Diwali Ki Kahani | दिवाली की कहानी

Diwali Ki Kahani

Diwali Ki Kahani : हम दिवाली का त्यौहार क्यूँ मनाते हैं इसके पीछे कई कथाए हैं. प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ रामायण में बताया गया हैं की कई लोग दीपावली को चौदह साल के वनवास पश्चात राम पति सीता और उनका भाई लक्षमण की वापसी के समबन्ध के रूप में मनाते हैं वही अन्य प्राचीन हिन्दू माहाकव्य महाभारत के अनुसार पांडवो के 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात पांडवो की वापसी के रूप में मनाया जाता हैं.

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Diwali Ki Kahani

Diwali Ki Kahani : कई हिन्दू दिवाली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं. दीपावली का 5 वर्षीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता हैं. दिवाली की रात वह दिन हैं जब लक्ष्मी माता ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की. लक्ष्मी के साथ – साथ बड़ी बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश, संगीत साहित्य के प्रतीक सरस्वती और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं. कुछ दीपावली को विष्णु के बैकुंठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते हैं.

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Diwali Ki Kahani : मान्यता हैं की इस दिन लक्ष्मी में प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उनकी पूजा करते हैं वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखो से दूर सुखी रहते हैं. आज हम आपको दीपावली से जुडी हुई राजा बलि की कथा सुनाते हैं एक बार महाराजा युधिस्ठिर ने भगवान श्री कृष्णा से विनय पूर्वक पूछा कि “हे भगवन आप मुझ पर कृपया कर कई ऐसा व्रत या अनुष्ठान बताएं जिसके करने से मैं अपने नष्ट हुवे राज्य को पुन: प्राप्त कर सकू क्यूंकि राज छुट जाने के कारण मैं अत्यंत दुखी हूँ.

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Diwali Ki Kahani : भगवान् श्री कृष्णा ने कहा “हे राजन मेरे परमं भक्त दत्य राज बलि ने एक बार सौ अश्व मेघ यज्ञ करने का निर्णय लिया 99 यज्ञ तो उनके अच्छे से पूर्ण हो गए परन्तु 100 वां यज्ञ पूर्ण होने ही वाला था उसी समय इंद्र को चिंता सताने लगी की कही बलि उनका स्वर्ग उनसे छीन ना ले और इसी चिंता के वशीभूत हो कर इंद्र बाकी देवताओं को लेकर शीर्ष सागर निवासी भगवान विष्णु के पा पहुँच कर वेड मंत्रो से स्तुति की और अपने कष्ट का सारा वृत्तांत भगवान् विष्णु से कहा सुनाया. यह सुकर भगवान ने उन्हें कहा तुम निर्भय होकर अपने लोक में जाओ मैं शीघ्र तुम्हारे कष्ट को दूर कर दूंगा. इनके चले जाने के बाद भगवान ने वामन का अवतार धारण कर बटु वेश में राजा बलि के यज्ञ में प्रस्थान किया.

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Diwali Ki Kahani : राजा बलि को वचन बद्द कर श्री विष्णु ने 3 पग भूमि उनसे दान में मांगी. बलि दान का संकल्प करते ही भगवान् ने अपने विराट रूप से एक पग सारे पृथ्वी को नाप लिया, दुसरे पग को अन्तरिक्ष और तीसरा चरण उसके सर पर रख दिया. राजा बलि की दान शीलता से प्रसन्न होकर श्री हरी ने उनसे वर मांगने को कहा तो राजा ने कहा “कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी से अमावस्य तक अत: दीपावली तक इस धरती पर मेरा राज्य रहे,

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Diwali Ki Kahani : इन तीन दिनों तक सभी लोग देव दान कर लक्ष्मी की पूजा करे और करता के घर में लक्ष्मी का वास हो. राजा द्वारा याचित वर को देकर भगवान ने बलि को पातळ का राज देकर पातळ भेज दिया. उसी समय से देव के सम्पूर्ण लोग इस पार्व को मनाते चले आ रहे हैं. अत: सभी प्राणियों के लिए इस पर्व को मनाना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हैं. शुभ दीपावली! 🙂

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