मां सरस्वती से क्षमा याचना : एक कथा के अनुसार एक बार महाकवि दंडी को राजकवि घोषित किया गया। इसमें मां सरस्वती की साक्षात स्वीकृति थी। कालिदास इस बात से रुष्ट हो गए। उन्होंने मां सरस्वती से जब पूछा, तो मां ने दंडी को ही सर्वश्रेष्ठ कवि बताया। कालिदास अपनी सारी सीमाएं लांघ गए। उन्होंने मां सरस्वती को बहुत भला-बुरा कहा। मां मुस्कराती रहीं। अंत में, कालिदास ने जब यह पूछा, “तो मैं कौन हूं?” इस पर मां ने कहा, “त्वमेवाऽहं त्वमेवाऽहं त्वमेवाऽहं न संशयः”-तुम तो मेरा ही रूप हो, इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है। इन शब्दों को सुन कर कालिदास मां के चरणों में गिर पड़े और लगे बिलखते हुए क्षमा मांगने । मां ने क्षमा कर दिया। मां का तो रूप ही क्षमा का है। पुत्र कुपुत्र हो सकता है माता कुमाता नहीं होती।