हिंदी साहित्य में हरिवंशराय बच्चन जी का योगदान काफी अतुल्य एवं सराहनीय रहा है। इनका जन्म २७ नवंबर सन् १९०७ में प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव और माता का नाम सरस्वती देवी था। हरिवंशराय बच्चन जी अपने माता-पिता के प्रथम संतान थे। बहुत लाड़ प्यार में रहने के कारण ‘बच्चन’ नाम से उन्हें पुकारा जाने लगा और उनका यह नाम उनके जीवन के अंतिम क्षण तक उनके नाम के साथ रह गया।हरिवंश राय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के कायस्थ परिवार में हुआ था।
उनका जीवन
हरिवंशराय बच्चन जी की स्कूली शिक्षा एक नगरपालिका के स्कूल से प्रारंभ हुई। यह वह अवधि था जब उन्होंने उर्दू भी कायस्थ पाठशाला से सीखना शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं काशी विश्वविद्यालय से पूरी की।
१९४१-१९५२ तक एक अंग्रेजी शिक्षक के रूप में हरिवंशराय बच्चन जी इलाहबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाया। तत्पश्चात वह दो वर्ष के लिए अपनी PhD पूरी करने के लिए वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए जहां पर उन्होंने W.B Yeats and occultism पर अपनी डॉक्टरेट की थीसिस लिखा। इतना ही नहीं वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दूसरे भारतीय थे जिन्होंने अंग्रेजी में PhD की डिग्री प्राप्त किया। यह बात न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि समस्त भारतीयों के लिए यह गर्व की बात थी।
यही वह क्षण था जिस क्षण में उन्होंने श्रीवास्तव नाम को हटाकर बच्चन नाम अपने नाम के आखिर में जोड् लिया और उस क्षण से वह हरिवंशराय श्रीवास्तव के स्थान पर हरिवंशराय बच्चन के नाम से जाने गए।
फिर वह कैम्ब्रिज से भारत वापस आ गए भारत आकर उन्होंने शिक्षक और साथ ही साथ भारतीय रेडियो के इलाहाबाद स्टेशन में अपना कार्यभार संभाला।
इसके बाद सन् १९५५ को वह दिल्ली चले गए वहां जाकर विदेशी मंत्रालय में एक खास अफसरों के तौर पर हिंदी विभाग में कार्यलयी दस्तावेजों को अनुवादक के अनुवाद करने का दायित्व संभाला। १० साल तक उन्होंने इस कार्य को लगातार किया। १० साल के इस कार्य अवधि में उन्होंने हिंदी को अधिकारिक भाषा के रूप में बढ़ावा देने के साथ-साथ उन्होंने कुछ प्रमुख कार्यों का भी अनुवाद किया जैसे—भगवद्गीता, मैकबेथ आदि।
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कार्य
हरिवंशराय बच्चन जी को उनकी १४२ गीतात्मक कविता ‘मधुशाला’ (द हाउस ऑफ वाइन) के लिए हम सब बहुत अच्छे से जनते है, क्योंकि यह कविता जो १९३५ में प्रकाशित हुई थी वह आज तक हम सबके बीज चर्चित है। ‘मधुशाला’ को अंग्रेजी एवं और भी अनेक भाषा में अनुवाद किया गया है। अनुवाद के इस प्रक्रिया से ही पता चल जाता है कि हरिवंशराय बच्चन जी की ‘मधुशाला’ देशी -विदेशी सबके अंतर्मन को स्पर्श कर गई थी। जिस कारण इसकी मांग आज भी है।
इन्होंने चार भाग में अपनी आत्मकथा को लिखा है। जिसमें से प्रथम भाग ‘क्या भूलूं करता याद करूं ‘ को इन्होंने सन् १९६९ को प्रकाशित किया। यह हिंदी साहित्य जगत में एक कालजयी कृति है। हरिवंशराय बच्चन के अनुसार उनकी रचना को वह ही समझ सकता है जो जीवन में बहुत कुछ सहता है और सहकर जीता है।
दूसरे ही वर्ष उन्होंने अपने आत्मकथा के दूसरे भाग ‘नीड़ का निर्माण फिर’ सन् १९७० में प्रकाशित हुआ। इस आत्मकथा के कारण ही हरिवंशराय बच्चन जी को ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित किया गया था।
तीसरा आत्मकथा ‘बसेरे से दूर’ को सन् १९७७ में प्रकाशित किया गया था। यह आत्कथा विवादों से युक्त है। इलाहाबाद से उनको जो भी अनुभव हुआ उन सारे अनुभवों को उन्होंने इसमें लिख दिया।
चौथी आत्मकथा ‘दशद्वार से सोपान तक’ को सन् १९८५ को प्रकाशित किया गया। इलाहाबाद के जिस किराये के घर में बच्चन साहब रहते थे उसका नामकरण ही उन्होंने ‘दशद्वार’ और ‘सोपान’ नाम दिया था।
उनके द्वारा लिखा गया अंतिम कविता ‘एक नवंबर’ लिखा गया था जो इंदिरा गांधी के मौत के आधार पर लिखा गया था सन् १९८४ में।
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पुरस्कार
राज्यसभा में सन् १९६६ में हरिवंशराय बच्चन जी को नोमिनेट किया गया था और सन् १९६९ में में उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य के जगत में उनकी एक-से-एक योगदान के कारण उनको पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।इसके अलावा उन्हें सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार, अफ्रीका-एशियाई लेखकों के सम्मेलन और सरस्वती सम्मन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
सन् १९९४ में उत्तर प्रदेश की सरकार की ओर से ‘यश भारती’ सम्मान से सम्मानित किया गया । २००३ में उनके मृत्यु के उपरांत एक डाक टिकट जारी किया गया।
विवाहित जिंदगी
सन् १९२६ में १९ साल के उम्र में उनकी शादी १४ वर्ष की श्यामा से संपन्न हुआ था। मगर पत्नि सुख उनको सुख ज्यादा नसीब न हो पाया। श्यामा की मृत्यु १९३६ में टीवी के कारण हुई और वह इस दुनिया को अलविदा कह गई।
इसके बाद उनका विवाह पांच साल बाद तेजी सूरी से हुआ। जिनसे उनको दो बच्चे अमिताभ और अजिताभ बच्चन दो बच्चे हुए।
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अंतिम क्षण
२००३ में ९५ साल में हरिवंशराय बच्चन जी की मृत्यु हो गई और हिंदी जगत की बहुत बड़ी क्षति हुई। चार साल बाद उनकी पत्नी की मृत्यु भी ९३ साल में हो गई।