ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko

ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko : किसी गांव में एक ब्राह्मण अपनी ब्राह्मणी के साथ रहता था। उन्हें खाने – पीने की कोई कमी नहीं थी। बस, एक ही चिंता उन्हें सताती रहती थी – संतान की चिंता। ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने संतान की प्राप्ति के लिए अनेक देवी – देवताओं से मन्नतें मांगीं, अनेक तीर्थों में गए, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई। इसलिए दोनों उदास रहने लगे। गांव में एक मंदिर था। ब्राह्मणी प्रतिदिन उस मंदिर में पूजा के लिए जाती थी। ईश्वर की ऐसी कृपा हुई कि एक दिन ब्राह्मणी गर्भवती हो गई। समय पाकर उसने एक बालक को जन्म दिया, लेकिन पैदा होते ही वह बालक एक नन्हा – सा सांप बन गया। ब्राह्मणी के गर्भ से एक सांप पैदा हैं हुआ है, ऐसा सुनकर गांव वाले इकट्ठे हो गए। सभी इस बात पर आश्चर्य कर रहे थे कि ब्राह्मणी के गर्भ से एक सपोला पैदा हुआ है। उन्होंने ब्राह्मण-दंपति को सलाह दी कि उस सपोले को घर में न रखें, या तो वे उसे मार डालें या दूर किसी स्थान पर ले जाकर छोड़ आएं। लेकिन ममता की मारी ब्राह्मणी ने ऐसा करने से स्पष्ट इंकार कर दिया।

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ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko : गांव वाले अनेक प्रकार की बातें करते हुए वहां से चले गए। ब्राह्मण-दंपति ने बड़े यत्नपूर्वक उस नाग – शिशु का लालन – पालन किया। ब्राह्मणी ने उसके रहने के लिए एक लकड़ी का बक्सा बनवा दिया था, जिसमें एक नर्म गद्दा बिछाकर वह नाग-शिशु को लिटा देती थी। वह नियमित रूप से उसे आहार खिलाती, नहलाती और इस बात का विशेष ध्यान रखती थी कि कहीं उसे कोई चोट न लग जाए। धीरे – धीरे नाग – शिशु बड़ा होने लगा और एक समय ऐसा भी आया, जब वह बढ़कर पूरा नाग बन गया। अब ब्राह्मणी को उसके विवाह की चिंता होने लगी। वह रोज अपने पति से आग्रह करने लगी कि वह अपने पुत्र के लिए कोई अच्छी-सी दुल्हन खोज निकाले। ब्राह्मण अपने अनेक संबंधियों एवं परिचितों से मिला और उन्हें अपने पुत्र के लिए वधू की आवश्यकता की बात बताई, लेकिन कोई भी सांप के साथ अपनी बेटी का विवाह करने को तैयार न हुआ। अंत में घूमता – घामता ब्राह्मण एक नगर जा पहुंचा, जहां उसका एक घनिष्ठ मित्र रहता था। ब्राह्मण के पहुंचने पर उसका मित्र बहुत प्रसन्न हुआ।

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ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko : बड़े प्रेम से उससे गले मिला और बोला – ‘आज कैसे याद आ गई, मित्र! तुम तो मुझे बिल्कुल ही भूल गए।’ दोनों मित्र रात को भोजन के पश्चात अपने सुख-दुख की बातें करते रहे। अगले दिन प्रात: जब ब्राह्मण जाने के लिए तैयार हुआ, तो उसके मित्र ने पूछा-‘मित्र तुमने मेरे पास आने का अपना उद्देश्य तो बताया ही नहीं। देखो यदि किसी चीज की आवश्यकता हो, तो नि:संकोच कही। मैं तत्काल उसका प्रबंध कर दूंगा।’ ‘धन्यवाद मित्र!’ ब्राह्मण बोला-‘किंतु मुझे कोई आवश्यकता नहीं है। मैं तो किसी और ही काम के लिए भटक रहा हूं।’ ‘कौन-सा काम?’ मित्र ने पूछा। सकुचाते-सकुचाते ब्राह्मण ने अपने पुत्र के लिए वधू की खोज वाली बात बता दी। सुनकर उसका मित्र बोला-‘मित्र! तुम अपनी खोज को अब समाप्त हुआ ही समझो। मेरी इकलौती कन्या अब जवान हो चुकी है। मैं शीघ्र से शीघ्र उसके हाथ पीले कर देना चाहता हूं। अब तुमने जिक्र छेड़ा है तो सोचता हूं कि अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे पुत्र के साथ कर दूं। ऐसा करने से हम दोनों समधी भी बन जाएंगे।’

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ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko

