झूठ के पांव नहीं होते | Jhuth Ke Panv Nahi Hote

झूठ के पांव नहीं होते | Jhuth Ke Panv Nahi Hote : किसी जंगल में एक सियार (गीदड़) रहता था। एक दिन भोजन की तलाश में वह सारे दिन जंगल में भटकता रहा, किंतु उसे कोई भी शिकार न मिला। भोजन की तलाश में वह आगे ही आगे बढ़ता गया और एक शहर के नजदीक जा पहुंचा। सियार जानता था कि शहर में आहार खोजने के लिए जाना एक जोखिम भरा कार्य है, किंतु भूख ने उसे बेहाल कर रखा था। शहर की एक गली के नुक्कड़ पर खड़ा होकर वह अभी विचार कर ही रहा था कि कुछ कुत्तों ने उसे देख लिया और वे भौंकते हुए उस पर झपट पड़े। जान बचाने के लिए सियार सिर पर पांव रख कर भागा। उसने एक घर का दरवाजा खुला देखा, तो बेतहाशा भागता हुआ उसी मकान में घुस गया।

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झूठ के पांव नहीं होते | Jhuth Ke Panv Nahi Hote : वह मकान एक रंगरेज का था। उसने कपड़ों में रंग लगाने के लिए एक बड़ीसी नांद में नील घोला हुआ था। सियार को छुपने के लिए कोई जगह दिखाई न दी, तो वह उसी नांद में कूद गया। उसका पीछा करते हुए कुत्ते रंगरेज के घर तक आए, किंतु जब सियार दिखाई न दिया, तो वे वापस लौट गए।

सियार बहुत देर तक नांद में पड़ा – पड़ा हांफता रहा। जब उसे यह विश्वास हो गया कि अब कुत्तों से कोई डर नहीं है, तो वह कूदकर नांद से बाहर निकल आया। उसने दरवाजे पर आकर सावधानीपूर्वक गली में देखा। जब उसे कोई खतरा नजर न आया, तो वह तेजी से जंगल की ओर दौड़ पड़ा और जंगल में पहुंचकर ही दम लिया।
बहुत देर तक नील की नांद में पड़े रहने के कारण सियार सिर से पांव तक नीले रंग का हो गया था। जंगल के जानवरों ने जब उस नीलवर्ण के जीव को देखा, तो वे उससे डर कर भागने लगे। उन्होंने पहले कभी ऐसा प्राणी नहीं देखा था।

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झूठ के पांव नहीं होते | Jhuth Ke Panv Nahi Hote : यह देखकर सियार के मन में एक योजना उभरने लगी। वह सोचने लगा – ‘जंगल के ये पशु मुझे देखकर भयभीत हो रहे हैं। ये मुझे किसी दूसरे लोक से आया हुआ कोई जीव समझ रहे हैं। क्यों न इनकी नादानी का फायदा उठाया जाए।’ ऐसा विचार कर उसने भयभीत पशुओं से कहा – ‘अरे जंगल के जीवो! मेरे पास आओ और मेरी बात सुनो। मुझसे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। मैं यहां तुम्हारा अनिष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि कुछ उपकार करने ही आया हूँ।’ सियार की आश्वासन भरी आवाज सुनकर धीरे – धीरे जंगल के सभी जीव उसके पास पहुंचने लगे। शेर, चीता, हाथी, बाघ, हिरण, बंदर आदि सभी जंगल के जीव उसके पास पहुंच कर उसके सामने खड़े हो गए। सियार ने उनसे कहा – ‘मित्रों! मैं तुम्हें अपना परिचय देता हूं। मैं एक विशेष प्रकार का प्राणी हूं। भगवान ने स्वयं मुझे यह आदेश देकर भेजा है कि जाओ और जंगल के जीवों का राजा बनकर उनकी रक्षा करो। अब से मैं इस जंगल के राजा की जिम्मेदारियां निभाऊंगा। तुम लोगों को भी अपने राजा के प्रति सारे कर्तव्य निभाने होंगे। मेरे भोजन का प्रबंध जुटाना, मेरी सुख – सुविधा का विशेष खयाल रखना अब आपका कर्तव्य बन जाता है। इसलिए निश्चित होकर जंगल में रहो और अपने – अपने कर्तव्य का पालन करो।’
जंगल के सभी जीवों ने उस रंगे सियार को अपना राजा स्वीकार कर लिया। वे उसके लिए भोजन और दूसरी सुख – सुविधाएं जुटाने लगे। अब गीदड़ के दिन आनंद से व्यतीत होने लगे।

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झूठ के पांव नहीं होते | Jhuth Ke Panv Nahi Hote : कहावत है कि व्यक्ति के संस्कार कभी नहीं जाते। एक दिन राजा बने उस रंगे सियार ने शाम के समय गीदड़ों की हुआ – हुआ की आवाजें सुनीं। सुनकर उसे पुराने दिन याद आ गए, जब वह एक सामान्य गीदड़ हुआ करता था। अपने बंधु – बांधवों की हुआ – हुआ की आवाजों को सुनकर वह इतना आनंदित हुआ कि स्वयं भी मुंह उठाकर उनके सुर में सुर मिलाने लगा। यह देखकर सभी जंगली जानवर समझ गए कि यह कोई विशेष जीव नहीं है और न ही यह भगवान द्वारा भेजा गया है।
यह तो कोई रंगा हुआ सियार है, जो हमें धोखा दे रहा है। बस फिर क्या था, गुस्से में भरकर सिंह और चीता जैसे हिंसक जीव उस सियार पर झपट पड़े। अपनी जान बचाने के लिए सियार अपना मुकुट छोड़ वहां से सरपट भाग लिया। बड़ी मुश्किल से उसने अपनी जान बचाई। उस दिन से उसे सबक मिल गया कि झूठ के पांव नहीं होते। सच्चाई एक न एक दिन खुल ही जाती है।

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