बड़े बुढो की अनुभवी सलाह | Bade Budho Ki Anubhavi Salah

बड़े बुढो की अनुभवी सलाह | Bade Budho Ki Anubhavi Salah : किसी जंगल में बरगद का एक विशाल वृक्ष था। उस वृक्ष पर काले रंग के अनेक हंस घोंसले बनाकर रहते थे। वृक्ष का तना बहुत मोटा और चिकना था, इस कारण किसी का उस पर चढ़ पाना बहुत मुश्किल था। सभी हंस स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हुए वहां आनंदपूर्वक रह रहे थे। एक बार उस वृक्ष की जड़ में अंगूर की एक बेल उग आई। यह देखकर एक कहा – ‘मित्रो, सुनो! बरगद की जड़ में जो अंगूर की बेल उग आई है, यह हमारे विनाश का कारण बन सकती है। यह वृक्ष पर चढ़ती जाएगी और धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाती जाएगी।

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एक दिन यह मोटी होकर वृक्ष के समूचे तने से लिपट जाएगी, फिर इस मोटी बेल पर चढ़कर कोई भी शिकारी हमारे घोंसले तक आसानी से पहुंच सकता है, इसलिए दूरदर्शिता यह है कि इस बेल को अभी ही नष्ट कर दी। इसकी जड़ें अभी मुलायम हैं, इसलिए इसे नष्ट करने में ज्यादा परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। बूढ़े हंस की बात सुनकर जवान हंस उसका उपहास करने लगे। बोले – ‘चाचा, रहने दो अपनी सीख। भला इस घने जंगल में कौन शिकारी आ सकता है, जो हमें नुकसान पहुंचा सके। तुम तो सठिया गए हो। तुम्हें मामूली – सी बात से हानि होने का अंदेशा होने लगता है। यह बेल उग रही है, तो उगने दो। इससे वृक्ष की सुंदरता ही बढ़ेगी, हमारा कुछ नुकसान थोड़े ही हो जाएगा।” बेचारा बूढ़ा हंस खिसिया कर चुप रह गया। । अंगूर की बेल निरंतर बढ़ती गई। धीरे – धीरे उसने वृक्ष के सारे तने को अपने घेरे में ले लिया। उसकी तनियां वृक्ष की अन्य शाखाओं तक फैल गई और उसका आकार भी किसी मोटी रस्सी की तरह का हो गया। हंस किसी भावी खतरे से बेखबर अपनी दिनचर्या में मस्त रहने लगे।

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बड़े बुढो की अनुभवी सलाह | Bade Budho Ki Anubhavi Salah : बूढ़े हंस की आशंका सच साबित हुई। एक दिन प्रात: ही जब हंस अपना भोजन खोजने के लिए जाने को तैयार हो रहे थे, तभी एक बहेलिया न जाने कहां से घूमता – घामता उधर आ निकला। उसने वृक्ष पर ढेर सारे हंस देखे तो मन ही मन पुलकित हो उठा। वह सोचने लगा- आज का दिन मेरे लिए बहुत शुभ लगता है। एक ही स्थान पर इतने पक्षी। आज इन सभी को पकड़ लूगा। मेरे कई दिन के भोजन का प्रबंध हो जाएगा।’ ऐसा विचार कर वह बहेलिया एक वृक्ष के पीछे छिप गया और हसों के वहां से जाने की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ देर बाद जब सभी हंस अपने-अपने घोंसले छोड़कर भोजन खोजने के लिए चले गए, तो बहेलिया उस मोटी बेल के सहारे वृक्ष पर चढ़ गया। उसने अपना जाल खोला और घोंसलों के ऊपर फैला दिया। फिर वह नीचे उतरा और यह सोचकर वापस चल पड़ा कि सुबह आकर जाल में फंसे हंसों को निकालूगा। शाम को जब हंस अपने-अपने बसेरे में लौटे, तो एक-एक कर सभी बहेलिए के बिछाए जाल में फंस गए। अब तो वे बहुत घबराए।

