शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo

शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo

शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : महिलारोप्य नामक शहर में शिवजी का एक मंदिर था। एक साधु उस मंदिर में रहता था। वह शहर में जाकर भिक्षा मांगकर लाता और अपने परिवार का पेट पालता था। प्रतिदिन जब वह खाना खा चुकता, तब बचा हुआ खाना अपने भिक्षापात्र में डालकर खूंटी पर लटका देता था। फिर वह सोने चला जाता और सुबह वह बचा हुआ खाना सफाई करने वाले कर्मचारी को दे देता, जो कि मंदिर का बरामदा साफ करता था, जहां वह सोता था।

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कुछ चूहे जो उस मंदिर में रहते थे, उससे बहुत नाराज थे कि क्यों साधु अपना सारा खाना ऊपर टांग देता है। वे इतनी ऊपर छलांग नहीं लगा। सकते थे, अतएव अपने मुखिया से बात की, जो कि बहुत चालाक और फुर्तीला था। उसका नाम हिरण्यक था। सब चूहों ने जाकर उससे कहा – ‘हिरण्यक तुम कूदने में इतने कुशल हो कि तुम आसानी से साधु के भिक्षापात्र तक पहुंच सकते हो, फिर हमें दूसरी जगह खाना ढूंढ़ने के लिए जाने की क्या आवश्यकता है। जो खाना हमारे इतने पास है, उसे हम तुम्हारी मदद से आसानी से खा सकते हैं।’

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo
शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : हिरण्यक चूहे को यह बात बहुत अच्छी लगी। उसने साधु के भिक्षापात्र पर छलांग लगाने की कोशिश करने का वायदा किया। फिर कुछ और चूहों की सहायता से वह उसके पास रेंगता हुआ पहुंच गया। फिर अपने फुर्तीले शरीर से कूदता हुआ भिक्षापात्र के बिल्कुल निकट पहुंच गया और उस पात्र को नीचे की ओर लुढ़का दिया, ताकि उसके अन्य दोस्त जो नीचे खड़े थे, उन्हें भी खाने को मिल जाए। फिर वह और उसके साथी हंसी – खुशी अपने – अपने बिल में वापस चले गए। यह सिलसिला कई दिन तक चलता रहा।

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साधु को पता चल गया कि उसका खाना कोई रोज चुराकर ले जाता है, तब उसने अपने पात्र को और ऊंचा टांग दिया। परंतु हिरण्यक बहुत ऊपर तक कूदने वाला था, इसलिए साधु को उस पर बहुत गुस्सा आया। उसने चूहे की शरारत को रोकने की तरकीब बनाई। जब वह अपने बिस्तर पर सोने जाता, तो बांस की एक लंबी छड़ी से पात्र को हिलाता रहता ताकि चूहा डरकर भाग जाए। जब भी चूहा उसके पात्र के पास आता, तो वह जोर – जोर से छड़ी हिलाने लगता और चूहा डरकर भाग जाता। पर ज्यों ही वह सोने की कोशिश करता, चूहा फिर आ जाता। इस प्रकार चूहे और साधु की सारी रात भागा – दौड़ी में बीत जाती।

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : एक बार एक अन्य संन्यासी जो कि तीर्थ करने जा रहा था, उस साधु से मिलने आया। साधु ने उसका बहुत स्वागत किया और उसे अच्छा-अच्छा भोजन करवाया। सोने जाने से पूर्व संन्यासी और साधु धर्म पर विचार करने के लिए बैठे, परंतु साधु सारा समय चूहे के बारे में सोचता रहा, इसलिए उसने संन्यासी की बातों को ध्यान से नहीं सुना। वह छड़ी से अपना पात्र हिलाता रहा और संन्यासी को गलत – सलत उत्तर देता रहा।

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo
शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : आखिरकार संन्यासी ने साधु से गुस्से में कहा – ‘तुम मेरे सच्चे दोस्त नहीं हो। मैं जो भी तुम्हें सुना रहा हूं, तुम ध्यान से नहीं सुन रहे हो और मुझे गलत जवाब दे रहे हो। मेरे खयाल में तुम इस मंदिर को पाकर घमंडी हो गए हो और अपनी पुरानी दोस्ती को भूल गए हो, मैं ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं इसी क्षण यहां से जा रहा हूं।’ साधु संन्यासी की बातें सुनकर बड़ा गमगीन हो गया। उसने कहा – ‘मित्र ऐसे मत रूठो। तुम मेरे सबसे प्यारे मित्र हो।

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यह सही है कि मैंने पिछले कुछ क्षणों से तुम्हारी बातें ध्यान से नहीं सुनी है परन्तु यह सब तुमसे नाराज़गी की वजह से नहीं हैं मैं तुमको इसका सही कारण बताता हूँ. प्रतिदिन मैं अपना बचा हुआ भोजन इस पात्र में डालकर ऊपर लटका देता हूं, परंतु एक बदमाश चूहा ऊपर जाकर सारा भोजन खा लेता है और बचा हुआ अपने साथियों के लिए नीचे गिरा देता है, इसीलिए मैं छड़ी से पात्र हिलाता रहता हूं। मैं चूहे को डराना चाहता हूं, क्योंकि खाना न मिलने से काम करने वाले सफाई करना नहीं चाहते। इस बदमाश चूहे ने मुझे परेशान कर रखा है। एक बिल्ली या बंदर भी इतना ऊपर नहीं कूद सकता, जितना कि यह चूहा।’
संन्यासी ने पूछा-‘तुम चूहे के रहने का स्थान जानते हो?’
साधु ने कहा-‘मैं नहीं जानता।’

