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Mahadevi Verma | महादेवी वर्मा का जीवन परिचय और कविताएँ

Mahadevi Verma | महादेवी वर्मा कवयित्री

Mahadevi Verma: महादेवी वर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़रूर्खाबाद में सन् १९०७ में हुआ था। महादेवी जी अपने कुल में २०० साल बाद जन्म लेने वाली पहली कन्या थी। महादेवी जी के पिता जी अपने बिटिया के जन्म से खुशी से झूम उठे थे और देवी माता का आशीर्वाद समझकर अपनी पुत्री का नाम महादेवी रख दिया।

महादेवी जी के पिता का नाम गोविंद प्रसाद वर्मा था तथा माता का ‌नाम हेमरानी देवी था।

हिंदी – काव्य में महादेवी ने करूणा का जो श्रृंगार किया है, वह किसी दूसरे कवि से कभी भी नहीं हो पाया। इस बात का यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि अन्य कवियों की कविता में कभी भी करूणा नहीं था, अन्य कवियों में करूणा का भाव तो होता था मगर उतनी मधुरता एवं सुंदरता नहीं थी जितनी महादेवी जी के काव्यों में होता है।

आप सब को यह जानकर हैरानी होगी की महादेवी जी सात वर्ष की उम्र से कविता लिखती थी। यही कारण है कि उनकी कविता इतनी प्रसिद्ध होती है। आखिर हो भी क्यों न महादेवी कविता में इतनी शक्ति होती की उनके पाठक डूबकी‌ लगा ही लेते हैं और कविता में डूबकर बिल्कुल गहराई तक चले जाते हैं।

महादेवी जी ने अपनी करूण कोमल कविता से ही साहित्य में प्रवेश किया था। ‘अतीत के चलचित्र’ उनकी प्रथम गद्य पुस्तक है। रचना चाहे गद्य की हो या पद्य की उसमें साहित्यकार के व्यक्तित्व का भाव अवश्य होता है। साहित्यकार जो कुछ भी लिखता है उस पर उसके अनुभवों , विचारों तथा मनोभावों का छाप उसी प्रकार ही रहता है, जिस तरह वस्तु की स्थिति के साथ उसकी छाया।

महादेवी वर्मा की कविताएँ | Mahadevi Verma Poems

महादेवी वर्मा की शिक्षा—दिक्षा | Mahadevi Verma Education

Mahadevi Verma: महादेवी जी ने अपनी पढ़ाई इंदौर के मिशन स्कूल से प्रारंभ किया जहां पर संस्कृत, चित्रकला, अंग्रेजी की शिक्षा शिक्षकों के द्वारा घर पर ही दी जाती थी। विवाह होने के कारण कुछ दिनों के लिए महादेवी जी की शिक्षा रूक गई थी।

विवाह के बाद महादेवी जी ने छात्रावास में रहकर अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की। सन् १९१९ में उनका दाखिला क्रास्थवेथ कालेज इलाहाबाद में हुआ और महादेवी जी वहीं के छात्रावास में रहती थी। महादेवी जी को कक्षा आठवीं में पूरे इलाहाबाद प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था जो सचमुच बहुत गर्व की बात थी।

सात साल की उम्र से लिखते-लिखते जब महादेवी जी ने अपनी मैट्रिक की परीक्षा को पास किया था तब तक उनकी गिनती सुप्रसिद्ध कवयित्री के रूप में हो चुका था।

कालेज में प्रवेश लेते-लेते महादेवी जी की कविता प्रकाशित भी होना प्रारंभ हो गई थी। कालेज में उनकी प्रिय दोस्त थी सुभद्रा कुमारी चौहान । सुभद्रा जी और महादेवी की मित्रता बचपन की नहीं थी फिर भी मित्रता बहुत पक्की और घनिष्ठ थी। सुभद्रा जी के कारण महादेवी जी को और भी लिखने की प्रेरणा मिलती थी जब सुभद्रा जी महादेवी जी का परिचय अपने अन्य मित्रों से यह कहकर करवाती थी कि यह कविता लिखती हैं।

सन् १९३२ में महादेवी जी की दो कविता संग्रह दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी थी । १९३२ में महादेवी जी ने संस्कृत में स्नातकोत्तर भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कर लिया था।

महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन | Mahadevi Verma Married Life

महादेवी जी के वैवाहिक जीवन के संबंध में कुछ खास नहीं बताया जा सकता है। विवाह तो इनका हुआ था मगर दिखने में खूबसूरत न होने के कारण इनको इनके पति द्वारा त्याग किया गया था। ऐसा कहीं पढ़ने को मिलता है तो कहीं यह पढ़ने को मिलता है कि महादेवी जी के पति श्री स्वरूप नारायण वर्मा भी दसवीं के पढ़ाई के लिए छात्रावास में रहते थे जिस वजह से महादेवी जी के पति उनके साथ नहीं रह पाते थे क्योंकि विवाह के पश्चात महादेवी जी पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चली गई थी। उन में भेंट होती थी मगर स्त्री -पुरूष जैसा संपर्क नहीं था।

सादा जीवन ही वह व्यतीत करना पसंद करती थी। उस तरह ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यक्त किया।

साहित्य में महादेवी जी का योगदान | Mahadevi Verma Contribution in Hindi Literature

छायावाद के चार प्रमुख स्तंभ में से एक स्तंभ महादेवी जी भी है जिन्होंने साहित्य को एक नया रूप भी प्रदान किया था। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत की तरह छायावाद में महादेवी जी ने मूल बात की प्रतिष्ठा की थी वह थी काव्यों में जान डाला था।

महादेवी जी की एक विशिष्टता यह थी कि उन्होंने कभी भी कल्पना का सहारा नहीं लिया। उन्होंने हमेशा सत्य घटनाओं का सहारा लेकर ही रेखाचित्र, संस्मरण, ललित निबंध लिखा है। उनके इस विशेषता के कारण ही वह अपने पाठकों की चहेती बनी।

इतना नहीं वह मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में बुलाई जाती थी। विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन में उनको मुख्य अतिथि के रूप में सन् १९८३ में बुलाया गया था।

इसके अलावा उन्होंने अनुवादक के रूप में बहुत सारा अनुवाद भी किया था।

महादेवी वर्मा की रचनाएं | Mahadevi Verma Compositions

महादेवी जी की गिलू को बच्चों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। इसके अलावा उनकी प्रमुख रचनाएं हैं ठाकुरी बाबा जो कि एक संस्मरण है। दीपशिखा, अग्निरेख है जो चांद नाम के पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

नीर भरी दुख की बदली, जो तुम आ जाते एक बार बहुत प्रसिद्ध कविता है। अपनी कविता नीर भरी दुख की बदली के कारण ही उनको आधुनिक युग की मीरा कहा जाने लगा। मीरा बाई और महादेवी जी में फर्क सिर्फ इतना है कि मीरा बाई सगुण ब्रह्म की उपासक थी और महादेवी जी निर्गुण निराकार ब्रह्म की।

महादेवी वर्मा के पुरूषकार एवं सम्मान | Mahadevi Verma Achievements

यामा जो कि १९३६ में लिखा गया था उसके लिए महादेवी जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सन् १९८२ को सम्मानित किया गया था।

  • १९५६ पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • १९८८ को उनको पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
  • १९७९ को साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया।

नारी के लिए प्रेरणा की स्त्रोत थी महादेवी | Mahadevi Verma was a Motivation for Women

औरतों के साथ उनके युग में भी अन्याय होता था और वह उन अन्याय का विरोध अपने कलम के माध्यम से करती थी। उन्होंने अपने लेख लछमा के माध्यम से यह बताया है कि जब भी एक औरत के साथ अन्याय होता है तो संपूर्ण समाज नारी की लाज ढकने के बजाय उसकी इज्जत को भरी बाजार में उछालता है जबकि उसकी कोई गलती नहीं होती है। पुरूष को बचाने की प्रवृत्ति महादेवी जी को समझ नहीं आती थी। वह हमेशा अन्याय का खुलकर विरोध करती थी। वह हमेशा नारी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती थी।

महादेवी वर्मा की मृत्यु | Mahadevi Verma Death

 सन् १९८७ में महादेवी जी ने इलाहाबाद में अपनी अंतिम सांस को लिया।

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