P. T. Usha in Hindi | पी. टी. उषा की जीवनी

P. T. Usha in Hindi | पी. टी. उषा की जीवनी

P. T. Usha in Hindi

 पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा जिन्हें अधिकतर पी. टी. उषा के नाम से जाना जाता हैं. इनके नाम से ही एक दुबली पतली लड़की का चेहरा सामने आ जाता हैं जो किसी भी जगह पर, किसी भी रेस में, किसी के साथ भी दौड़ते हुवे पीछे कम ही दिखाई देती हैं. कई राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय खेलो में अपने खेल का लोहा मनवाने वाली पी. टी. उषा देश की अकेली ऐसी महिला खिलाडी हैं, जिन्होंने एशियाई तथा ओलम्पिक खेलों में भी ऐतिहासिक गौरव हासिल किया है. यु तो हमारा देश जनसँख्या की दृष्टि से दुनिया के दुसरे स्थान पर विराजमान हैं लेकिन बावजूद इस जनसँख्या की कतार में हजारो लोगो को पीछे छोड़ते हुवे कुछ ही ऐसे भारतीय होते हैं जो आगे निकल जाते हैं किसी भी शेत्र में सबसे पहले आने की कड़ी में और अपना नाम दर्ज करवाते हैं. जब जब इतिहास में किसी भी खिलाड़ी ने कीर्तिमान रचा हैं या कोई नया रिकॉर्ड बनाया हैं तब तब उन्हें आम जनता द्वारा कुछ अलग, कुछ हटकर नामो की उपाधि देकर नवाज़ा गया हैं. जिनमे से पी. टी. उषा भी एक हैं इन्हें ‘उड़न परी‘, ‘स्वर्ण परी‘, ‘एशियन स्प्रिंट क्वीन‘, ‘पयोली एक्सप्रेस‘, ‘भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी‘ आदि नामो से पुकारा जाता हैं. उन्होंने अपनी मेहनत से वो स्थान प्राप्त किया हैं जिसकी वो असली हक़दार थी. अक्सर गरीब परिवार में पैदा होने का कारण ही इंसान की काबिलियत को मारने के लिए काफी होता हैं लेकिन पी. टी. उषा के केस में ये चीज़ सामने नहीं आई क्युकी उनकी काबिलियत और बाद में उनकी मेहनत ने इस चीज़ को कभी भी गरीबी द्वारा मरने ही नहीं दिया और यही वो समय होता हैं जब इंसान जो असल में होता हैं उसका वो ही रूप साफ़ साफ़ निखर कर सामने आता हैं जैसे की अगर कोई गरीब घर में पैदा होकर अच्छी काबिलियत होने के बावजूद इसी गरीबी की वजह के कारण उसे अपना खेल प्रेम त्यागना पड़ता हैं तो चाहे कुछ भी कह लो वो कमजोर हैं और दूसरी तरफ वो लोग होते हैं जो गरीब परिवार में पैदा होकर अपनी काबिलियत को पहचान कर किसी भी तरह की मुसीबतों से गुज़र जाते हैं फिर चाहे उनपर मुश्किलो का तूफ़ान ही उनकी जिंदगी में भले ही क्यों ना आ जाए. वे डट के खड़े होते हैं और हर मुश्किल और मुसीबत को यु ठेंगा दिखाते हैं जैसे की कह रहे हो चाहे जो हो जाए हम अपने निश्चय से और अपनी मर्ज़ी से अपनी योग्यताओं द्वारा आगे बढ़ेगे और कुछ कर के ही रहेगे और ऐसे ही सोच रखने वाले आगे चल कर पी. टी. उषा बनकर सबके सामने आते हैं. आज के समय में हर दुसरे खिलाडी की प्रेरणा हैं पी. टी. उषा. वैसे अगर आपने गौर किया होगा की जिस समय पी. टी. उषा हमारे समाज में सबसे तेज़ धाविका के रूप में आगे बढ़ रही थी, जिस समय लोगो ने उन्हें पहचानना शुरू किया थे उस समय महिलाओं की दशा बहुत अच्छी नहीं थी हमारे समाज में और साथ ही साथ एक महिला होने के नाते, एक औरत होने के नाते पी. टी. उषा ने बहुत सारी दिकत्तो का सामना तो किया ही होगी और सचमुच में वो बधाई की पात्र हैं और उस काबिल हैं जिस कारण आज के खिलाड़ी उनको पूजते हैं.

