अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri

अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri

अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : किसी नगर में एक ब्राह्मण रहा करता था। वह अपनी स्त्री को प्राणों से भी अधिक प्रेम करता था। किंतु उसकी स्त्री परिवार के सदस्यों के साथ कलह करके कभी थकती नहीं थी। प्रतिदिन की कलह से मुक्ति पाने के लिए एक दिन ब्राह्मण ने अपने परिवार को छोड़ दिया और अपनी पत्नी के साथ किसी दूसरे नगर में जाकर बसने का निश्चय कर लिया । यात्रा लम्बी थी। जंगल में पहुंचने पर ब्राह्मणी को प्यास लग आई। उसने ब्राह्मण से पानी का प्रबंध करने को कहा तो ब्राह्मण एक वृक्ष की छाया में ब्राह्मणी को बैठाकर पानी लाने चला गया। पानी दूर था, अतः ब्राह्मण को देर लग गई। पानी लेकर वापस लौटा तो उसने ब्राह्मणी को मरी हुई पाया। यह देखकर ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ और व्याकुल होकर भगवान से प्रार्थना करने लगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि- हे ब्राह्मण ! यदि तू अपनी आयु का आधा भाग ब्राह्मणी को दे दे तो यह जीवित हो जाएगी।’

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अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri

अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : ब्राह्मण ने यह स्वीकार कर लिया। उसने अपनी आयु का आधा अपनी पत्नी को दे दिया। तत्काल ब्राह्मणी जीवित हो उठी। दोनों ने फिर से यात्रा आरंभ कर दी। इस प्रकार चलते-चलते दोनों एक नगर की सीमा में पहुंच गए। सीमा पर एक खूबसूरत उद्यान था। उस उद्यान में विविध प्रकार के रंग-बिंरगे फूल खिले देखकर दोनों ने वहीं विश्राम करने का निश्चय किया। ब्राह्मणी को एक घने वृक्ष के नीचे बैठाकर ब्राह्मण ने कहा-तुम यहां बैठकर विश्राम करो। मैं नगर में जाकर भोजन का प्रबंध करके आता हूं।’ यह कहकर वह भोजन लेने के लिए नगर में चला गया। ब्राह्मणी वहां अकेली रह गई। उस उद्यान में एक लंगड़ा रहट से जल खींचते हुए मधुर स्वर में कोई गाना गा रहा था। उसका मधुर स्वर सुनकर ब्राह्मणी उस पर मोहित हो गई। उससे रुका नहीं गया। वह उसके निकट पहुंची और उससे प्रणय निवेदन करने लगी। लंगड़ा उसके सम्मोहन में फस गया। लंगड़े से तृत होकर ब्राह्मणी ने कहा-‘आज से तुम हमेशा मेरे साथ ही रहोगे।” ब्राह्मण जब भोजन लेकर लौटा और वे खाने के लिए बैठे तो उसकी पत्नी ने कहा-‘प्रिये, देखो ! हमारी तरह यह लंगड़ा भी भूखा है। इसको भी कुछ भोजन दे दो|

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अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : पत्नी का आग्रह मानकर ब्राह्मण ने लंगड़े को भी भोजन का कुछ भाग दे दिया। भोजन करते समय ब्राह्मणी ने मीठे स्वर में अपने पति से कहा-‘प्रिये ! जब आप भोजन आदि के प्रबंध के लिए इधर-उधर चले जाते हो तो मैं अकेली रह जाती हूं, इससे मुझे बहुत डर लगता है। इसलिए क्यों न हम इस लंगड़े को भी अपने साथ ही ले चलें ?’ ब्राह्मण बोला-‘अरे देवी ! यहां अपना चलना ही कठिन हो रहा है। इस लंगड़े को पीठ पर लादकर कौन ढोएगा ?’ ब्राह्मणी तुरंत बोली-उसकी चिंता आप न करें। मैं इसे टोकरी में बिठाकर उस टोकरी को अपने सिर पर रख लूगी।’ इस प्रकार वह लंगड़ा भी उनके साथ ही लिया | मार्ग में वे तीनों एक कुएं के पास रुके। तीनों ने खाना खाया और वहीं बैठकर विश्राम करने लगे। कुएं की जगत बहुत सुंदर बनी हुई थी। अनुकूल एवं ठंडी जगह जानकर ब्राह्मण उसी जगत पर पसर गया। कुछ ही देर बाद उसे निद्रा ने आ घेरा।

