माँ का प्रेम | Maa Ka Prem

माँ का प्रेम | Maa Ka Prem

माँ का प्रेम | Maa Ka Prem : ब्रह्मदत्त दूर किसी नगर में काम से जा रहा था। वह नगर काफी दूर था। उसके परिवार वाले भी चिंता में थे कि वह अकेला कैसे जाएगा? जाने के पूर्व मां ने पूछा-‘बेटा! तुम अकेले जा रहे हो, क्या कोई और भी तुम्हारे साथ जा रहा है?’ ‘नहीं मां, मैं बिल्कुल अकेला ही जा रहा हूं।” ब्रह्मदत्त ने कहा। यह सुनकर उसकी मां उदास हो गई, वह कहने लगी – ‘तुम्हारा इस तरह अकेले जाना ठीक नहीं है। मार्ग में चोर-लुटेरे और जंगली जानवर हैं।’ फिर कुछ सोचकर वह बोली-‘मैं तुम्हें एक चीज देती हूं।’ ब्रह्मदत्त ने चौंककर पूछा-‘क्या?’ तभी मां ने एक छोटा केकड़ा लाकर ब्रह्मदत्त को दिखाया और उसे देते हुए कहा-‘यह केकड़ा तुम्हारा रास्ते का साथी बनकर जाएगा। इसको अपने साथ रखना। अकेले रहने से दो का रहना अच्छा होता है।’

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माँ का प्रेम | Maa Ka Prem
माँ का प्रेम | Maa Ka Prem : अब ब्रह्मदत्त को हंसी आ गई-‘यह जरा-सा केकड़ा और मेरा साथी। यह मेरी क्या सहायता करेगा?’ पुत्र की बात सुनकर मां उदास हो गई, तो मां को खुश करने के लिए ब्रह्मदत्त ने कहा-‘मां, तुम ठीक ही कह रही हो। मैं यह केकड़ा अपने साथ ले जाता हूं। इसे एक डिब्बे में रख दो, मैं उसे झोले में रखकर अपने साथ ले जाऊँगा।’

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ब्रह्मदत्त अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। चलते-चलते वह थक गया, तो कुछ देर विश्राम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुका, तो उसे नींद आ गई और वह वहीं सो गया। जिस पेड़ के नीचे वह सो रहा था, वहीं एक भयानक सांप भी था। सांप रेंगता हुआ झोले के पास आया और उसमें रखा डिब्बा खोलने लगा। उसे उसमें से खाने की गंध आ रही थी। जैसे ही डिब्बे का ढक्कन खुला केकड़े ने सांप को मौका दिए बिना उसकी गर्दन दबोच ली। सांप वहीं तड़पकर मर गया।
थोड़ी देर बाद ब्रह्मदत्त की निद्रा टूटी। पास में मरा सांप देखकर वह समझ गया कि केकड़े ने उसे मारा है और मेरी जान बचाई है। अगर यह केकड़ा नहीं होता, तो सांप तो मुझे डस ही लेता। अब मैं समझा कि किसी को भी छोटा और बेकार नहीं समझना चाहिए।

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