A wise old men | समझदार बूढा आदमी
A wise old men | समझदार बूढा आदमी : “सर, मेरा मानना है कि हर नया दिन एक किताब के नए पेज की तरह है। जीवन एक किताब है। इसके बारे में आप क्या कहेंगे? “रिपोर्टर ने पूछा।
लेखक ने एक प्यारी सी मुस्कान अपने चहरे पर भरी और कहा, “मैं आपकी कही हुई बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ।”
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“क्यों नहीं, सर? मुझे बताओ, आखिरकार, पुस्तक और जीवन के बीच क्या अलग है? “महिला रिपोर्टर ने पूछा।
लेखक ने अपना चश्मा निकाल कर अपने हाथ में थाम लिया और कहा – मैडम किताबे पूर्ण होती हैं, जब वो तैयार हो जाती हैं तब किसी भी कमी और अच्छाई से परे वो पूरी तरह से पूर्ण ही होती हैं, भले ही लोग उसमे कितनी भी कमियाँ निकाले।”
लेखक के ये कहने के बाद वहां एक पल के लिए सन्नाटा सा छा गया, और फिर थोड़ी देर बाद दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्कुराए।
उस दिन, वो महिला ज़िन्दगी का असली कड़वा सच जान चुकी थी।
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कभी अरमानो की लहरों में तूफ़ान आता हैं,
तो अभी मजबुरियो के बोझ तले इच्छाए दब जाती हैं,
कभी उगते सूरज की किरणों की तरह आशाये नज़र आती हैं,
तो कभी बुझे दिए के धुए की तरह सहारे छुट जाते हैं,
कभी ठंडी हवा के झोके अपने साथ खुशिया ले आते हैं,
तो कभी ज़िन्दगी तपती रेत पर लेती हुई नज़र आती हैं,
जीना बोहोत मुश्किल हैं और जीना किसी को नहीं आता,
पर ये जिंदगी हर किसी को सब कुछ सिखा देती हैं|
हाँ, यह जिंदगी ही सब कुछ सिखा देती हैं,
कभी थोक में दर्द और किश्तों में दावा देती हैं,
कभी मांगती हैं अर्ज़, कभी खुशी से राजा देती हैं,
कभी दिखाती हैं आसमान, कभी सपनो को दबा देती हैं,
कभी करती हैं माफ, कभी कड़ी सज़ा देती हैं,
कौन यहाँ मुजरिम हैं?, जुर्म करना किसी आता हैं?,
पर यह जिंदगी ही सब कुछ सिखा देती हैं|
कभी होगी मेरी हमराज़ तो कभी मुझ ही को दगा देगी,
कभी जो बनना चाहू नेक तो रास्ते मिटा देगी,
कभी जो करू भक्ति तो पाप करा देगी,
कभी हराएगी मुझको तो कभी खुदको जीता देगी,
आज मैं कुछ भी नहीं, न मैं कुछ बनना चाहता हू,
पर यह ज़िन्दगी ज़रूर कुछ न कुछ सिखा देगी|
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