नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain

नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain

नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain : पातिलिपुत्र नामक नगर में मणिभद्र नामक एक व्यापारी रहता था, जो बहुत दयालु था। वह हमेशा दूसरों की सहायता करता रहता था। एक बार उसके बुरे दिन आए और वह अपनी सारी संपत्ति खो बैठा। इस कारण शहर के सब लोगों ने उसकी इज्जत करनी छोड़ दी। मणिभद्र बहुत निराश हो गया। एक रात वह अपने बिस्तर पर लेटा – लेटा कुछ सोच रहा था -‘इस जीवन का क्या लाभ? मैं किसी की सहायता भी नहीं कर सकता, मुझे उपवास करके मर जाना चाहिए।’

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नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain

नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain : फिर वह सो गया। सपने में उसने देखा कि एक जैन मुनि उसके पास आया और बोला – ‘मणिभद्र! तुम चिंता न करो। मैं धन हूं, कल सुबह मैं तुम्हारे घर इसी वेश में आऊंगा। तुम मेरे सिर पर एक सोटी से प्रहार करना, तो मैं तुरंत सोना बन जाऊंगा। उसके बाद तुम कभी भी गरीब नहीं रहोगे।”
अगली सुबह जब मणिभद्र उठा, तो उसका सिर घूम रहा था। रात को देखे गए सपने का असर अभी भी था। क्या यह सपना सच होगा या नहीं। मेरे खयाल से यह सच नहीं होगा। मुझे यह सपना इसलिए आया, क्योंकि मैं सारा समय पैसे के बारे में सोच रहा था।

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मणिभद्र की पत्नी ने उस दिन सुबह एक नाई को अपने सूजे हुए पैरों की मालिश करवाने और मेंहदी लगाने के लिए बुला रखा था। नाई के आने के तुरंत बाद एक जैन मुनि दरवाजे पर आया। मणिभद्र द्वारा देखे गए सपने के जैसा ही यह जैन मुनि था। मणिभद्र ने तुरंत एक मोटी सोंटी से उसके सिर पर वार किया। मुनि जमीन पर गिर गया और सोने के ढेर में बदल गया। मणिभद्र ने उस सोने को उठाकर अपने घर के एक खाली कमरे में छिपा दिया। उसने नाई को रुपया – पैसा और कपड़े दे कर खुश कर दिया और उससे वायदा करा लिया कि वह इस घटना के बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताएगा।

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नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain

नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain : नाई घर पहुंचा। उसने सोचा – ‘यदि जैन मुनि के सिर पर वार करने से वह सोने में बदल सकता है, तो मैं क्यों न कुछ जैन मुनियों को अपने घर आमंत्रित कर लू।’ उसने सारी रात यही सोचते – सोचते गुजार दी। सुबह उठकर वह जैन मंदिर में चला गया। उसने वहां जाकर प्रार्थना और पूजा की, फिर वह मंदिर के सबसे बड़े पुजारी के पास गया और जमीन पर हाथ जोड़े उसके चरणों में झुक गया – ‘हे मुनि! मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आज जब आप भिक्षा मांगने जाएं तो मेरे घर खाना खाने के लिए जरूर रुकें और अपने साथी मुनियों को भी साथ ले आएं।’ पुजारी ने कहा – ‘मेरे प्यारे शिष्य! हम जरूर तेरे घर आएंगे।”

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नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain : नाई खुशी – खुशी घर वापस गया और जैन मुनियों को मारने के लिए दरवाजे के पास कुछ लकड़ियों का ढेर इकट्ठा कर लिया। जैसे ही मुनि घर के अंदर पधारे, उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। वह लकड़ियों से साधुओं पर वार करने लगा। कुछ गिरकर मर गए, कुछ अन्य घायल हो गए। बाकी मदद के लिए जोरजोर से चिल्लाने लगे। जब शहर के सबसे बड़े चौकीदार ने उनकी चीखें सुनीं तो उसने अपने आदमियों को इस शोर का कारण जानने के लिए भेजा। चौकीदारों ने नाई के घर से मुनियों को निकलकर भागते हुए देखा। कुछ के घावों से खून बह रहा था। उन्होंने मुनियों से पूछा – ‘क्या हुआ?’ तब डरे हुए मुनियों ने नाई की सब करतूत उन्हें सुना दी। चौकीदारों ने उसी समय नाई को कैद कर लिया और उसी के साथ घायल मुनियों को लेकर कोर्ट में हाजिर हो गए।

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नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain
नक़ल करने के लिए भी अक्ल की जरुरत हैं | Nakal Karne Ke Liye Bhi Akal Ki Jarurat Hain : कोर्ट में जाकर जज ने नाई से पूछा – “तुमने यह जुर्म क्यों किया?’ तो नाई बोला – ‘मेरा कसूर नहीं है, मैंने एक व्यापारी को ऐसा करते देखा था, तब मैंने सोचा कि मैं भी क्यों न ऐसे ही करूं।’ उसने मणिभद्र के घर की सारी बात सब को बता दी।

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जज ने तुरंत मणिभद्र को बुलवाया और उससे कहा – ‘क्या तुम जैन मुनियों को मारते रहे हो?’ तब मणिभद्र ने उन्हें स्वप्न की सारी बात बता दी। जज ने आज्ञा दी कि इस बदमाश नाई को फांसी पर लटका दो। इसने व्यापारी की बिना सोचे-समझे नकल की। इसने परिणाम की भी परवाह नहीं की और नाई को फांसी पर लटका दिया गया।

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