पार्वती ओर शिव का विवाह | Parwati Aur Shiv ka Vivah

पार्वती ओर शिव का विवाह | Parwati Aur Shiv ka Vivah : देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर माँ भगवती ने दक्ष की पुत्री उमा के रूप में जन्म लिया। परन्तु जब दक्ष ने उमा के पति शिव का अपमान किया, तो उस अपमान को वह सहन नहीं कर पाई। और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में जलकर आत्महत्या कर ली। इसके पश्चात् भगवान् शिव ने प्रण कर लिया कि वह आजीवन कुंवारे रहेंगे, जीवन भर विवाह नहीं करेंगे। यह प्रण लेने के बाद वे समाधि में लीन हो गए और उधर पृथ्वी पर चारों ओर अशांति फैल गई। चारों ओर अशांति व अपराधों को बढ़ता देख सभी देवता, विष्णु देव के पास पहुँचे और उनसे सहायता माँगी।

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विष्णु भगवान् बोले, “तुम सबको मिलकर माँ भगवती की प्रार्थना करनी होगी और उन्हें प्रसन्न करना होगा। उनसे मनुष्य रूप में अवतार लेकर भगवान् शिव से विवाह करने के लिए प्रार्थना करनी पडेगी, तभी शिव समाधि से बाहर आ पायेंगे। क्योंकि केवल एक वहीं हैं जो सभी असुरों व दैत्यों का विनाश करेंगे।” देवताओं ने माँ भगवती से प्रार्थना की। माँ द्वारा दर्शन देने पर, उनमें से एक देवता बोले, “माँ, हमें दैत्यराज तारकासुर ने परेशान कर रखा है। भगवान् ब्रह्मा द्वारा दिये गए वरदान के कारण वह और भी अधिक शक्तिशाली हो गया है। वे केवल भगवान् शिव के पुत्रों द्वारा ही मारे जा सकते हैं। परन्तु यदि भगवान शिव विवाह के लिए तैयार नहीं होंगे तो उनका कोई पुत्र नहीं होगा और तारकासुर अपनी इच्छानुसार कुछ भी करने के लिये स्वतंत्र रहेगा।”

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पार्वती ओर शिव का विवाह | Parwati Aur Shiv ka Vivah : यह सुन माँ भगवती बोलीं, “हिमालय की पत्नी नैना, मुझसे बच्चे के लिए प्रार्थना कर रही है। ऐसा करूंगी मैं उनकी पुत्री के रूप में जन्म लूँगी और तब मैं भगवान् शिव से विवाह करूंगी और तुम्हारी तारकासुर से रक्षा निश्चित समय पर माँ भगवती ने हिमालय व नैना की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। कई वर्षों के बाद नारद मुनि उन्हें देखने गए. उन्होंने उनके पिता से कहा, “हिमालय, तुम्हारी पुत्री संसार को बचाएगी. उसका वैवाहिक जीवन बहुत खुशहाल रहेगा, परन्तु…” “परन्तु क्या, हे नारद जी? नैना ने पूछा.

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“परन्तु उसका पति योगीराज हो जाएगा। वह निर्वस्त्र होकर, सामाजिक बन्धनों से मुक्त होकर, माता-पिता से अलग संसार के सभी सुखों से दूर रहेगा।”
“अरे, यह सारे गुण तो भगवान् शिव में है।” नैना बोली। “हाँ, यह सच है।” नारद मुनि ने कहा। “नहीं मैं अपनी पुत्री का विवाह उससे नहीं कर सकता।” हिमालय ने कहा।

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पार्वती ओर शिव का विवाह | Parwati Aur Shiv ka Vivah : पार्वती ये सब बातें सुन रही थी। वह बोलीं, “मैं भगवान् शिव को अपना पति स्वीकार करती हूँ।” “परन्तु, पार्वती, उन्हें प्रसन्न करना आसान काम नहीं है। बल्कि विवाह के लिए मनाना और भी ज्यादा मुश्किल है।”
“भगवान शिव की पत्नी बनने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ आप मुझे सिर्फ रास्ता बताइए।” अत: थककर नारद ऋषि मुनि ने पार्वती से तपस्या करने के लिए कहा। पार्वती ने अपना घर, गहने सभी चीजों को त्याग दिया। उन्होंने हिरन की खाल पहनी और हिमालय पर उस स्थान पर चली गई, जहाँ से गंगा नदी का उद्गम होता है। वहाँ पहुँचकर वह भगवान् शिव का जाप करने लगीं।

