कालिदास की वापसी : मां सरस्वती की अपार कृपा से सराबोर हो कालिदास वापस विद्योत्तमा से मिलने आए। वे विद्योत्तमा के प्रति कृतज्ञ थे। क्योंकि न उसने उन्हें घर से निकाला होता और ना ही वे विद्या के गौरव को समझ पाते।
कालिदास ने विद्योत्तमा का द्वार खटखटाते हुए पुकारा, कपाटमुद्घाटय चारुलोचने स्थितस्तवाऽयं प्रणयी पुरस्तात् अर्थात् सुंदर नेत्रों वाली द्वार खोलो, तुम्हारा प्रेमी बाहर खड़ा है।” | कविताभरी गुहार सुनकर विद्योत्तमा के मुख से निकला-अस्ति कश्चित् वाग्विशेषः अर्थात कोई विशिष्ट वाणी से युक्त व्यक्ति है। उष्ट्र शब्द को उटू-उट्र कहने वाले काली की वाणी में इतना लालित्य आ जाएगा विद्योत्तमा ने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी।