मृत्यु – जरासंध की | Mrityu – jarasandh Ki

मृत्यु – जरासंध की | Mrityu – jarasandh Ki

मृत्यु – जरासंध की | Mrityu – jarasandh Ki : पाण्डव, रिश्ते में कृष्ण के भाई लगते थे। जब पाण्डवों ने इन्द्रप्रस्थ प्राप्त किया, तो सभी लोग युधिष्ठिर द्वारा राजसूर्य यज्ञ करने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् युधिष्ठिर को पृथ्वी के राजा की पदवी मिलनी थी। परन्तु इसके लिए उन्हें पहले जरासंध का वध करना था, क्योंकि उसने अनेक राजाओं को कारागार में डाल रखा था। इस परिस्थिति पर विचार करने के लिए युधिष्ठिर ने कृष्ण को बुलवाया।

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युधिष्ठिर जानते थे कि स्वयं कृष्ण भी जरासंध की शक्ति से कहीं न कहीं भयभीत थे, इसलिए वह इस बात से भी चिन्तित थे कि वह जरासंध को किस प्रकार पराजित करेंगे। इस पर पाण्डवों में से एक पाण्डव भीम बोले, “भ्राता श्री मुझे, अर्जुन व कृष्ण को जरासंध को ललकारने की आज्ञा दीजिए। हम लोग एक साथ मिलकर अवश्य ही उसे मार देंगे।” “नहीं, मैं उन लोगों में से नहीं हूँ जो अपने उद्देश्य के लिए अपने भाईयों के जीवन को खतरे में डाल दें।” युधिष्ठिर ने कहा। तब भगवान कृष्ण ने कहा, “युधिष्ठिर, मैं सदा अर्जुन व भीम के साथ हूँ। मुझ पर विश्वास रखो और उन्हें जाने दो।”

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मृत्यु - जरासंध की | Mrityu - jarasandh Ki

मृत्यु – जरासंध की | Mrityu – jarasandh Ki : कृष्ण के इस प्रकार आश्वासन देने पर युधिष्ठिर ने उन्हें जाने की आज्ञा दे दी। तब तीनों भाई ब्राह्मण रूप में जरासंध के नगर मगध में पहुँच गए। वहाँ वह जरासंध के दरबार में प्रार्थी बनकर पहुँचे, परन्तु उन्हें तथा उनके सुगठित शरीरों को देख जरासंध समझ गए कि वे कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हैं। जरासंध को ऐसा लगा कि जैसे उसने उन्हें पहले भी देखा है। परन्तु उसने इस बात को छुपाए रखा.

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मृत्यु - जरासंध की | Mrityu - jarasandh Ki

मृत्यु – जरासंध की | Mrityu – jarasandh Ki 

‘ओ ब्राह्मण, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?” जरासंध बोले
“महाराज, हम केवल आपसे एक बार युद्ध करना चाहते हैं।”
“परन्तु, मैं आप जैसे ब्राह्मण पर हाथ नहीं उठा सकता।” जरासंध ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। जरासंघ की यह बात सुनते ही कृष्ण ने जरासंघ को अपना वास्तविक परिचय दे दिया। जरासंध हँसे और बोले, “कृष्ण, मैं तुम्हारे समान डरपोक व्यक्ति से युद्ध नहीं कर सकता तथा अर्जुन मेरे लिए बहुत छोटे हैं। अत: मैं भीम को युद्ध के लिए चुनता हूँ, क्योंकि यह मेरे समान शक्तिशाली है।”

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अत: भीम व जरासंध युद्ध के लिए मैदान में पहुँच गये और फिर उन दोनों के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया। पहले उनमें गदा युद्ध हुआ। वह युद्ध इतना भयंकर था कि अन्त में उन दोनों के गदा भी टूट गए। इसके बाद दोनों के बीच मुक्केबाजी आरम्भ हुई। यह मुक्केबाजी 27 दिनों तक चली परन्तु दोनों में से कोई भी नहीं जीता। अन्त में जरासंघ व भीम के मध्य हुआ यह युद्ध बिना किसी हार-जीत के समाप्त हो गया। अगले दिन जब भीम को जरासंध के साथ मल्लयुद्ध करने जाना पड़ा, तो भीम बहुत घबराए हुए थे।

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मृत्यु - जरासंध की | Mrityu - jarasandh Ki

मृत्यु – जरासंध की | Mrityu – jarasandh Ki : भीम की यह स्थिति देखकर कृष्ण भी चिन्तित हो उठे। तभी उनके दिमाग में एक विचार कौंधा। दरअसल वह जरासंध के जन्म के विषय का रहस्य जानते थे। अत: उन्होंने उसका जीवन समाप्त करने के लिए उस रहस्य का प्रयोग किया। और तब कृष्ण ने एक छोटा सा तिनका उठाया और उसे बराबर लम्बाई में दो टुकड़ों में तोड़ डाला। इसके पश्चात् उन्होंने उन दोनों टुकड़ों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया। भीम ने यह देखा और समझ गए कि अब उन्हें क्या करना है। युद्ध के मैदान में एक बार फिर जरासंध और भीम के बीच मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया।

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एक समय ऐसा भी आया जब भीम ने जरासंध को टाँगो से पकड़ा और भूमि पर पटक दिया। उसके पश्चात् भीम ने जरासंघ के शरीर को लम्बाईवश दो भागों में चीर दिया और दोनों टुकड़ों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया। इस प्रकार जरासंध का अन्त हुआ। जरासंध की मृत्यु के पश्चात् कृष्ण उसके पुत्र के पास गए और उससे सभी राजाओं को रिहा करने के लिए कहा, जिन्हें उसके पिता ने बंदी बना रखा था। और उसके पश्चात् युधिष्ठिर को अपना राजा स्वीकार करने को कहा। जरासंध के पुत्र ने कृष्ण की सभी बातों को मान लिया। इसलिए जरासंध के पुत्र को गिरिवराज का राजा बना दिया गया। कृष्ण, अर्जुन व भीम वापस इन्द्रप्रस्थ को लौट गए। इसके पश्चात् सभी राजाओं ने युधिष्ठिर को सर्वश्रेष्ठ माना और शीघ्र ही युधिष्ठिर ने राजसूर्य यज्ञ किया। जिसकी इच्छा वह पहले से कर रहे थे।

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