‘मित्र! इस मामले में जल्दी मत करो। पहले मेरे बेटे को देख तो लो।” ब्राह्मण बोला।
‘अरे इसमें देखना कैसा? तुम पर मुझे पूरा विश्वास है। तुम मेरी कन्या को अपने साथ ही ले जाओ और वहां उन दोनों के फेरे डलवा देना।’ फिर उसने अपनी कन्या को बुलाकर अपने मित्र को सौंप दिया।
। पिता का आदेश मानकर कन्या ब्राह्मण के साथ उसके घर आ गई।

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ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko
गांव वालों को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने कन्या को समझाया-‘ब्राह्मणपुत्री! क्यों अपनी जिन्दगी बर्बाद करना चाहती हो। जानती हो कौन है तुम्हारा होने वाला पति? वह एक सर्प है?’
‘तो क्या हुआ?” कन्या ने बिना किसी झिझक के कहा-‘मेरे पिता ने मुझे यह आदेश देकर यहां भेजा है कि मैं अपने होने वाले सास एवं ससुर के हर आदेश का पालन करूं । अपने पिता के आदेश का पालन करने के लिए मुझे किसी सर्प के साथ विवाह करना भी स्वीकार है।’ कन्या के ऐसे उत्तर ने गांव वालों के मुंह बंद कर दिए। ब्राह्मण ने बड़ी धूमधाम से उस कन्या का विवाह अपने नाग बेटे के साथ कर दिया।
कन्या अब किसी पति-परायण महिला की तरह अपने पति की हर जरूरत का ध्यान रखने लगी।

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ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko : एक रात अचानक किसी की पद-चाप सुनकर कन्या की नींद उचट गई। उसने आंखें खोलकर देखा, तो अपने कक्ष में उसने एक बहुत ही सुंदर युवक को चहल कदमी करते देखा। युवक को देखकर वह भयभीत हो उठी। वह बिस्तर से उठकर कक्ष के बाहर भाग जाना चाहती थी कि तभी वह युवक बोल पड़ा-‘मुझसे भयभीत मत हो, सुंदरी! मैं कोई पराया नहीं, तुम्हारा पति हूं।’ ‘मेरा पति! मेरा पति तो एक सर्प है। तुम मेरे पति कैसे हो गए? मैंनें तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं।’ कन्या ने कहा। ‘मैं वही सर्प हूं, सुंदरी! विश्वास न हो तो उधर देख लो।” कहते हुए युवक ने एक कोने की ओर उंगली उठाई, जहां सर्प का मृत शरीर जमीन पर पड़ा था। कन्या असमंजस में पड़ गई कि इस युवक की बात पर विश्वास करें या न करें। उसे झिझकते देख युवक पुन: बोला-‘सुंदरी! पूर्वजन्म में भी तुम मेरी प्रेमिका मैं तुम्हारा प्रेमी। मैं एक गंधर्व था और तुम एक किन्नरी। हम एक-दूसरे प्रेम करते थे और अकसर वन-विहार को निकल जाते थे। एक बार हम | घूमते-घामते एक ऐसे स्थान पर पहुंच गए, जो बहुत ही मनोरम था। हम | वहां नाचने और गायन करने लगे। हमें नहीं मालूम था कि एक शिलाखंड के पीछे बैठे एक ऋषि तपस्या कर रहे हैं।

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ब्रह्मणी ने जन्म दिया नाग को | Brhmani Ne Janm Diya Naag Ko : हमारे नृत्य और गायन से उनकी समाधि टूट गई। क्रोधित होकर उन्होंने हमें शाप दे दिया। शाप के कारण मुझे सर्पयोनि में जन्म लेना पड़ा, जबकि तुम एक ब्राह्मण के कुल में पैदा हुई। पर अब शाप का समय समाप्त हो चुका है। मैं पुन: अपना स्वरूप प्राप्त कर लिया।’ युवक कुछ और बताता इससे पहले ही कमरे का दरवाजा खुला और ब्राह्मण और ब्राह्मणी उनके कक्ष में आ पहुंचे। अपने सास-ससुर को अचानक अपने कमरे में प्रवेश करते देख उनकी वधू लज्जा से सिकुड़ गई, जबकि युवक ने झुककर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श कर लिए। बेटे को अपने गले से लगाते हुए ब्राह्मण ने कहा-“पुत्र, हमने सब कुछ छिपकर सुन लिया है। अब हमें सारी कहानी पता चल गई है, उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं। मुझे बहुत खुशी हो रही है कि तुमने अपना पूर्व स्वरूप पा लिया।” ब्राह्मणी ने भी अपने पुत्र की बलाएं लीं। दीप जलाकर उनकी आरती उतारी। ब्राह्मण ने सर्प के मृत शरीर को उठाया और जलती आग में फेंक दिया। युवक और उसकी पत्नी नया जीवन जीने के लिए तैयार हो उठे। एक नया भविष्य उनके सामने उनकी प्रतीक्षा कर रहा था |

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