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इसी बीच विष्णु जी तथा अन्य देवता, भगवान् शिव के पास गये और उन्हें विवाह करने के लिए मनाने लगे। उन्होंने शिव को तारकासुर व पार्वती के विषय में बताया। यह सुनकर भगवान् शिव, पार्वती से विवाह के लिए मान गए क्योंकि असुरों ने अमरावती पर अधिकार कर लिया था तथा इन्द्र को बेघर कर दिया था। परन्तु इससे पहले भगवान् शिव, पार्वती की भक्ति की परीक्षा लेना चाहते थे। भगवान् शिव ने सप्तऋषि अर्थात सात ऋषियों को पार्वती की भक्ति की जाँच करने के लिए बुलाया। सप्तऋषि, पार्वती के पास गए और उससे तपस्या करने का कारण पूछा। जब उन्होंने बताया कि नारद मुनि ने उन्हें ऐसा करने को कहा है, तो वे बोले, “अरे, तुमने नारद मुनि पर विश्वास क्यों किया? वह तो बिल्कुल भी विश्वास के योग्य नहीं है। वह तो केवल दूसरों की बातों में टाँग अड़ाते हैं। दक्ष प्रजापति के दस हजार पुत्रों की मृत्यु का कारण भी वही बने।

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पार्वती ओर शिव का विवाह | Parwati Aur Shiv ka Vivah : तुमने उनका कहना माना और सारे सुख और आरामों का त्याग किया और राजकुमारी से तपस्विनी बन गई।” “आप सत्य कहते हैं, परन्तु अब तो मैं भगवान् शिव को हृदय से अपना पति मान चुकी हूँ। मुझे उनसे विवाह करना ही पड़ेगा।” सप्तऋषि, पार्वती की लगन को देखकर बहुत प्रभावित हुए। वे भगवान् शिव के पास पहुँचे और सब कुछ बता दिया। परन्तु भगवान् शिव अभी संतुष्ट नहीं थे।

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वे पार्वती की भक्ति की स्वयं परीक्षा लेना चाहते थे, इसलिए वे ब्राह्मण वेष में पार्वती के पास गये और बोले, “तुम एक सुन्दर अप्सरा लगती हो। तुम इन पहाड़ों और घने जंगलों में क्या कर रही हो?” पार्वती ने ब्राह्मण रूपी शिव से अपने मन की इच्छा बता दी। तब उन्होंने उसका सम्मान किया। ब्राह्मण बोले, “तुम भगवान् शिव से ही विवाह क्यों करना चाहती ही? उनका कोई घर नहीं है, कोई ठिकाना नहीं है। उनकी लम्बी-लम्बी जटाएँ हैं, और वे हमेशा भूत-प्रेतों के साथ रहते हैं। सम्पति के नाम पर उनके पास है क्या हैं? केवल एक कमजोर और बूढ़े बैल के अलावा।”

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पार्वती ओर शिव का विवाह | Parwati Aur Shiv ka Vivah : यह सुनते ही पार्वती क्रोधित हो गई और बोलीं, “मैं तुम्हारे साथ सम्मानजनक व्यवहार कर रही हूँ क्योंकि तुम मेरे अतिथि हो। और तुम हो कि सीमा से बाहर जाते जा रहे हो। भगवान् शिव का अपमान करने का प्रयास मत करो, यह पाप है और मेरे लिये तो उनका अपमान सुनना इससे भी बड़ा पाप है। मैं आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ कि आप यहाँ से चले जाइए। और यदि आप यहाँ रहना चाहते हैं, तो फिर मैं यहाँ से चली जाती हूँ।”

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पार्वती के क्रोध और भक्ति को देखकर भगवान् शिव उसके सामने अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गये। उन्हें आशीवाद देकर वे हिमालय और नैना के पास विवाह के लिये उनकी पुत्री अर्थात पार्वती का हाथ माँगने गये। पार्वती के माता-पिता इस बात के लिए तैयार नहीं थे। तब भगवान् शिव ने उन्हें समझाने के लिए सप्तऋषि को भेजा। सप्तऋषि के समझाने पर शिव के विवाह आयोजन में गंधर्व, देवता, ऋषि-मुनि, भूत-प्रेत सभी थे। भगवान् शिव की बारात नाचती गाती हुई हिमालय में उस स्थान पर पहुँची, जहाँ भगवान् शिव और पार्वती का विवाह होना था। विवाह के कुछ समय पश्चात् पार्वती ने भगवान् गणेश को जन्म दिया, जिन्होंने तारकासुर को मारकर उसका संहार किया।

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Hind Patrika

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