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo
शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : संन्यासी ने कहा-‘मेरे खयाल से जहां भी यह चूहा रहता है, वहां पर उसने बहुत सारा खाना जमा कर लिया है, तभी इस चूहे में अपने भंडार को देखकर ऊपर कूदने की शक्ति आ गई है। तुम्हें इसके रहने के स्थान का पता नहीं है।’
‘नहीं मित्र!’ साधु ने उत्तर दिया।
‘क्या तुम्हारे पास पकड़ने के लिए कोई छड़ है।’
‘हां, मेरे पास लोहे की शक्तिशाली छड़ है।’
‘चलो अच्छा है। कल प्रात: ही हम दोनों इस चूहे का पीछा करेंगे और उसके बिल को खोदकर सारा खाना निकाल देंगे।’

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : चूहे हिरण्यक ने जब यह सुना तो वह परेशन हो गया। उसने सोचा – ‘अब तो मैं खत्म हो गया। यह संन्यासी अवश्य ही मेरे खाने के खजाने का स्थान खोज लेगा, इसलिए मुझे अपना रास्ता बदल लेना चाहिए।’ उस रात चूहा अपने साथियों के साथ लंबे टेढ़े – मेढ़े रास्ते से घर जाने लगा, पर तभी एक बिल्ली उन सभी चूहों के सामने आ गई और चूहों पर झपट पड़ी। उसने कुछ चूहों को मार दिया और कुछ को जख्मी कर दिया। जो चूहे बचे, वे भागकर अपने बिल में छिप गए। वे सब बहुत डरे हुए थे। हिरण्यक नामक बड़ा चूहा मंदिर के दूसरे कोने में भाग गया। थोड़ी देर पश्चात साधु और संन्यासी दोनों खून की धारा के पीछे-पीछे हिरण्यक के बिल तक पहुंच गए।

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उन्हें जल्दी ही खाने का खजाना मिल गया, जो कि हिरण्यक ने इतने दिन से जमा कर रखा था। संन्यासी बहुत खुश हुआ और बोला-‘यही वह खजाना है जिसने बड़े चूहे को इतना ऊपर कूदने की शक्ति दी है। चलो हम यह सारा खाना ले चलते हैं और देखते हैं कि अब क्या होता है।’ जब हिरण्यक अपने बिल में पहुंचा तो वहां कुछ न पाकर वह बहुत निराश हुआ। उसने सारी रात दुखी होकर बिताई। अगली शाम वह फिर मंदिर में जा पहुंचा। उसके सारे साथियों ने उसे घेर लिया। जब साधु ने चूहों के इधर-उधर भागने का शोर सुना, तो वह फिर छड़ी से अपना पात्र बजाने लगा।

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo
शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : संन्यासी ने कहा-‘मेरे प्यारे मित्र! अब तुम आराम से सो जाओ।” साधु ने उत्तर दिया-‘मैं कैसे सो सकता हूं, जबकि बदमाश चूहा अपने साथियों सहित फिर यहां आ पहुंचा है, इसीलिए मैं छड़ी हिला रहा हूं।’ संन्यासी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया-‘अब वह चूहा इतना ऊपर नहीं कूद पाएगा, क्योंकि उसका बल खाने के खजाने में था, और वह सारा खाना हम ले आए हैं।’
चूहा यह सब बातें सुनकर बहुत डर गया। अब मैं उन्हें ऊपर कूदकर दिखा दूंगा कि मैं ऊपर कूद सकता हूं या नहीं? यह सोचकर वह पात्र की ओर लपका, पर वह उसके पास न पहुंच कर जमीन पर धम से गिरा। जब संन्यासी ने चूहे को जमीन पर दर्द से कराहते हुए देखा, तो वह बहुत खुश हुआ। उसने साधु से कहा-‘देखो-देखो यह चूहा कितना अजीब और बेबस लग रहा है, अब यह भी अपने साथियों जैसा ही बन गया है। अब तुम आराम से सो जाओ। अब इस चूहे की कूदने की ताकत हमारे हाथ में है।”

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शत्रु की शक्ति के स्रोत पर वार करो | Shatru Ki Shakti Ke Srot Par Vaar Karo : फिर साधु ने अपना बचा हुआ खाना एक थैले में डालकर उसका तकिया बना लिया और उस पर सो गया। चूहे के साथियों को पता चल गया कि उनका बहादुर नेता अब पहले जैसा नहीं रहा। वह चुपचाप अपने बिल में जाकर घुस गया। उसके सारे साथी उसे छोड़कर चले गए और उन्होंने दूसरा नेता चुन लिया। हिरण्यक चूहे ने एक अंतिम प्रयास किया। वह साधु के सिर के नीचे लगे तकिए में से खाना चुराने के लिए गया, पर साधु जाग गया और उसने चूहे को अपनी लाठी से मारा। हिरण्यक को लाठी नहीं लगी, पर वह समझ गया कि अब साधु को छकाना बेकार है।

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‘यह जगह अब रहने के काबिल नहीं है। मैं अपने लिए दूसरा स्थान खोज लेता हूं, जहां मैं आराम से रह सकूं।’ यह सोचकर वह चूहा जल्दी से मंदिर से भाग गया और साधु ने उसे फिर कभी वहां नहीं देखा। साधु ने उस संन्यासी की बुद्धिमत्ता को धन्यवाद दिया जिसने उसे सिखाया था—’शत्रु की शक्ति को खत्म करने के लिए उसकी शक्ति के स्रोत पर वार करो।’

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