द्रोण की पितामह भीष्म से भेंट : द्रोण के चमत्कार से गेंद पाकर सभी बालक बड़े प्रसन्न थे। एक बालक धीरे से बोला, “श्रीमन् ! | आपने असंभव को संभव कर दिखाया….आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! किंतु श्रीमन् !!…’
‘किंतु क्या…पूछो जो पूछना चाहते हो,”द्रोण ने उस बालक को उत्साहित किया।
“क्या कोई भी ऐसा कार्य कर सकता, जैसा आपने अभी किया है ?” बालक ने जिज्ञासा भरे शब्दों | में प्रश्न किया।
“क्यों नहीं, दृढ़ संकल्प और कठोर श्रम से कोई भी ऐसी क्षमता प्राप्त कर सकता है। इतना ही नहीं, | अभी और भी बहुत कुछ किया जा सकता है। वत्स, प्रत्येक विधा अंतहीन होती है।” | उस दिन हुई विलक्षण घटना तथा चमत्कारी धनुर्धर की चर्चा पितामह भीष्म के सामने राजकुमारों ने की तो पितामह उससे भेंट करने के लिए उत्सुक हो उठे जिसने राजकुमारों के मन में श्रद्धा का भाव जगाया था।
पितामह भीष्म स्वयं द्रोण की कुटिया पर पहुंच गए।