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अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : ब्राह्मणी ने इसे अनुकूल अवसर जानकर उस सोते हुए ब्राह्मण को कुएं में धक्का दे दिया और उस लंगड़े को लेकर किसी नगर में जा पहुंची। नगर की सीमा पर राज्य-कर वसूल करने की चौकी थी। राजसेवकों ने सिर पर टोकरी उठाए उस ब्राह्मणी की तलाशी लेने को कहा तो वह आनाकानी करने लगी। इस पर राजसेवकों को संदेह हो गया। वे उसे लेकर सीधे राजा के समक्ष जा पहुंचे। राजा के सामने जब वह टोकरी खोली गई तो उसमें वह लंगड़ा बैठा हुआ मिला। इस पर आश्चर्यचकित होकर राजा ने जब उस लंगड़े के बारे में जानना चाहा तो ब्राह्मणी रोती हुई बोली- हे राजन ! यह मेरे पतिदेव हैं। हमारे परिजनों ने इन्हें बेकार का बोझ समझकर घर से निकाल दिया है। तबसे मैं इन्हें टोकरी में बिठाकर इधर-उधर भटक रही हूं।’

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अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : उसकी करुण कहानी सुनकर राजा को उस पर दया आ गई। वह बोला-बहन ! तुम चिंता न करो। अब से तुम मुझे अपना भाई ही समझो। मैं तुम्हारे गुजारे के लिए दो ग्राम तुम्हें दे देता हूं। तुम वहां इन्हें ले जाकर सुखपूर्वक रहो।’ तबसे ब्राह्मणी उस लंगड़े के साथ वहीं रहने लगी। दोनों का समय आनंदपूर्वक व्यतीत होने लगा | संयोग की बात कि उसका पति भी किसी पथिक की सहायता से कुएं से बाहर निकलकर घूमता हुआ उसी नगर में आ पहुंचा। उसकी कुलटा पत्नी ने जब उसे नगर में घूमते देखा तो वह भयभीत हो गई और राजा के पास पहुंचकर बोली-‘भैया ! जो व्यक्ति मेरे पति का शत्रु है, वह मेरे पति को मारने के लिए यहां भी पहुंच गया है।’

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अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : राजा ने अपने सेवकों को आदेश दिया उस ब्राह्मण को तुरंत पकड़कर यहां लाया जाए, ताकि उसे मृत्युदंड दिया जा सके। ब्राह्मण को जब यह बात मालूम हुई तो वह स्वयं ही राजा के पास जा पहुंचा और विनयपूर्वक बोला-‘देव ! मैं मरने से नहीं डरता, किंतु आपसे एक प्रार्थना करता हूं कि बगैर वास्तविकता जाने आपको ऐसा आदेश नहीं देना चाहिए।’ ‘क्या कहना है तुम्हें ? बोलो। हम वादा करते हैं कि जब तक तुम्हारा पक्ष नहीं सुन लेंगे, तब तक तुम्हें दंड नहीं देंगे।’ राजा बोला। ब्राह्मण ने कहा-‘राजन ! इस स्त्री ने मेरी एक वस्तु ली है। यदि आप न्यायप्रिय हैं तो इससे मेरी वह वस्तु दिलवा दीजिए।’ राजा ने ब्राह्मणी से पूछा-क्या तुमने इस व्यक्ति की कोई चीज ली है ? ‘नहीं महाराज। मैंने इससे कुछ नहीं लिया है।’

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अविश्वासी स्त्री | Avishwasi Stri : ब्राह्मण ने याद दिलाया-मैंने तुम्हें अपनी आयु का आधा भाग दिया हुआ है। वह मुझे वापस दे दो।’ राजा के भय से उस ब्राह्मणी के मुख से निकल गया-‘‘मैंने तुम्हारी आयु का जो आधा भाग लिया हुआ है, वह मैं तुम्हें वापस करती हूं।’ इतना उसके मुख से निकला ही था कि वह भूमि पर जा गिरी और निर्जीव हो गई। राजा ने विस्मय से पूछा-‘‘यह सब क्या है ? इस ब्राह्मणी की एकाएक मौत कैसे हो गई ?’ ब्राह्मण ने तब सविस्तार सारी कहानी राजा को सुना दी। यह कहानी सुनाकर वानर ने कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि स्त्रियों पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। पर तुम्हें यह बताने से क्या लाभ ! तुम तो ठहरे पत्नीभक्त, पत्नी ने तुमसे मेरा हृदय लाने को कहा और तुम दौड़ पड़े छल-बल से मुझे ठगने को। मेरी इतने दिनों की मित्रता की भी परवाह नहीं की तुमने। किंतु अपने प्रयास से तुम सफल नहीं हुए। वाणी दोष के कारण तुम उसी प्रकार पकड़े गए, जैसे बाघ की खाल ओढ़ने वाला गधा अपनी वाणी के मार डाला गया था| ” मगर ने पूछा-उस गधे ने बाघ की खाल क्यों ओढ़ी थी?’ वानर ने तब उसे यह कहानी सुनाई।

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