Mohram Kya Hain | मोहरम का महत्व जाने

Mohram Kya Hain

Mohram Kya Hain : ईमाम हुसैन की शाहदत की आग में आज दुनियाभर के में शिया मुस्लिम मोहरम मना रहे हैं. ईमाम हुसैन पैगम्बर के नाती थे जो कर्बला की जंग में शहीद हुवे थे. मोहरम क्यूँ मनाया जाता हैं इसके लिए हमे तारीख के उस हिस्से में जाना होगा जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का राज था.

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Mohram Kya Hain

Mohram Kya Hain : ये खलीफा पुरे जहाँ के मुसलमानों का प्रमुख नेता होता था, पैगम्बर साहब के वफात के बाद चार खलीफा चुने गए लोग आपस में तय करके इसका चुनाव करते थे, इसके करीब 50 साल बाद इस्लामिक दुनिया में घोर अत्याचार का दौर आया. मका से दूर सीरिया के गवर्नर ने याज़िर ने खुद को कह्लिफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका बादशाहों जैसा था जो उस समय इस्लाम के बिलकुल खिलाफ था. ईमाम हुसैन ने उसे खलीफा मानने से इनकार कर दिया

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Mohram Kya Hain

Mohram Kya Hain : इससे नाराज़ याज़िर ने अपने राज्यपाल पुत्र थवा को फरमान लिख तो हुसैन को बुला कर मेरे आदेश का पालन करने को कहो अगर वो नहीं माने तो उसका सर काट कर मेरे पास भेजा जाए, राजपाल ने हुसैन को राजभवन बुलाया और उनको याज़िर का फरमान सुनाया. इस पर हुसैन ने कहा मैं एक व्यभ्चारी, भ्रष्टाचारी, और खुदा रसूख को ना मानने वाले याज़िर का आदेश नहीं मान सकता इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुंचे ताकि हज पूरा कर सके वहां याज़िर ने यात्री बना कर उनका क़त्ल करने के लिए भेजा इस बात का पता हुसैन को चल गया

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Mohram Kya Hain

Mohram Kya Hain : लेकिन मका ऐसा पवित्र स्थान हैं जहाँ किसी की भी हत्या हराम हैं. खून खराबे से बचने के लिए हुसैन उमरा करके परिवार सहित ईराक चले गए. मोहरम महीने की 2 तारिक 61 हिज्बे को हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे. 9 तारीख तक वो याज़िर फौज को सही रास्ते पर आने के लिए समझाते रहे लकिन वो नहीं माने इसके बाद हुसैन ने कहा तुम मुझे एक रात की महौलत दो ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूँ. इस रात को अशर की रात कहा जाता हिन्.

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Mohram Kya Hain

Mohram Kya Hain : अगले दिन जुंग में उनके बहत्तर फोल्लोवेर्स मारे गए तब सिर्फ हुसैन ही अकेले रह गए तभी उनके खेमे में शोर मच उनका 6 महिना का बेटा अली असगर प्यास से बेहाल था हुसैन उसे हाथो में उठा कर मैदाने कर्बला में ले आया उन्होंने फ़ौज से बेटे को पानी पिलाने को कहा लेकिन फ़ौज नहीं मानी और बेटे ने हुसैन के हाथो में तड़प कर दम तोड़ दिया उसके बाद भूखे प्यासे हसरत हुस्सैन का भी क़त्ल कर दिया गया. हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान की थी. इससे आश्रत या मातम का दिन कहते हैं.

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ईराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम में कर्बला में ईमाम हुसैन और ईमाम अब्बास का तीर्थ स्थल हैं.

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