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पी. टी. उषा का जीवन परिचय :

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P. T. Usha in Hindi : इनका जन्म केरल के कालीकट (कोज़िकोड) जिले के पय्योली ग्राम में 27 जून 1964 को केरल में हुआ था. उषा के पहला नाम पयोली तेवारापराम्पिल (यानि के उनके गाँव) से उन्हें मिला था जैसे की दक्षिण भारत में पारंपरिक नामकरण प्रणाली प्रचलित हैं और वहाँ पर हर व्यक्ति का नाम ऐसे ही रखा जाता हैं. उनके पिता का नाम पैतल था तथा वे एक कपडे के एक छोटे-मोटे व्यापारी थे एवं उनकी माताजी का नाम लक्ष्मी था और वे घर की सीधी साधी ग्रेह्नी थी. पी. टी. उषा का बचपन से ही उनका शारीरिक बनावट एक पूरी एथलिट जैसी ही थी लम्बी लम्बी टाँगे और पुरे शरीर में फुर्ती से काम करने का दम. घर के किसी भी कार्य को वे एक दम फुर्ती से करती थी और हर वक़्त भागती दौड़ती रहती थी ऐसे ही कठिन कठिन कार्य करके उन्हें ना पता होते हुवे भी उनकी एक तरह की कसरत हमेशा जारी रहती थी और उनके लिए उस वक़्त भी लम्बी लम्बी दीवारे फांदने जैसी कला उन्हें खूब भाँती थी. जब केरल में खेल विद्यालय खोला गया तो उनके मामाजी ने उनको सलाह दी की ‘वैसे तो दिन भर यहाँ वहाँ भागती रहती हैं खेल प्रतियोगिताओं में भाग क्यों नहीं लेती’ तब उन्होंने खेल में अपनी रूचि दिखानी प्रारंभ की. इसके बाद जो उन्हें असल प्रेरणा अगर किसी घटना ने दी थी तो वह तब जब वे केवल चौथी कक्षा में पढ़ती थी और उनके व्यायाम के टीचर ने उन्हें सातवी कक्षा की चैंपियन छात्रा के साथ रेस लगाने को कहा फिर क्या था जैसे ही पी. टी. उषा उस रेस में जीती उनका आत्मविश्वास अपने खेल के प्रति तभी से जागना प्रारंभ हुआ. जैसा की हम सभी जानते हैं पी. टी. उषा एक गरीब परिवार में पैदा हुई थी और इसी कारणवश उनका पालन पोषण भी सही से नहीं होता था जिस कारण उनकी तबीयत खराब रहती थी लेकिन ये बुरा वक़्त ज्यादा समय तक उनके साथ ना रह पाया. क्युकी बहुत छोटी ही उम्र में उन्होंने अपनी योग्यताओं के जोहर दिखाने शुरू कर दिए थे.

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पी.टी उषा के खेल जीवन की शुरुवात :

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P. T. Usha in Hindi : 1976 यानी जब पी. टी. उषा केवल 12 साल की थी तब केरल सरकार द्वारा वहाँ पर एक खेल विद्यालय खोला गया जिसमे की उसमे इतनी छोटी सी उम्र में उन्हें अपने जिले का प्रतिनिधि चुना गया. केरल खेल परिषद् द्वारा वहाँ पर हर किसी प्रतिभावान खिलाडी छात्र-छात्राओं को 250 रुपये हर महीने की छात्रवृत्ति के साथ-साथ फल, अण्डे, सूप आदि के रूप में पोषण से भरा आहार की भी सुविधा दी जाती थी. पी.टी. उषा ने 1976 में कन्नौर खेल छात्रावास में प्रवेश किया,
1979 में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लेने दिया गया, जहाँ ओ. ऍम. नम्बियार का उनकी ओर ध्यान आकर्षित हुआ और उन्हें लगा की ये लड़की और लडकियों के मुकाबले कुछ हटकर हैं क्युकी प्रतिभावान लोग अपनी एक अलग जगह बना ही लेते हैं. तब वे उनके प्रशिक्षक के रूप में आगे आये और अंत तक उनके प्रशिक्षक बने रहे.

