Antrashtriya Yog Diwas

Antrashtriya Yog Diwas : योग का अर्थ हैं जोड़ना, मिलना और मिलाना इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के युज धातु से हुई हैं. योग की अन्य परिभाषाओ और इसके लाभ प्राप्त करना ही योग हैं.

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Antrashtriya Yog Diwas : एक भक्त का भगवान से मिलना योग हैं, आत्मा का परमात्मा से मिलन योग हैं. जब एक योगी आत्मसाक्षात्कार करता हैं उस भाव दशा को योग की दशा कहते हैं. महर्षि पतंजलि कहते हैं “योग्श्च चित्त वृति निरोध तदा द्र्स्तुम स्वरूपे अव्स्थानाम” चित्त की वृतियो का निरोध करना ही योग हैं. हमारे चित्तियाँ चित्त की वृत्तियाँ दशो दिशाओं में फैली हुई हैं अगर उन वृत्तियों को निरोध किया जाए, एकाग्र किया जाए और अपने स्वरुप में स्थित हुआ जाए उस दशा को ही योग कहते हैं.

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Antrashtriya Yog Diwas : भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं “योगः कर्मसु कौशलम्” किसी भी कार्य को कुशलतापूर्वक, दक्षतापूर्वक, निपुणता के साथ करने की जो कला हैं वही योग हैं. अगर व्यहवारिक दृष्टी से देखा जाए तो योग का मतलब ये होता हैं की हम पूरी तन्मयता के साथ कोई काम करे. जब एक अभ्यासी योग की साधना करता हैं, योग का अभ्यास करता हैं तन और मन जब एक साथ जुड़ जाए जब वो आसान के साथ कितना खिंचाव आ रहा हैं, कितना तनाव आ रहा हैं. उसकी सांस की दशाएं कैसी हैं. अगर मन पूरी तरह से इसमें एकाग्र हैं तो वो योग की अवस्था हैं अन्यथा वो योग नहीं हो सकता. आसन कर रहे हैं मन कही और भटक रहा हैं वो योग हो ही नहीं सकता यही तो व्यायाम और योग में अंतर हैं. व्यायाम या दुसरे एक्सरसाइज में मन कही होता हैं और शरीर किसी और दशा में होता हैं, योग में शरीर, मन और सांस की ये तन्मयता की दशा हैं इसी को योग कहते हैं.

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Antrashtriya Yog Diwas : योग प्रकृति चिक्तिसा और आयुर्वेद इसका लक्ष्य हैं जो रोगन हैं, बीमार हैं, कमज़ोर हैं उनको आरोग्य करना और जो स्वास्थ्य हैं उनके स्वास्थ्य की रक्षा करना. योग हमारे भीतर की जो अंतर्निहित गुप्त शक्तियां हैं जो सोयी हुई शक्तियां हैं, उर्जा हैं, ताकत हैं उसको जगाने की ये एक कला हैं, योग के अभ्यास से एक योगी परमात्मा का साक्षात्कार कर लेता हैं लेकिन इसके लिए जरुरी हैं की हमे अपने अंदर आत्मानुशासन हो.

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Antrashtriya Yog Diwas : योग एक आत्मानुशासन सिखाता हैं. पतंजलि कहते हैं “अर्थ योगा अनुशासनम” योग का पहला सूत्र पतंजलि ने यही से शुरू किया योग अनुशासित ढंग से जब हम किसी भी कार्य को अनुशासित तरीके से करते हैं, एक रूप में करते हैं, एक ढंग से करते हैं वो योग कहलाता हैं.

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Hind Patrika

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