बड़ा वही है, जिस पर मां सरस्वती की कृपा है : शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ। राजकुमारी ने अपने हाथ की एक उंगली को कालिदास की ओर उठाकर दिखाया । कालिदास ने तत्काल अपनी दो उंगलियां उठाकर उसे दिखा दीं।
दूसरी बार राजकुमारी ने अपनी पांचों उंगलियां उठाकर अपना हाथ दिखाया तो कालिदास ने मुट्ठी बंद करके राजकुमारी की ओर तान दी।
राजकुमारी उठकर खड़ी हो गई और अपने पिता महाराज उज्जयिनी से बोली, “पिताश्री ! मैं पराजित हो गई। आप मेरे विवाह की तैयारी कीजिए। मैं कवि कालिदास से विवाह करूंगी।” यह कहकर वह अपने महल की ओर चली गई।
सभी उपस्थित पण्डित एक दूसरे का मुंह देखने लगे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसा शास्त्रार्थ था। राजकुमारी ने क्या पूछा और काली ने क्या उत्तर दिया। महाराज स्वयं संशय में थे।