पी. टी. उषा द्वारा पदको का जीतना :

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P. T. Usha in Hindi : ओलंपिक्स में उनकी शुरुवात 1980 के मास्को ओलम्पिक से हुई थी परन्तु जाने क्यों वे अपने शुरुवाती समय के इस ओलिंपिक में अच्छा प्रदर्शन नहीं दिखा पायी और सबको निराश किया लेकिन किसी ने एक दम सही बात कही हैं की ‘निराशा के पीछे ही आशा छिपी हैं यदि आपके मन में सच्ची अभिलाषा हो उस चीज़ को पाने की’ और यही कहावत हम बिलकुल सटीक तरीके से उषा पर लागू होते देख सकते थे और एशियाड गेमो में ऐसा ही हुआ. 1982 के बाद से अब तक का समय ऐसा लगता हैं जैसे किसी ने पी. टी. उषा के जीवन में जादू की छड़ी घुमा दी थी क्युकी वो अपने आप में चमत्कारी प्रदर्शन से कम नहीं थे. 1982 के एशियाड खेलों में उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीते थे। राष्ट्रीय स्तर पर उषा ने कई बार अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहराने के साथ 1984 के लांस एंजेल्स ओलंपिक खेलों में भी चौथा स्थान प्राप्त किया था। यह गौरव पाने वाली और इतिहास के पन्नो में नाम पाने वाली वे भारत की पहली महिला धाविका हैं। कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि भारत की धाविका, ओलंपिक खेलों में सेमीफ़ाइनल जीतकर अन्तिम दौड़ में पहुँच सकती थी क्युकी इससे पहले किसी भी भारतीय महिला ने वो नहीं किया था जो पी. टी. उषा ने पा रखा था और वो थे जीतने का जूनून. जकार्ता की एशियन चैंम्पियनशिप में भी उन्होंने स्वर्ण पदक लेकर खुद प्रूवे किया की वे क्या हैं और वे वहाँ क्यों हैं. एक बात हमेशा सोची जा सकती हैं की जब व्यक्ति आसमान की उचाईयों को छू रहा होता हैं तब उसके रास्ते में कई लोग उसके मित्र बनते हैं और कई सारे खुद ही उनके शत्रु बनना पसंद करते हैं क्युकी इर्ष्या करना उनकी गन्दी और घटिया आदत का मापदंड होता हैं.और इसके बाद जकार्ता की एशियन चैंम्पियनशिप में उन्हे स्वर्ण पदक मिलने के बाद ‘ट्रैक एंड फ़ील्ड स्पर्धाओं’ में लगातार 5 स्वर्ण पदक एवं एक रजत पदक जीतकर वह एशिया की सर्वश्रेष्ठ धाविका बन गई हैं। लांस एंजेल्स ओलंपिक में भी उसके शानदार एवं इतिहास रच देने वाले प्रदर्शन के साथ पुरे विश्वभर के खेल विशेषज्ञ चकित रह गए थे. 1982 के नई दिल्ली एशियाड में उन्हें 100 मी व 200 मी में रजत पदक मिला, लेकिन एक वर्ष बाद कुवैत में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने 400 मी में स्वर्ण पदक जीता।

पी. टी. उषा का निरंतर प्रयास :

P. T. Usha in Hindi

P. T. Usha in Hindi : 1983-89 के बीच में उषा ने एटीऍफ़ खेलों में 13 स्वर्ण जीते। 1984 के लॉस ऍञ्जेलेस ओलम्पिक की 400 मी बाधा दौड़ के सेमी फ़ाइनल में वे प्रथम थीं, पर फ़ाइनल में पीछे रह गईं। मिलखा सिंह के साथ जो 1960 में हुआ, लगभग वैसे ही तीसरे स्थान के लिए दाँतों तले उँगली दबवा देने वाला फ़ोटो फ़िनिश हुआ। उषा ने 1/100 सेकण्ड की वजह से कांस्य पदक गँवा दिया था. 400 मी बाधा दौड़ का सेमी फ़ाइनल जीत के वे किसी भी ओलम्पिक प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुँचने वाली पहली महिला और पाँचवी भारतीय बनीं। 1986 में सियोल में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पी. टी. उषा ने 4 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीते। उन्होंने जितनी भी दौड़ों में भाग लिया, सबमें नए एशियाई खेल कीर्तिमान स्थापित किए। 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते। एक ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः स्वर्ण जीतना भी एक कीर्तिमान है। उषा ने अब तक 102 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं. और वे अभी इस समय दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। 1985 में उन्हें पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया  गया। उषा की इच्छा सियोल एशियाड में भारत के लिए कोई सफलता पाने की है। इसके लिए उनका कठिन अभ्यास निरन्तर जारी है।

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One thought on “P. T. Usha in Hindi | पी. टी. उषा की जीवनी

  1. पि टी उषा को उडन परी किसने कहाँ पहली बार, या किसी ने उनको ये उपाधि दी थी

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