जिस पर जो बीतती हैं, वही जान पाता हैं | Jis Par Jo Bitati Hain Vahi Jaan Pata Hain

जिस पर जो बीतती हैं, वही जान पाता हैं | Jis Par Jo Bitati Hain Vahi Jaan Pata Hain

जिस पर जो बीतती हैं, वही जान पाता हैं | Jis Par Jo Bitati Hain Vahi Jaan Pata Hain : एक बार एक मुर्गी और एक पक्षी में मित्रता हो गई। दोनों साथ – साथ बैठते, एकदूसरे का हाल – चाल जानते, कह – सुनकर समय बिताते। एक दिन पक्षी ने मुर्गी से कहा – ‘सुना है कि तुम बड़ी कपटी हो! बेईमान भी हो!’ यह सुनकर मुर्गी सन्न रह गई, फिर कुछ सोचकर बोली – ‘तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो? तुमने मुझमें कौनसी बेईमानी देखी है, बताओ तो?” यह कहकर मुर्गी गुस्से में पंख फैलाने लगी। तब पक्षी ने कहा – ‘देखो तो, तुम अपने स्वामी को कितना सताती हो। दिन में वह तुम्हें दाना खिलाता है। रात में दड़बे में रखकर तुम्हारी रक्षा करता है, फिर भी तुम उसे हाथ नहीं लगाने देती। यहां – वहां उसे अपने पीछे दौड़ाती हो। क्या यह अच्छी बात है?

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जिस पर जो बीतती हैं, वही जान पाता हैं | Jis Par Jo Bitati Hain Vahi Jaan Pata Hain

जिस पर जो बीतती हैं, वही जान पाता हैं | Jis Par Jo Bitati Hain Vahi Jaan Pata Hain : हमें देखो हमारी कोई देखभाल नहीं करता, पर जब कोई आदमी हमें पालतू बनाता है तो हम उसके साथ रहते हैं। उसकी मानते हैं, कहीं भी हों उसकी एक आवाज पर उड़कर उसके पास आ जाते हैं।’ पक्षी की बात सुनकर मुर्गी बोली – ‘तुम सच कह रहे हो। मैं तुम्हें झूठा नहीं कह सकती, लेकिन तुम्हें क्या पता कि हम आदमियों को अपने पीछे क्यों दौड़ लगवाते हैं? तुम्हें कैसा लगेगा, जब तुम किसी दूसरे पक्षी को काटे जाते या अग्नि पर सेंके जाते देखो तो? जब हमारा स्वामी हमें पकड़कर आग में भूनना चाहता है, तब हम बचने के लिए यहां – वहां दौड़ते हैं। मैं तो एक कोने से दूसरे कोने में भागती हूं, लेकिन यदि ऐसा तुम्हारे साथ हो, तो तुम एक पहाड़” से दूसरे पहाड़ की ओर भागोगे, समझे !’ मुर्गी की बात सुनकर पक्षी निरूतर हो गया. जिस पर जो बीतती हैं, वही तो जान पाता हैं.

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