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बड़े बुढो की अनुभवी सलाह | Bade Budho Ki Anubhavi Salah : उन्होंने अपने पंख फड़फड़ा कर जाल से निकलने का बहुत प्रयास किया, किंतु उनके सारे प्रयास असफल रहे। हंसों की ऐसी दुर्दशा देखकर बूढ़ा हंस बहुत दुखी हुआ। बोला-‘मैंने पहले ही तुम सब को चेताया था कि इस बेल को बढ़ने से पूर्व ही काट डाली, लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी, उलटे मेरी ही खिल्ली उड़ाई। अब परिणाम सामने है। हम सब किसी बहेलिए द्वारा बिछाए मजबूत जाल में फंस गए हैं। सुबह बहेलिया आएगा और हम सबको पकड़कर ले जाएगा। हमारा जीवन अब कुछ ही देर का बचा है।’ बूढ़े हंस की बात सुनकर जवान हंसों के सिर शर्म से झुक गए। रोते-कलपते और स्वयं को कोसते हुए बोले-‘हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई। हमें आपके कहने के अनुसार काम करना चाहिए था। हाय, क्या सचमुच कल सुबह हम सब मारे जाएंगे।’ ‘जिस स्थिति में तुम फंसे हुए हो, उसमें तो तुम सबकी मृत्यु निश्चित ही समझो।’ बूढ़ा हंस बोला।

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बड़े बुढो की अनुभवी सलाह | Bade Budho Ki Anubhavi Salah : ‘बुजुर्गवार! हमने आपकी सीख नहीं मानी, इसी कारण आज हम मुसीबत में फंस गए हैं। हमें आपकी उपेक्षा करने पर पश्चाताप हो रहा है। आप हम सबसे अनुभवी और बड़ी आयु के हैं। कृपा करके अब हमें कोई ऐसा उपाय बतां दीजिए जिससे हम इस जाल से मुक्त हो जाएं। कई हंसों ने उस बूढ़े हंस से प्रार्थना की। हंसों की बात सुनकर बूढ़े हंस को दया आ गई। उसने कहा – ‘तो सुनो ! जब बहेलिया आकर तुम्हें जाल से निकालने लगे, तो तुम सब ऐसा जाहिर करना, जैसे तुम मर चुके हो। तुम्हें मृतक जानकर बहेलिया तुम्हें जाल से निकालकर नीचे फेंकेगा। जैसे ही वह हमारे अंतिम साथी को भी आजाद करके नीचे फेंके, तुम सब तुरंत उड़ जाना।” सभी हंसों ने वचन दिया कि वे उसी के कहे अनुसार काम करेंगे।

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बड़े बुढो की अनुभवी सलाह | Bade Budho Ki Anubhavi Salah : अगले दिन प्रात: बहेलिया पुन: आ पहुंचा। नीचे से उसने ऊपर दृष्टि उठाई तो हंसों को जाल में फंसा देख हर्षित हो उठा। वह झटपट बेल के सहारे ऊपर पहुंचा, किंतु उसकी खुशी आधी रह गई जब उसने देखा कि उसके जाल में फंसे सभी हंस मर चुके हैं। बहेलिए ने जाल की तनियां खोलीं और एक-एक करके हंसों को जाल से मुक्त करके नीचे फेंकने लगा। जब अंतिम हंस भी उसने नीचे फेंक दिया, तो जैसे सभी हंसों में अचानक जान आ गई। उन्होंने अपने पंख फड़फड़ाए और आकाश की ओर उड़ चले। यह देखकर बहेलिया जाल को नीचे फेंक जल्दी-जल्दी उतरने लगा। उसे उम्मीद थी कि वह एक-दो हंस तो जरूर ही पकड़ लेगा, किंतु सब निष्फल रहा। हंस उसके नीचे पहुंचने से पहले बहुत ऊपर उड़ चुके थे। अपने शिकार को इस प्रकार हाथ से निकल जाते देख बहेलिए को बड़ा दुख हुआ। वह हाथ मलता हुआ वहां से चला गया। बूढ़े हंस की सीख मान लेने के कारण हंसों की जान बची, अत: उन सबने अब यह निश्चय किया कि भविष्य में वे कभी भी किसी बुजुर्ग का उपहास नहीं उड़ाएंगे, बल्कि उसके अनुभव से ज्यादा ही फायदा उठाने की कोशिश करेंगे।

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