Joh main chahu | Akbar Birbal Stories in Hindi : अकबर के साम्राज्य में, दिल्ली शहर में एक कंजूस रहता था। वह इतना कजूस था कि केवल भोजन जैसी अति आवश्यक वस्तुओं पर ही धन व्यय करता था। शेष धन वह एक संदूक में बंद कर देता था। वह एक टूटी-फूटी मिट्टी और फूस की बनी छोटी-सी झोंपड़ी में रहता था। यहाँ तक कि वह ठीक ढंग से वस्त्र भी नहीं पहनता था। उसकी देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उसके पास सोने और हीरे-जवाहरातों से भरा एक संदूक भी है। वह हमेशा उस संदूक को झोंपड़ी के एक कोने में छिपा कर रखता था। दुर्भाग्यवश एक दिन उसकी झोंपड़ी में आग लग गई। अपनी झोंपड़ी को जलते देखकर कजूस मदद के लिए जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगा।
उसकी चीखें सुनकर पड़ोसी उसकी सहायता के लिए दौड पड़े। बाल्टी में पानी भर-भरकर वे आग बुझाने का प्रयास करने लगे। परंतु आग इतना भीषण रूप धारण कर चुकी थी कि वे आग बुझाने में सफल नहीं हो पा रहे थे। यह देखकर कजूस और जोर-जोर से रोने लगा। उसको इस प्रकार रोता देखकर भीड़ में से एक व्यक्ति ने कहा “तुम इस प्रकार क्यों रो रहे हो? आखिर यह मिट्टी फूस की एक पुरानी झोंपड़ी ही ती है, फिर बन जाएगी।” “अरे नहीं, श्रीमान्! आप नहीं जानते। इस झोंपड़ी में मैंने अपने जीवन भर की पूँजी छिपा रखी है। झोंपड़ी के अन्दर कोने में सोने के सिक्कों और हीरे-जवाहरातों से भरा एक संदूक रखा है।” जो व्यक्ति कजूस से यह सब पूछ रहा था, वह एक लालची सुनार था। उसने कहा “मैं झोंपड़ी के अन्दर किसी तरह चला जाऊँगा और तुम्हारे लिए वह संदूक निकाल ले आऊँगा, परंतु तुम्हें मुझसे यह वायदा करना पडेगा कि संदूक बाहर लाने के बाद मैं तुम्हें केवल वही दूँगा, जो मैं चाहूँगा, बाकी सब कुछ मेरा होगा।” बहुत पुरानी कहावत है कि ‘सारा जाता देखकर आधा लीजै बाँट” और कोई चारा न देखकर कजूस उस सुनार की शर्त मान गया और लालची सुनार धधकती आग में कूदकर संदूक को बाहर निकाल लाया।
कजूस ने उससे अपने सोने के सिक्कों और हीरे-जवाहरातों को वापस मॉंगा, तो लालची सुनार ने जवाब दिया, था कि मैं तुम्हें वही दूँगा, जो मैं चाहूँगा। अत: मैं तुम्हें यह संदूक देता हूँ, इसमें रखी सभी वस्तुएँ अर्थात् सोने के सिक्के और हीरे-जवाहरात मेरे होंगे।” “अरे, पर यह तो धोखा है। यह सही है कि तुमने मेरी सहायता की। इस कृपा के बदले इस संदूक में रखी मेरी पूरी बचत में से आधा हिस्सा तुम ले लो और आधा हिस्सा मुझे दे दो।” सुनार इस बात से सहमत नहीं हुआ। इस विषय में बहस चलती रही पर कोई संतोषजनक निर्णय नहीं हो सका। अंत में न्याय के लिए दोनों बीरबल के पास पहुँचे। बीरबल ने उनकी समस्या सुनी और कहा “सुनार जी, तुमने इस व्यक्ति से यह वायदा किया था कि जो तुम्हें पसंद होगा, वही उसे दोगे? क्या यह सच है?” “हाँ, श्रीमान्, यह सच है?” सुनार ने उत्तर दिया।
“अब बताओ तुम्हें क्या पसंद है?” बीरबल ने सुनार से पूछा। “संदूक में रखे हीरे-जवाहरात तथा सोने के सिक्के, श्रीमान्।” सुनार ने तुरंत उत्तर दिया। तो बीरबल ने सुनार से कहा “सो तुम्हारी शर्त के अनुसार संदूक में रखे हीरे-जवाहरात इस कंजूस के हैं। शेष सब तुम्हारा है।” सुनार समझ गया कि बीरबल ने उसे उसके ही शब्दों के जाल में उलझा दिया है। इस प्रकार बीरबल के न्याय के कारण कजूस को अपनी पूँजी वापस मिल गई।
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