मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak

मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak

मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak : एक गांव में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नामक दो मित्र रहते थे। धर्मबुद्धि बुद्धिमान और होशियार था, पर उसका मित्र पापबुद्धि बुद्धि से कमजोर और धीमा काम करने वाला था। पापबुद्धि गरीब था। गरीबी में रहते – रहते वह तंग आ चुका था। उसने सोचा यदि मैं अपने मित्र धर्मबुद्धि की सहायता लूँ और उसके साथ किसी दूसरे शहर में जाकर धन कमाऊं, तो अच्छा रहेगा। बाद में मैं उसके हिस्से का धन भी चुरा लूगा, फिर सारी जिंदगी आराम से रहूँगा.

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मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak : थोड़े दिन पश्चात पापबुद्धि की पास गया और बोला – ‘तुमने अपनी वृद्धावस्था के लिए क्या सोचा हैं? क्यों न हम दोनों दुसरे देश में जाकर धन कमाएं।
तुमने सुना ही होगा कि जब तक तुम दुसरे देशो में नहीं जाओगे, तुम बूढ़े होकर अपने बच्चो को क्या किस्से सुनाओगे.
धर्मबुद्धि को अपने मित्र का सुझाव अच्छा लगा. एक अच्छा दिन देखकर दोनों.

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मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak

मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak : दोस्त यात्रा पर निकल पड़े। एक शहर में जाकर थोड़े दिन पश्चात धर्मबुद्धि ने अपनी चतुराई और परिश्रम से काफी धन कमा लिया। अब वे दोनों अपनी सफलता पर खुश थे। उन्होंने अपने पुराने घर वापस जाने का विचार किया।
जब वे अपने गांव के नजदीक पहुंचे, तो पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा – ‘क्या तुम यह सारा धन घर पर ले जाना ठीक समझते हो। हमारे भाई – बंधु और मित्र यह सब देखकर जल उठेगे। हमें चाहिए कि हम सारा धन यहीं पेड़ के नीचे गाड़ दें , और थोड़ा – सा घर ले चलें। जब हमें जरूरत पड़ेगी, तो हम बाकी धन भी निकाल सकते हैं।” धर्मबुद्धि ने कहा – ‘यह अच्छी तरकीब है।’ और फिर सारा धन वहां गाड़कर थोड़ा-सा बाकी धन वे अपने साथ लेकर खुशी – खुशी घर चले गए।

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एक दिन पापबुद्धि ने रात को जंगल में जाकर सारा धन खोदकर निकाल लिया और उसे थैले में भर लिया। उसने मिट्टी के घड़े को उसी प्रकार ढक दिया जैसा वह पहले था। वह सारा धन लेकर घर वापस आ गया। थोड़े दिन बाद वह धर्मबुद्धि के पास जाकर बोला – ‘मेरे प्यारे दोस्त! मेरे घर का खर्च ज्यादा है, इसलिए मेरा सारा पैसा खर्च हो गया है। क्यों न हम जंगल में जाकर अपना बचा हुआ धन ले आएं।” धर्मबुद्धि ने कहा-‘ठीक है, चलो चलते हैं।’

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मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak
मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak : दोनों ने जंगल में जाकर उस जगह को खोदा, परंतु बर्तन बिल्कुल खाली था। पापबुद्धि छाती पीट – पीटकर चिल्लाने लगा – ‘अरे धर्मबुद्धि! तुमने मुझे धोखा क्यों दिया। सिर्फ तुम्हीं जानते थे कि धन कहां गड़ा है, इसलिए तुमने चुपचाप यहां से धन निकाल लिया और बर्तन को ढक दिया, पर तुम समझ लो कि उसमें से आधा धन मेरा है। तुम या तो आधा धन मुझे चुपचाप दे दो, नहीं तो मैं न्यायालय में तुम पर दावा कर दूंगा !’
धर्मबुद्धि को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा – ‘अरे बदमाश! तुम मुझे इस प्रकार क्यों कह रहे हो। मुझ पर झूठा आरोप लगा रहे हो। तुम मुझे इतने दिनों से जानते हो, क्या तुम्हें पता नहीं कि मैं किस तरह का इनसान हूं। मैं कभी – भी चोरी नहीं करता।’ लेकिन पापबुद्धि नहीं माना, इसलिए दोनों को न्यायाधीश के पास न्यायालय में जाना पड़ा।

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मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak
मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak : न्यायाधीश ने दोनों की बातें आराम से सुनीं और कहा – ‘तुम दोनों को अग्नि परीक्षा देनी पड़ेगी।” पापबुद्धि ने फिर कहा – ‘जिस जगह पर हमने धन गाड़ा था, वहां पर एक बड़ा – सा पेड़ है। वहां पर जो कुछ भी हुआ वह पेड़ के देवता ने देखा है। क्यों न हम उनसे जाकर पूछ लें कि कौन चोर है।’ न्यायाधीश ने कहा – ठीक है! कल तुम दोनों हमारे साथ जंगल में चलना।’

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पापबुद्धि भागा – भागा अपने घर गया और पिता जी से बोला – ‘मैंने धर्मबुद्धि का धन भी चुरा लिया था, अब वे मुझे न्यायालय में घसीट रहें हैं। सिर्फ आप ही मुझे सजा से बचा सकते हैं, नहीं तो धन के साथ – साथ मेरा जीवन भी चला जाएगा।’ उसके पिता ने कहा – ‘बोलो, मुझे क्या करना होगा।” पापबुद्धि बोला- ‘जहां जंगल में हमने धन छिपाया था, वहां एक बड़ा – सा पेड़ है, जिसका तना खोखला है। आप उसमें घुसकर बैठ जाना। सुबह जब न्यायाधीश आपसे पूछे कि चोर कौन है? तो आप धर्मबुद्धि का नाम बता देना।” पापबुद्धि का पिता मान गया और पापबुद्धि खुशी – खुशी अपने घर सीटी बजाता हुआ चला गया।

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मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak
मित्रता का मजाक | Mitrta Ka Mjaak : अगले दिन सुबह दोनों मित्र और जज धन छिपाने वाली जगह पर पहुंच गए। पापबुद्धि का पिता जो कि पेड़ के तने में छिपा बैठा था, तुरंत बोल उठा – ‘मेरी बात सुनी! धर्मबुद्धि ने ही सारा धन चुराया है।’ न्यायाधीश ने जब यह सुना तो वह चकित रह गया और धर्मबुद्धि को सजा देने की तरकीब सोचने लगा।

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इतनी देर में धर्मबुद्धि ने सूखे हुए पत्तों और घास का एक ढेर इकट्ठा किया और उसे पेड़ के तने में डालकर आग लगा दी। पापबुद्धि का पिता चीखता – चिल्लाता तने से बाहर निकल आया, क्योंकि वह आग की लपटों में झुलस गया था। वहां पर बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई, तब पापबुद्धि के पिता ने सबको अपने पुत्र की काली करतूतों का बयान दिया। न्यायाधीश ने पापबुद्धि को सजा का निर्णय सुनाया और धर्मबुद्धि को आगे के लिए शिक्षा दी कि खराब लोगों की संगत से बचो, नहीं तो तुम्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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