apni baat atit ke chal chitr

समय-समय पर जिन व्यक्तियों से सम्पर्क ने मेरे चिन्तन की दिशा और संवेदन को गति दी है, उनके संस्मरणों का श्रेय जिसे मिलना चाहिए उसके

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apni baat rekha chitr

‘रेखाचित्र’ शब्द चित्रकला से साहित्य में आया है, परन्तु अब वह शब्दचित्र के स्थान में रूढ़ हो गया है। चित्रकार अपने सामने रखी वस्तु या

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do shabad path ke sathi

साहित्यकार की साहित्य-सृष्टि का मूल्यांकन तो अनेक आगत-अनागत युगों में हो सकता है; पर उनके जीवन की कसौटी उसका अपना युग ही रहेगा। पर यह

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aatmkhatay samaran

‘संस्मरण’ को मैं रेखा चित्र से भिन्न साहित्यिक विधा मानती हूं। मेरे विचार में यह अन्तर अधिक न होने पर भी इतना अवश्य है कि

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jo rakhaen na keh sakengi

एक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटाभरी अश्रुमुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी है। उन रेखाओं के उजले रंग

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