला कि अंतिम समय में मां के दर्शन भी नहीं कर सका।”
बड़े भाई ने उन्हें सांत्वना दी, ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी।”