एक सही उपाय पर फिर भी क्यूँ पछताय | Ek Sahi Upay Par Fir Bhi Kyun Pacchtae : किसी नदी के किनारे एक बगुला और एक केकड़ा रहता था। साथ – साथ रहने के कारण दोनों में दोस्ती हो गई थी। एक दिन बगुला उदास भाव से खड़ा नदी के जल को घूर रहा था, तभी केकड़ा उसके पास पहुंचा और उसे उदास देखकर पूछा – क्या बात है मित्र! आज तुम बहुत उदास लग रहे हो। अपना आहार भी नहीं खोज रहे.’
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एक सही उपाय पर फिर भी क्यूँ पछताय | Ek Sahi Upay Par Fir Bhi Kyun Pacchtae : केकड़े का सहानभूति भरा स्वर सुनकर बगुले की आँखों में आंसू निकल पड़े. रुआंसे स्वर में बोला – “मित्र! आज मैं सचमुच बहुत दुखी हूँ. जिस वृक्ष पर मैंने अपना घोंसला बनाया हुआ हैं, उस वृक्ष की जड़ की एक कोटर में कुछ दिन से एक काला नाग आकर रहने लगा है। मौका पाकर वह वृक्ष पर चढ़ जाता है और बगुलों के अंडे-बच्चों को निगल जाता है। आज उस दुष्ट ने मेरे बच्चे भी खा लिए हैं। मैं बहुत परेशान हूं कि उस नाग से कैसे छुटकारा पाऊँ?” केकड़ा बहुत चतुर जीव था। कहने को तो वह बगुले का मित्र था, लेकिन वह सदैव उससे मन ही मन भयभीत भी रहता था कि न जाने किस बात पर नाराज होकर बगुला उसे अपना आहार बना ले। बगुले की समस्या सुनकर केकड़े ने कहा – ‘मित्र! उस नाग से छुटकारा पाने का उपाय मैं तुम्हें सुझाव देता हूं, बशर्त तुम उस पर अमल कर सको।’ ‘मैं तुम्हारे परामर्श के अनुसार ही काम करूंगा।’
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एक सही उपाय पर फिर भी क्यूँ पछताय | Ek Sahi Upay Par Fir Bhi Kyun Pacchtae : बगुला बोला-‘तुम जल्दी से उपाय को मुझे बता दो।’ ‘तो सुनो! पहले तुम किसी नेवले के रहने के स्थान का पता लगाओ। तुम्हें तो मालूम ही है कि सर्प और नेवले में जातिगत दुश्मनी होती है।’ ‘जानता हूं भाई, और एक ऐसा स्थान भी जानता हूं, जहां नेवलों का एक जोड़ा रहता है। अब आगे की बात बताओ।” बगुले ने पूछा। ‘तुम प्रतिदिन कुछ मछलियां इकट्ठी करनी शुरू कर दी। जब बहुत-सी मछलियां इकट्ठी हो जाएं, तो एक – एक करके उन्हें नेवले के रहने के ठिकाने से लेकर नाग की कोटर तक गिराते जाओ। नेवले जब अपने बिल से बाहर निकलेंगे, तो उन्हें मछलियों की सुगंध अपनी ओर आकर्षित करेगी। मछली खोजते – खोजते अंतत: वे नाग के ठिकाने तक जा पहुंचेंगे और नाग को खत्म कर देंगे।’ केकड़े ने उपाय बताया।
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एक सही उपाय पर फिर भी क्यूँ पछताय | Ek Sahi Upay Par Fir Bhi Kyun Pacchtae : ‘यह तो सचमुच ही बहुत सरल और कारगर उपाय है।” खुश होते हुए बगुले ने कहा – ‘मैं आज से ही मछलियां इकट्ठी करनी शुरू किए देता हूं।’
केकड़े का सुझाव मानकर बगुले ने वैसा ही किया। उसने नेवले के बिल से लेकर नाग की कोटर तक थोड़ी – थोड़ी दूरी के अंतर से मछलियां गिरा दीं। मछलियों की खुशबू जैसे ही नेवले की नाक में पहुंची, एक नेवला बाहर निकल आया, रास्ते में बिछी मछलियों को खाता हुआ नाग की कोटर तक जा पहुंचा। फिर जैसे ही उसकी नजर नाग पर पड़ी, वह उस पर टूट पड़ा। दोनों में देर तक लड़ाई चलती रही,
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अंत में नेवले ने नाग को मार डाला। इस प्रकार बगुले को नाग से तो छुटकारा मिल गया, लेकिन इसका एक दूसरा दुष्परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। नेवले को बिना प्रयास किए मछलियां खाने का चस्का लग गया। एक दिन मछलियां तलाश करते – करते वह वृक्ष पर चढ़ गया और बगुले के शेष बचे अंडे – बच्चों को भी चट कर गया।
इसीलिए तो विद्वानों ने कहा है कि अपने से बलवान शत्रु पर यदि विजय प्राप्त करनी हो, तो उससे बलशाली उसके किसी दूसरे शत्रु का सहारा लो। उपाय करने से ही बलवान शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
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