मैंने एक बार एक आदमी को नौकरी का इंटरव्यू देने जाते देखा। उसके जूते गंदे थे, उसके सिर पर टोप था (जो ऊपर खिसका था), उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और उसने जेब में हाथ डाल रखे थे। आप समझ ही गए होंगे कि इस हुलिए में इंटरव्यू देने पर क्या हुआ होगा – उसे नौकरी नहीं मिली। और उसे मिलेगी भी नहीं, और फिर वह दावा करेगा कि यह अन्याय है, कोई भी उसे मौक़ा नहीं देता है, ज़िदगी बेकार है आदि। मैंने नौकरी के कई इंटरव्यू लिए हैं और देखा है कि लोगों का हुलिया अक्सर गलत प्रभाव डालता है। कोशिश की कमी हमेशा साफ़ झलकती है – तैयारी और रुचि की कमी भी। ‘आप इस कपनी के लिए काम क्यों करना चाहते हैं?’ ‘पता नहीं।’ ‘हम क्या काम करते हैं?’ ‘पता नहीं।’ मैं यहाँ पर खूसट प्रतिक्रियावादी नहीं बन रहा हूँ। लेकिन इस तरफ़ ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोशिश की कमी का सीधा संबंध परिणामों की कमी से है। गरीब लोग गरीब दिखते हैं और ऐसा मजबूरी के कारण नहीं होता है। वे तो एक तरह से गरीबी की यूनिफ़ॉर्म पहने होते हैं, जो उन्हें बाक़ी लोगों से अलग कर देती है। क्योंकि लोग उनके साथ अलग तरह का व्यवहार करने लगेंगे। हम वनमानुषों से बहुत ज़्यादा अलग नहीं हैं और एक-दूसरे के प्रति हमारा व्यवहार काफ़ी हद तक इस बात पर आधारित होता है कि वे किस तरह चलते और दिखते हैं। जो लोग कमज़ोर और ज़रूरतमंद दिखते हैं, उनके साथ वैसा ही बताव किया जाता है। शक्तिशाली लोग गर्व से चलते हैं और आत्मविश्वासी दिखते हैं। मैं यह सुझाव दे रहा हूँ कि आपको शक्तिशाली और आत्मविश्वासी दिखना चाहिए। हम सभी को शक्तिशाली और आत्मविश्वासी दिखना चाहिए।
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ओह, लेकिन हम दौलतमंद लोगों जैसे पहनावे का खर्च कैसे उठा सकते हैं? छोड़िए भी। मुझे आपसे बेहतर उम्मीद थी। ज़रा गहराई तक सोचें। वनमानुष तो यह काम बिना कपड़ों के ही कर लेते हैं। इसका संबंध आपके पहनावे से उतना नहीं है, जितना इससे है कि आप किस तरह से चलते हैं। इसका संबंध तो आपकी पूरी छवि से है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप भड़कीले या बुरे कपड़ों में ज़्यादा सफल हो सकते हैं। कोई भी स्मार्ट ढंग से कपड़े पहन सकता है। कोई अच्छी पोशाक उधार माँग लें या अच्छा सूट सस्ते में खरीद लें (नहीं, नहीं, पूरी क़ीमत पर नहीं और इसे अपने क्रेडिट कार्ड से न ख़रीदें)। कैसिनो की पहली नौकरी के लिए जब मैं इंटरव्यू देने जा रहा था, तो मैंने एक शानदार सेकड हैंड जैकेट ख़रीदा, जो डबल ब्रेस्टेड और बहुत भड़कीला था। इसके साथ ही सही बो टाई भी, क्योंकि मुझे इलास्टिक टाई पसंद नहीं है। मैंने घंटों तक प्रैक्टिस की, जब तक कि मेरी नज़र में मेरा हुलिया सही नहीं हो गया। जब मैं पहली रात को वहाँ पहुँचा, तो मैं प्रशिक्षु कम, जेम्स बॉण्ड ज़्यादा दिख रहा था। मेरी छाप यादगार और नाटकीय थी। ज़ाहिर है, मैंने गलत अनुमान लगा लिया था और बाद में मुझे हाई स्ट्रीट से एक सादा काला सूट खरीदना पड़ा, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह थी कि लोगों को यह याद रहा कि मैं भीड़ से अलग था और गंदे कपड़ों के बजाय स्टाइलिश कपड़े पहनता था। मुझे वह काम मिल गया, हालाँकि मैं किसी तरह से उसके लायक़ नहीं था। जानते हैं, यह सूत्र कारगर है। दौलतमंद लोगों की तरह पोशाक पहनें, लोग आपको दौलतमंद मान लेंगे और आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। स्टाइल सीखें, तौर-तरीके सीखें और यह भी सीखें कि दौलतमंद लोग कैसे कपड़े पहनते हैं। गरीब दिखेंगे, तो आपको खराब सर्विस मिलेगी। और आप चाहे जो करें, चिथड़े न पहनें। अमीर मशहूर हस्तियों पर यह फबता है, लेकिन आप पर नहीं। मुझ पर भी नहीं। हमारा लक्ष्य संयत शालीनता होना चाहिए। कुलीन। गुणवत्ता। सादी डिज़ाइन। तराशे हुए बाल। साफ़ नाखून। आप मेरा मतलब समझ गए होंगे!
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